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    इस तरह दी कैंसर को मात, अब दूसरों को सिखा रही जीतना

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Sun, 04 Feb 2018 12:44 PM (IST)

    रूबी रेलवे में उच्च अधिकारी हैं। हौसला था, परिवार का साथ था, इसलिए इस मर्ज से लड़कर जीत भी हासिल कर ली।

    इस तरह दी कैंसर को मात, अब दूसरों को सिखा रही जीतना

    ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। कैंसर से मुक्ति पाने में जितनी भूमिका कारगर दवाओं और अच्छे डॉक्टर की होती है, उतनी ही खुद मरीज के मनोबल की भी होती है। इसी के दम पर वह मर्ज से लड़ पाता है। यह कहना है रूबी अहलूवालिया का, जिन्होंने कैंसर को मात देने के बाद कुछ ऐसे लोगों की टीम बनाई, जो उनकी तरह ही स्वयं भी कैंसर को मात दे चुके थे। रूबी की यह टीम अब एक बड़ा रूप ले चुकी है, जो कैंसर पीड़ितों को इससे जीतना सिखा रही है। डॉक्टर और मरीज के बीच कड़ी का काम करने वाली इस सेवा को ‘साइको सोशियो केयर गिविंग कैंसर ट्रीटमेंट’ नाम दिया गया है। जिसके तहत अत्यंत बुरे वक्त में मरीजों का हाथ थामकर उनका मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें उनकी जरूरत की हर जानकारी मुहैया कराई जाती है। ताकि वे अपना इलाज पूरा कर सकें।

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    बनाई ‘संजीवनी- लाइफ बियांड कैंसर’ संस्था

    रूबी अहलूवालिया 43 की थीं, जब उन्हें स्तन कैंसर की तीसरी स्टेज से घिरे होने का पता चला। सुशिक्षित रूबी रेलवे में उच्च अधिकारी हैं। हौसला था, परिवार का साथ था, इसलिए इस मर्ज से लड़कर जीत भी हासिल कर ली। लेकिन इसी लड़ाई के दौरान मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट में आनेवाले कैंसर पीड़ितों की आंखों में दिखी मायूसी ने उन्हें इन मरीजों का दोस्त बनने की प्रेरणा दी। यही प्रेरणा आज देश के नौ शहरों में ‘संजीवनी- लाइफ बियांड कैंसर’ नामक संस्था के रूप में काम कर रही है।

    डॉक्टर और मरीज के बीच एक ‘कड़ी’

    मुंबई का टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल देश में कैंसर के इलाज का सबसे बड़ा केंद्र है। देश भर से मरीज आते हैं। मरीजों का मेला लगा रहता है। नंबर आने पर डॉक्टर से मिलने का समय मुश्किल से पांच-सात मिनट का ही मिल पाता है। इतने कम समय में डॉक्टर से अपनी व्यथा कहना और उनकी बात सुनकर पूरी तरह समझ

    पाना भी मुश्किल ही होता है। रूबी ने अपने इलाज के दौरान इस समस्या को समझा। तभी उनके मन

    में आया कि ठीक होने के बाद डॉक्टर और मरीज के बीच एक ‘कड़ी’ स्थापित की जानी चाहिए, जो किसी मरीज को डॉक्टर से मिलने से पहले उसकी बात समझ सके। फिर डॉक्टर से मिलने के बाद उसे डॉक्टर की बात कायदे से समझा सके। मरीज के काम आनेवाली अन्य जानकारियां भी उन्हें दे सके, ताकि मरीज पूरे आत्म्संतोष के साथ अपना इलाज आगे बढ़ा सकें।

    9 शहरों में चल रहा ‘हैंड होल्डिंग प्रोग्राम’

    इस छोटी सी टीम को टाटा अस्पताल के डॉक्टरों एवं स्वयं रूबी ने प्रशिक्षित भी किया। संजीवनी द्वारा शुरू किया गया यह ‘हैंड होल्डिंग प्रोग्राम’ आज मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, नागपुर सहित देश के नौ शहरों में चल रहा है। इन सभी शहरों में मिलाकर पिछले तीन साल में एक लाख से अधिक मरीजों को मदद की जा चुकी है। इसका असर भी चामत्कारिक रहा है। पिछले वर्ष सुप्रसिद्ध शोध संस्था निर्मला निकेतन ऑफ सोशल साइंसेज ने संजीवनी से मदद पा चुके करीब 400 मरीजों और उनके डॉक्टरों से बात कर हाल ही में अपनी रिपोर्ट दी है। जिसके अनुसार सभी मरीजों ने इसे एक जरूरी सेवा करार दिया है, और 75 फीसद ने तो माना है कि इसके

    बगैर उनका काम चल ही नहीं सकता था।

    ये है संजीवनी  हेल्पलाइन नंबर 691000800 

    इस काम में रूबी का सहयोग दे रहे उनके पति अनिल अहलूवालिया बताते हैं कि इन नौ शहरों में काम कर रही

    कुशल टीम खड़ी करने के साथ-साथ संजीवनी द्वारा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस्स) के साथ मिलकर चार माह का ‘ऑन्कोलॉजी केयर गिविंग कोर्स’ भी शुरू किया गया है। 120 घंटों के थ्योरी एवं 240 घंटों के प्रैक्टिकल, इस कोर्स का पाठ्यक्रम भी रूबी ने ही तैयार किया है। ताकि यह कोर्स करके निकले लोग मरीजों के और बेहतर मददगार बन सके। यही कारण है कि संजीवनी से एक बार मदद पा चुका कोई मरीज अब अपने किसी परिचित के कैंसर के चंगुल में फंसने पर उसे संजीवनी का हेल्पलाइन नंबर 8691000800 देना नहीं भूलता।

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