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    Ganesh Chaturthi 2022: गणपत‍ि उत्‍सव सौ साल पुराने अंदाज में मनाया जाता है यहां

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 09 Sep 2022 07:55 AM (IST)

    भगवान गणेश के एक नाम यह भी है। 1920 में चिंचपोकली में यहां के न‍िवासियों ने इसकी स्‍थापना की। यह मंडल महाराष्‍ट्र के कोंकण क्षेत्र के लोगों के द्वारा बसाया गया था जो क‍ि वहां से बेहतर अवसर की खोज में मुंबइ आ गए।

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    गणेशोत्सव एक दिन इतना बड़ा उत्‍सव बन देशवासियों को ही नहीं, दुनिया भर में भारत को एक अलग पहचान देगा।

    सीमा झा, मुबई। मोरया रे की गूंज के बीच यदि आप गणेशोत्सव के शुरुआती इतिहास को जानना व उनके प्राचीन गलियों में खोना चाहते हैं तो आपको मुंबई के कुछ खास गणपत‍ि मंडल के दर्शन जरूर करना चाहिए।

    लोकमान्‍य बाल गंगाधर त‍िलक ने कहां सोचा होगा साल 1893 में शुरू होने वाला गणेशोत्सव एक दिन इतना बड़ा उत्‍सव बन देशवासियों को ही नहीं, दुनिया भर में भारत को एक अलग पहचान देगा। मुम्बई में घर-घर में गणपत‍ि लाने की परंपरा तो यहां है ही ये त‍िलक थे जन्हिोंने सार्वजनिक रूप से गणेश उत्‍सव मनाने की परंपरा डाली थी। पर उत्सव जहां ग्लैमर व आधुनिक प्रभाव से भरा है वहां यह परंपरा आज भी उसी अंदाज में महसूस कर सकें तो यह अहसास खास है।

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    आपको ऐसा आनन्द यहां केशव जी चॉल मिलेगा। यहां गणेश जी अपने उसी रूप में लाए जाते हैं जैसा क‍ि एक सौ तीस वर्ष पहले बाल गंगाधर त‍ि लक के समय पूजा होती थी। बिल्कुल छोटे से गणपति जिसे यहां के चॉल वासी व मुम्बईकर खूब श्रद्धा से पूजते हैं।

    यह चॉल भी मुबई के चॉल में सबसे परानी चॉल है। अशोक पेंडेकर जो क‍ि इस गणपत‍ि मंडल के सचिव हैं वे बताते हैं, ‘ दरअसल, भक्ति शांत भाव से अपने इष्‍ट के पास बैठकर की जा सकती है, आप यहां आकर महसूस करेंगे। शाम की जैसी आनंदपूर्वक आरतीऔर उसका गायन आपको यहां देखने केा मिलेगा और यहां कहीं नहीं।’ मुंबई में एक तरफ भव्‍य पंडालों के दर्शन के लिए लेागों की भीड़ का आलम ऐसा होता है क‍ि इन पंडालों में त‍िल रखने की जगह नहीं होती यहां भीड़ होने के बाद भी एक अलग अनुशासन नजर आता है। मंदिरनुमा तर्ज पर इसका एक छोटा सा पंडाल होता है और गणेश जी उसी आकार में बिराजते हैं जैसे क‍ि आज से 130 वर्ष पहले।

    केशव जी चॉल के गणपत‍ि में यह भव्‍यता भले गायब है लेकिन यहां भक्‍तों केआनंद कोई सीमा नहीं होती। आरती के समय वातावरण मराठी में गाए आरती से गूंज उठता है। आमतौर लोग इतने समय तक की अवधि वाली आरती को देखकर हतप्रभ होते हैं और साथ में हर्ष से भर उठते हैं।

    इसी तरह, एक अन्‍य प्राचीन गणपत‍ि है चिंतामणि गणपति‍। भगवान गणेश के एक नाम यह भी है। 1920 में चिंचपोकली में यहां के न‍िवासियों ने इसकी स्‍थापना की। यह मंडल महाराष्‍ट्र के कोंकण क्षेत्र के लोगों के द्वारा बसाया गया था जो क‍ि वहां से बेहतर अवसर की खोज में मुंबइ आ गए। दक्षिण केंद्रीय क्षेत्र में बसे ये लोग दरअसल, मुख्‍य रूप से बुनकर के रूप लालबाग और परेल क्षेत्र में काम करते थे। पिछले दो सालों के बाद यहांदोबारा वही रौनक देखने को म‍ि ल रही है जो क‍ि 2019 से पूर्व था। यहां के मौजूदा अध्‍यक्ष व‍िदयाधर घाड़ी के अनुसार, यहां केगणपत‍ि कोरोना काल में नहीं थे ऐसा नहीं है। वे हमारे घरों में थे और हमने उस वर्ष को जन आरोग्‍य वर्ष के रूप में मनाया था। इसके बाद उन्‍होंने इस गणपत‍ि के पूर्वरूपोंकादर्शन कराया जो क‍ि उनके अलबम में था। यहां वे कुछ तस्‍वीरेंआपदेख सकते हैं।

    नोट- नीचे केशव जी की प्रतिमा, शेष चिंतामणि की प्राचीन प्रतिमाएँ।