अनुराग कांबले (मिड-डे), मुंबई। यदि पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता मिलता है तो उसमें पति को स्कूल फीस का भुगतान करना जरूरी नहीं है। यह बात बोरीवली मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने कही है। दरअसल, बोरीवाली की रहने वाली एक महिला अपने और बेटे का गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए अपने पति के खिलाफ वारंट की मांग कर रही थी।
हालांकि, पति ने दावा किया था कि उसने बच्चे के स्कूल की फीस का भुगतान किया है। सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट ने यह भी पाया कि रखरखाव घरेलू उपयोग के लिए है। वहीं, मिलने वाले गुजारे भत्ते में स्कूल फीस का भुगतान करना जरूरी नहीं है।
अदालत में ससुरालवालों के खिलाफ मामला कराया दर्ज
बोरीवली पश्चिम की रहने वाली 31 वर्षीय महिला ने सितंबर 2017 में बोरीवली मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में अपने ससुरालवालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था। महिला ने साल 2008 में शादी की थी लेकिन तब से कथित तौर पर दुर्व्यवहार और शारीरिक प्रताड़ना का शिकार होती रही। शादी के लगभग 9 साल बाद महिला अपने बेटे के साथ साल 2016 से अलग रहने लगी। वहीं, घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट, बोरीवली ने 22 मार्च 2022 को भरण-पोषण राशि का भुगतान करने का आदेश दिया था और पति को निर्देश दिया था कि वह आवेदन दाखिल करने की तारीख यानी 27 सितंबर 2017 से प्रति माह 10,000 रुपये और उसके बेटे को 20,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करे। पति से गुजारा भत्ता नहीं मिलने पर महिला ने बोरीवली मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में अर्जी दाखिल कर पति के खिलाफ वारंट जारी करने की मांग की थी।
पति ने गणना में शैक्षिक व्यय को शामिल किया है
अर्जी दाखिल करने के बाद पति (डिंडोशी) ने सत्र न्यायालय में कहा कि उसने रखरखाव राशि के लिए 8.11 लाख रुपये जमा किए हैं। पति के खिलाफ भरण पोषण व प्रेसिंग वारंट की वसूली के लिए महिला ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में याचिका दायर की थी। एसएमए सैय्यद, 68वें कोर्ट, बोरीवली के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने पाया कि पति के खिलाफ 12.40 लाख रुपये की राशि बकाया है। इसके अलावा, पति ने गणना में शैक्षिक व्यय को शामिल किया है जो कि मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा पारित आदेश का हिस्सा नहीं है। इसलिए, उनके द्वारा प्रस्तुत की गई गणना गलत है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि, मजिस्ट्रेट कोर्ट के उक्त आदेश में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि भरण-पोषण की राशि में शिक्षा खर्च शामिल है। इसलिए अदालत ने अंतरिम रखरखाव के लिए पति द्वारा भुगतान की गई राशि को बकाया के रूप में शामिल करने से इनकार कर दिया। महिला की ओर से पेश वकील इशिका तोलानी ने कहा, 'सत्र अदालत ने महिला और उसके बेटे को प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। लेकिन इसमें कहीं भी बच्चे की पढ़ाई के खर्च का जिक्र नहीं है। फिर भी पति ने भरण-पोषण के रूप में फीस के रूप में भुगतान की गई राशि का दावा करके अदालत को गुमराह करने की कोशिश की।
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