Plastic Waste: प्लास्टिक कचरे को कंचन बनाने का ये है आईटीसी मॉडल
plastic waste. ‘कचरे से कल्याण’ का उसका यह प्रयास पुणे में एक ऐसा मॉडल बनकर सामने आया है जो न सिर्फ सराहनीय है बल्कि देश के अन्य शहरों के लिए अनुकरणीय भी है।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। बिहार में बरसात रुक जाने के बावजूद तीन दिनों तक पटना के राजेंद्र नगर में पानी न उतरना जहां दुर्भाग्यपूर्ण है, वहीं यह सच्चाई भी स्वीकार करनी ही होगी कि उन्हीं पटनावासियों के घरों में चाय बनाने का दूध प्लास्टिक के पाउच में ही आता है। इस्तेमाल करने के बाद उस पाउच को ठिकाने लगाने का कोई ठिकाना अब तक ढूंढा नहीं गया है। 2019 का राजेंद्रनगर हो, या 2005 की मुंबई की बाढ़, इस समस्या में बहुत बड़ी भूमिका प्लास्टिक की रही है।
लेकिन आज की जीवनशैली में चाची की चाय में लगने वाले दूध से लेकर मुन्नू के कुरकुरे और मुनिया के वेफर तक प्लास्टिक के ही किसी पाउच में पैक होकर उन तक पहुंचते हैं। प्रधानमंत्री लाख आह्वान कर लें, लेकिन इस जीवनशैली को पूरी तरह बदला नहीं जा सकता। इसलिए इसके साथ ही जीवन जीने का रास्ता निकालना पड़ेगा। इसी रास्ते की खोज करने के लिए आगे आई है कई प्रकार के खाद्य उत्पादक कंपनी आईटीसी लिमिटेड। हालांकि देश को एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक से मुक्त करने का आह्वान प्रधानमंत्री द्वारा अब किया गया है, लेकिन स्वयं मल्टी लेयर प्लास्टिक पैकेजिंग में अपने खाद्य उत्पादों को पैक करके ग्राहकों तक पहुंचाने वाली आईटीसी लिमिटेड देश के 11 राज्यों में अपने ‘वेलबींग आउट ऑफ वेस्ट’ (वाव) कार्यक्रम के तहत विभिन्न नगर निगमों के साथ मिलकर काफी पहले से काम कर रही है।
अपने इस प्रयास के तहत वह देश के करीब 89 लाख लोगों से वह सीधे जुड़कर जनजागरण, सूखे-गीले कचरे की छंटाई, उन्हें इकट्ठा करना एवं पुनर्चक्रीकरण (रीसाइक्लिंग) कर उन्हें नए उपयोगी स्वरूप में लाने के काम में जुटी है। उसका दावा है कि इन्हीं कारणों से उसे पिछले 12 वर्षों से सॉलिड वेस्ट रीसाइक्लिंग पॉजिटिव कंपनी के रूप में जाना जाता है।
‘कचरे से कल्याण’ का उसका यह प्रयास पुणे में एक ऐसा मॉडल बनकर सामने आया है, जो न सिर्फ सराहनीय है, बल्कि देश के अन्य शहरों के लिए अनुकरणीय भी है। इस प्रयास के तहत खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में उपयोग होने वाले मल्टी लेयर प्लास्टिक (एमएलपी) को घर-घर से इकट्ठा किए गए कचरे में से छांटकर उन्हें पुनर्चक्रीकरण यानी रीसाइक्लिंग के लिए भेज दिया जाता है। सुनने में ये बड़ा सीधा-सादा काम लगता है। लेकिन किसी बड़े महानगर में न तो घर-घर से कचरा इकट्ठा करना आसान था, न ही मल्टी लेयर प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग। क्योंकि मल्टी लेयर प्लास्टिक में उपयुक्त भिन्न-भिन्न पदार्थों की ऐसी दो-तीन पर्तें होती हैं, जिन्हें एक ही तापमान पर गलाकर रीसाइकिल नहीं जा सकता। इसे रीसाइकिल करने की तकनीक भी भारत में मौजूद नहीं थी।
आईटीसी के पर्यावरण, हेल्थ एंड सेफ्टी तथा आरएंडडी प्रमुख चितरंजन दर कहते हैं कि कंपनी ने अपने शोध व विकास (आरएंडडी) विभाग से शोध करवाकर न सिर्फ ऐसे प्लास्टिक को रीसाइकिल करने का तरीका खोजा, बल्कि मुंबई के निकट पालघर स्थित शक्ति प्लास्टिक इंडस्ट्रीज नामक एक प्लास्टिक रीसाइक्लिंग कंपनी को इस काम के लिए अपने साथ जुड़ने को राजी किया।
अब समस्या बड़े पैमाने पर समाज में मौजूद मल्टी लेयर प्लास्टिक को इकट्ठा कर शक्ति प्लास्टिक इंडस्ट्रीज तक पहुंचाने की थी। इस काम में वरदान साबित हुई, पिछले करीब 12 वर्षों से पुणे में काम कर रही कचरा बीनने वालों की संस्था ‘स्वच्छ’। स्वच्छ के सदस्य पुणे शहर के हजारों घरों से रोज सूखा और गीला कचरा इकट्ठा करते हैं। उन्हें पुणे महानगरपालिका द्वारा उपलब्ध कराए गए स्थानों पर बैठकर छांटते हैं। फिर रीसाइक्लिंग योग्य छंटा हुआ प्लास्टिक आईटीसी द्वारा ‘स्वच्छ’ को उपलब्ध कराए गए स्थान पर बंडल बनाकर शक्ति प्लास्टिक्स के पास रीसाइक्लिंग के लिए भेज दिया जाता है।
दर बताते हैं कि आईटीसी पिछले छह महीनों में ‘स्वच्छ’ व पुणे महानगरपालिका के साथ मिलकर करीब 100 मीट्रिक टन मल्टी लेयर प्लास्टिक (एमएलपी) व लो वैल्यू प्लास्टिक (एलवीपी) रीसाइक्लिंग के लिए भेज चुकी है। उनका मानना है कि यदि अन्य शहरों की महानगरपालिकाएं व उद्योग जगत साथ आए, तो पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) का पुणे मॉडल थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ अन्य शहरों में भी कारगर हो सकता है। उनका मानना है कि यह तरीका अब तक असंगठित क्षेत्र के रूप में अपनी जीविका चला रहे कचरा बीनने वालों को संगठित क्षेत्र में बदलकर उनकी बेहतर आमदनी का साधन भी बन सकता है।