इंदौर राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस: नए की तुलना में पुराने शहर को दोबारा विकसित करना चुनौतीपूर्ण
आईडीए के पूर्व चीफ टाउन प्लानर विजय मराठे ने कहा कि आईडीए, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम आदि जैसी कई संस्थाएं शहर का विकास करती हैं। देखने में आता है कि इनके बीच में सामंजस्य की कमी है।
संसाधन बहुत सीमित हैं और हमें इनका उपयोग करते हुए ही शहर को विकसित करना है। पूरे शहर को एक साथ स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित नहीं कर सकते हैं, इसलिए पहले एक हिस्से को स्मार्ट सिटी बनाया जाएगा और फिर दूसरे हिस्सों में इसे रेप्लिकेट करेंगे। शहर की सबसे पहली जरूरत पानी की उपलब्धता और सीवरेज है। हमें संसाधनों के रीयूज पर भी ध्यान देना होगा। इससे दबाव कम होगा। स्मार्ट सिटी में पुराने शहर को विकसित करना भी हमारा लक्ष्य है। नए की तुलना में पुराने को दोबारा विकसित करना चुनौतीपूर्ण है। पुराने शहर के साथ ऐतिहासिक धरोहर को सहेजना भी उतना ही जरूरी है। धरोहर किसी भी शहर की पहचान होती है। स्मार्ट सिटी के अगले चरण में आईटी इनिशिएटिव लिए जाएंगे, जिससे लाइफ स्टाइल बेहतर होगी।
अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी
यह बात नईदुनिया की ओर से आयोजित 'माय सिटी माय प्राइड राउंड' टेबल कॉन्फ्रेंस में पहुंचे नगर निगम के अपर आयुक्त रोहन सक्सेना ने कही। शनिवार को आयोजित चर्चा में शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े विशेषज्ञों ने शहर के विकास को सुनियोजित करने के बारे में बताया। इस दौरान यह बात निकलकर आई कि हमें विकास को आज की जरूरतों के बजाय भविष्य की जरूरतों पर केंद्रित रखना चाहिए।
रीयल एस्टेट डेवलपर अभिषेक झवेरी ने कहा कि 2008 के मास्टर प्लान की सड़कें अभी तक नहीं बन पाई हैं। सड़कें शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर का सबसे महत्वपूर्ण भाग हैं। यदि संबंधित विभाग इन सड़कों का निर्माण अच्छे से समय पर करें तो इससे दूसरे डेवलपमेंट को फायदा मिलेगा।
समाजसेवी डॉ. अनिल भंडारी ने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर को पर्यावरण के साथ जोड़कर देखना जरूरी है। शहर के विकास की प्लानिंग ईको फ्रेंडली होना चाहिए, जिसकी अभी कमी है। मास्टर प्लान में जितनी जगह ग्रीन बेल्ट को दी है, उतने में ग्रीन बेल्ट नहीं बना है। कई जगहों पर ग्रीन बेल्ट पर बस्तियां बस गई हैं। इसके लिए कड़ा कानून भी बनाना चाहिए। यदि यही हाल रहे तो हमारी आने वाली पीढ़ी को हम क्या सौंपेंगे।
दूसरी ओर शहर में माइग्रेशन को भी कम करना होगा। शहर के आसपास ऐसी सुविधाएं विकसित करना होंगी कि लोग शहर में माइग्रेट होने के बजाय आसपास रह सकें। वहां पर अच्छी टाउनशिप भी डेवलप हो सकें।
सांसद प्रतिनिधि राजेश अग्रवाल ने कहा कि इंदौर विलक्षण शहर है। यह देश के केंद्र में है और यहां बहुत अधिक संभावनाएं हैं। शहर की कनेक्टिविटी देश के दूसरे हिस्सों से बहुत अच्छी है। इन संभावनाओं के साथ हमें फाइनेंशियल स्थिति भी देखना चाहिए। वित्तीय क्षमता को पूरा इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप करने में करना चाहिए। सड़कें चौड़ी की जा रही हैं, लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण की ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। शहर के विकास में पार्किंग, हॉकर जोन और फुटपाथ का निर्माण महत्वपूर्ण है।
पीडब्ल्यूडी के रिटा. चीफ इंजीनियर पीसी अग्रवाल ने कहा कि मैं सड़क को दो तरह से देखता हूं, एक शहर के अंदर की सड़कें और एक बाहर। बाहर की सड़कें बहुत महत्वपूर्ण हैं। बायपास और रिंग रोड का निर्माण शहर को क्षैतिज विकास की ओर ले जाता है। शहर के बाहर सड़कें बनाने से शहर की परिधि बढ़ती है और यह खिंच जाता है। सड़कों के किनारे ग्रीन बेल्ट भी होता है और यह सबसे ज्यादा ईकोफ्रेंडली है। हमारे शहर की सड़कों के किनारे बने ग्रीन बेल्ट खूबसूरत हैं। हम कहीं न कहीं पैदल चलने वालों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इनके लिए भी इंफ्रास्ट्रक्चर में जगह रखना चाहिए। इंदौर के लोगों की सबसे अच्छी बात यह है कि लोग शहर के बारे में सोचते हैं। माय सिटी माय प्राइड भी इसी दिशा में एक अच्छी पहल है।
