मोटे अनाज जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में सक्षम, पीएम भी कर चुके इसके उत्पादन का आह्वान
एमओ मंडला के डायरेक्टर शांत चड्ढा ने बताया कि बीते कुछ वर्षों के दौरान मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ने के साथ ही उनकी सप्लाई भी बेहतर हुई है। लोगों में स्वास्थ्य-जागरूकता आने के साथ ही इनका बाजार बढ़ रहा है। पांच साल में इसका कारोबार पांच गुना हो चुका है।
कमलेश मिश्रा, जबलपुर।औषधीय खाद्य के रूप में जैसे-जैसे मोटे अनाज यानी मिलेट्स को अपनाने की रफ्तार बढ़ी है, वैसे-वैसे इससे बने उत्पादों की आपूर्ति का व्यापार भी विस्तार पा रहा है। पथरीली भूमि पर खेती करने वाले आदिवासी किसान पहले कोदो-कुटकी का उत्पादन कर स्थानीय बाजारों में बेचते थे। इससे न तो उनको फसल का बेहतर मूल्य मिल पाता था अौर न ही बाहर के बाजारों तक उनकी सीधी पहुंच हो पाती थी। अब जबलपुर संभाग के आठ जिलों के किसान मोटे अनाज की मार्केटिंग से स्वावलंबन की नई कहानी रच रहे हैं। इन्होंने न केवल इनका रकबा बढ़ाया बल्कि पांच हजार से ज्यादा स्व-सहायता समूह बन चुके हैं। यहीं नहीं, मंडला जिले में चार प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित की जा चुकी हैं। कुछ अन्य यूनिटों के जल्द शुरू किए जाने की संभावना है।
116 प्रतिशत बढ़ा रकबा
संभाग में मुख्यतया मंडला-डिंडौरी और जबलपुर जिले के कुंडम क्षेत्र में ही मोटे अनाज में कोदो-कुटकी का उत्पादन हो रहा है। अन्य जिलों में भी इनकी खेती बढ़ती जा रही है। लगातार बढ़ती मांग के चलते बीते एक साल में रकबे में 116 प्रतिशत बढ़ोतरी हो चुकी है। अब मध्य प्रदेश में इस बेल्ट को मोटे अनाज का कटोरा कहा जाने लगा है। पहले किसान केवल फसल उत्पादन करने और उसे बेचने वाला होता था लेकिन बदलते परिवेश में वो किसान उत्पादक कंपनियों का शेयर होल्डर हो गया है। कान्हा कृषि वनोपज प्रोडक्शन कंपनी के सीईओ रंजीत कछवाहा का कहना है कि रंजीत कछवाहा का कहना है कि उनकी कंपनी से मंडला जिले की 744 महिला किसान भी जुड़ी हैं। ये सभी कोदो कुटकी के साथ ही सुगंधित चावल के उत्पादन से जुड़ी हैं।
इस तरह से पहुंचता है बाजार
प्रत्येक किसान किसी न किसी स्व-सहायता समूह का हिस्सा होता है। प्रत्येक स्व-सहायता समूह किसी न किसी रिसोर्स एजेंसी से जुड़ा होता है। ये रिसोर्स एजेंसी भी एनआरएलएम, नाबार्ड, आजीविका मिशन जैसे शासकीय उपक्रमों से जुड़ी रहती हैं। ये शासकीय उपक्रम एक तरह से रिसोर्स एजेंसी को सहयोग और उनकी मानीटरिंग करती हैं। रिसोर्स एजेंसियां अपनी सुविधा के अनुरूप प्रोसेसिंग प्लांटों से संपर्क कर उनको उपज भेजती हैं।
कोदो और कुटकी से बनाए गए बिस्किट। फाइल फोटो - सौजन्य : कान्हा कृषि वनोपज प्रोडक्शन कंपनी
बिस्किट भी बनना शुरू
मंडला के ग्रामीण क्षेत्र में नर्मदा सेल्फ रिलाइंट फार्मर प्राेड्यूसर कंपनी काम कर रही है। यद्यपि इस कंपनी ने अभी अपनी प्रोसेसिंग यूनिट नहीं डाली है, लेकिन जल्द ही उसकी ओर से यूनिट लगाए जाने की बात कही जा रही है। बिछिया में काम करने वाला तेजस्विनी कोदो-कुटकी एकता महिला महासंघ ‘कोको’ के नाम से अपने प्रोडक्ट बना रही है। उसने अपनी प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित कर ली है। यहां कोदो के बिस्किट बनाए जा रहे हैं।
एनजीओ देते हैं जानकारी और प्रशिक्षण
कान्हा कृषि वनोपज प्रोडक्शन कंपनी के सीईओ रंजीत कछवाहा ने बताया कि किसानों की मदद के लिए अनेक एनजीओ उनको प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहे हैं। उनको फसल बीमा और अन्य शासकीय योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मंडला-डिंडोरी में एक जिला एक उत्पाद के रूप में कोदो कुटकी का चयन किया गया है। 2023 मिलेट ईयर के रूप में मनाया जाने वाला है, इसलिए जिला प्रशासन की तैयारी है कि हर गांव में इसके उत्पादन का रकबा बढ़े और उत्पादों की सप्लाई चेन मजबूत हो ताकि खेत से उपभोक्ता तक की राह आसान हो सके।
एमओ मंडला के डायरेक्टर शांत चड्ढा ने बताया कि बीते कुछ वर्षों के दौरान मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ने के साथ ही उनकी सप्लाई भी बेहतर हुई है। लोगों में स्वास्थ्य-जागरूकता आने के साथ ही इनका बाजार बढ़ रहा है। पांच साल में इसका कारोबार पांच गुना हो चुका है।