अपना घर है तो नहीं मिलना चाहिए सरकारी आवासः बांबे हाई कोर्ट
याचिका में मुंबई के उपनगर ओशिवारा में हाई कोर्ट न्यायाधीशों के लिए बहुमंजिली इमारत बनाने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया गया है।
मुंबई, जेएनएन। महाराष्ट्र में अगर किसी नौकरशाह या न्यायाधीश का कोई मकान या रिहायशी भूखंड है तो सरकारी योजना में उसे अन्य रिहायशी संपत्ति आवंटित नहीं की जाए। बांबे हाई कोर्ट ने यह मंशा एक मामले की सुनवाई करते हुए जताई है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह मंशा सामाजिक कार्यकर्ता केतन तिरोडकर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जताई है।
याचिका में मुंबई के उपनगर ओशिवारा में हाई कोर्ट न्यायाधीशों के लिए बहुमंजिली इमारत बनाने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया गया है। यह इमारत 32,300 वर्गफीट के भूखंड पर बन रही है। इसमें कुल 84 फ्लैट बनने हैं। इनका मालिकाना हक न्यायाधीशों को दिया जाना है। तिरोडकर ने कहा कि हाई कोर्ट में कार्यरत न्यायाधीशों के अलावा सरकार ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जजों को भी बिल्डिंग में फ्लैट आवंटित किए हैं। उन जजों को भी फ्लैट दिए गए हैं जो हाई कोर्ट से प्रोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट चले गए। बहस सुनने के बाद जस्टिस गवई ने कहा, अगर किसी न्यायाधीश या नौकरशाह के पास शहर या प्रदेश में अपना मकान है तो उसे रिटायरमेंट के बाद रहने के लिए दूसरे भवन या फ्लैट की क्या जरूरत होगी? ऐसे में उसे किसी सरकारी योजना में मकान या भूखंड नहीं मिलना चाहिए। पीठ ने महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी को मामले में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस से गुरुवार को ही बात करने को कहा। मामले पर शुक्रवार को भी सुनवाई होगी।