Ganeshotsav 2020: कंटेनमेंट जोन में रहने वाले ऐसे करें मूर्ति विसर्जन, BMC ने दिया निर्देश
Ganeshotsav in containment zones बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने कंटेनमेंट जोन में रहने वालों लोगों से अपील की है कि वह गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन अपने घरों में ही करें।
मुंबई, एएनआइ। कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ रहे मामलों को देखते हुए बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने कंटेनमेंट जोन में गणेशोत्सव को लेकर कुछ दिशा - निर्देश जारी किये हैं। जिसके अनुसार यहां गणेशोत्सव के बाद मूर्तियों का विसर्जन पानी की टंकियों में कंटेनमेंट जोन के अंदर रहते हुए ही करना होगा। इमारतों में रहने वाले लोगों को अपने घर में ही मूर्ति विसर्जन की सलाह दी गयी है।
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के मद्देनजर महाराष्ट्र सरकार ने इस साल गणपति उत्सव बेहद सादगी से मनाने की अपील की है। कोरोना के कारण इस पर्व से जुड़े हुए लोगों की आजीविका पर विपरीत प्रभाव पड़ा है जो हर साल मुंबई में गणपति उत्सव के दौरान करोड़ों रुपये से ज्यादा का कारोबार करते थे।
यहां लगभग 12,000 सार्वजनिक गणेश मंडल हैं। नगरनिगम, सरकार और गणेश मंडल के बीच समन्वय स्थापित करने वाली संस्था बृहन्मुंबई सार्वजनिक गणेशोत्सव समन्वय समिति के अध्यक्ष नरेश दहीबावकर ने बताया कि लोग अपने घरों में प्रत्येक वर्ष लगभग दो लाख गणेश मूर्तियां की स्थापना करते हैं। उत्सव के दौरान कई छोटे उद्योगों से लोग जुड़ जाते हैं कोई फूल बेचने वाले , बिजली कर्मी, मंडप के लिए बांस बेचने वाले, परिवहन सेवाएं देने वाले, कारीगर और बहुत सारे लोग गणेशोत्सव से संबंधित कार्यो में शामिल होते हैं। उन्होंने बताया कि करोड़ों के कारोबार से सरकार को भी कर प्राप्त होता है।
लेकिन इस साल उत्सव से जुड़े लोगों की आजीविका पर विपरीत असर पड़ेगा। बता दें कि महाराष्ट्र में गणेशोत्सव सबसे लोकप्रिय पर्व है। ‘गणेश चतुर्थी’ के दिन आरंभ होने वाले दस दिवसीय इस उत्सव के दौरान मुंबई और राज्य के अन्य स्थानों में विभिन्न मंडलों द्वारा पंडालों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है और हजारों की संख्या में प्रतिदिन श्रद्धालु वहां गणपति के दर्शनों के लिए आते हैं।
इस वर्ष ये गणेश चतुर्थी का पर्व 22 अगस्त को मनाया जाएगा। एक शताब्दी से भी अधिक समय से सार्वजनिक पर्व होने के बाद से गणपति उत्सव का दायरा कई गुना बढ़ चुका है। दहीबावकर के अनुसार 1896 में प्लेग फैला था जिसके कारण उस समय भी गणेशोत्सव सादगी से मनाया गया था और लोगों ने अपने घरों में मूर्तियों की बजाय भगवान गणेश के चित्र लगाकर पर्व मनाया था।