आईडीए के पूर्व चीफ टाउन प्लानर विजय मराठे ने कहा कि आईडीए, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम आदि जैसी कई संस्थाएं शहर का विकास करती हैं। देखने में आता है कि इनके बीच में सामंजस्य की कमी है। एक एजेंसी अपना काम अपने हिसाब से करके चली जाती है, इसके बाद दूसरी एजेंसी आती है तो वह अपने हिसाब से काम करती है। इनके बीच को-ऑर्डिनेशन बनाना जरूरी है। आज हम 1930 में बनाए मास्टर प्लान की सड़कें डाल रहे हैं। सड़क का निर्माण टुकड़ों में नहीं होना चाहिए। एक सड़क एक साथ पूरी बनाई जाना चाहिए। हमें भविष्य का भी बेहतर आकलन करना होगा, जिससे विकास इसे ध्यान में रखते हुए किया जाए।
रेलवे विशेषज्ञ नागेश नामजोशी का कहना था कि इंदौर से दाहोद और मनवाड़ रेल लाइन के बाद यहां पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा होगा। यह एक जंक्शन की तरह काम करेगा। भविष्य की इस जरूरत के लिए हमें अभी से तैयार होने की जरूरत है, इसलिए स्टेशनों को इसके लिए अभी से विकसित करना शुरू कर देना चाहिए। स्टेशनों पर स्कायवॉक की बहुत जरूरत है। इससे स्टेशन से आने वाला ट्रैफिक आसानी से पास हो सकेगा।
स्ट्रक्चरल इंजीनियर अतुल सेठ ने कहा कि 2060 में भारत की जनसंख्या स्थिर होने का अनुमान है। अभी तक हमने शहर की जनसंख्या का आकलन नहीं किया है और हमें यह नहीं पता है कि हम कहां जाकर स्थिर होंगे। यदि यह आकलन हो जाए तो फिर शहर का विकास भी इसी को ध्यान में रखते हुए किया जाए। जितनी भी सड़कों का निर्माण हो रहा है, उसमें चौड़ाई पर ध्यान देना जरूरी है।
इसके साथ ही सड़क के ट्रैफिक और चौड़ाई का कोई पैमाना होना चाहिए। नई सड़कों पर पुलिया का निर्माण भी अब नहीं होता है, जिससे बारिश के पानी की समस्या बनती है। सड़क का फॉर्मेशन लेवल देखने वाला भी कोई नहीं है। हम 25 हजार करोड़ रुपए मेट्रो पर खर्च कर रहे हैं, लेकिन इसकी इंटरकनेक्टिविटी पर ध्यान ही नहीं है। लोकल मार्केट भी विकसित करना इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए जरूरी है।
इंटीरियर डिजाइनर प्रगति जैन ने कहा कि शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में डिजाइनर्स भी अपना योगदान देना चाहते हैं। हमने निगम को यह प्रस्ताव दिया था कि हम शहर के सभी गॉर्डन का डिजाइन फ्री में बनाकर देने के लिए तैयार हैं। इस दिशा में कोई सकारात्मक जवाब ही नहीं मिला। अभी निगम रहवासियों से पूछकर और अपने हिसाब से इनका निर्माण कर लेता है।
आर्किटेक्ट शीतल कापड़े ने कहा कि 18 साल पहले जब अहमदाबाद से इंदौर आई थी तो इंदौर ज्यादा विकसित नहीं था। आज मुझे इंदौर अहमदाबाद से भी ज्यादा विकसित लगता है। हम अब इंदौर पर गर्व कर सकते हैं। शहर की प्लानिंग में ऐसे लोगों को शामिल करना जरूरी है, जो इंदौर से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जो 50 साल से इंदौर में रह रहे हैं। यह लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मुझे यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में पब्लिक प्लेसेस की कमी नजर आती है। इंफ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से साइंस सिटी, एक्जीबिशन सेंटर जैसे पब्लिक प्लेस बनाने चाहिए।
आर्किटेक्ट परेश कापड़े ने कहा कि स्मार्ट सिटी की परिकल्पना में टेक्नोलॉजिकल इनीशिएटिव के बारे में सोचना चाहिए। हम पूरे शहर में फ्री वाईफाई देने की बात करते हैं। आज इसकी क्या जरूरत है। हर आदमी के हाथ में फोन है और लगभग निशुल्क डेटा भी मिल रहा है। दूसरी ओर हम रीवर्किंग भी बहुत ज्यादा कर रहे हैं। कभी चौराहे को चौड़ा करते हैं तो फिर दोबारा उसे संकरा कर देते हैं। यहां पर प्रतिमाएं भी लगा दी जाती हैं, जिससे इन्हें हटाना मुश्किल है।
मास्टर प्लान विशेषज्ञ जयवंत होल्कर ने कहा कि 2021 के मास्टर प्लान में मैं भी शामिल रहा हूं। मास्टर प्लान में शहर की जरूरत के अनुसार सबकुछ मौजूद है। इसे 36 लाख आबादी को ध्यान में रखकर बनाया गया है। मास्टर प्लान में तो सबकुछ शामिल होता है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह दिखाई नहीं देता है। 15 प्रतिशत हमने ग्रीनरी के लिए छोड़ा है, लेकिन बनाया तो 7 प्रतिशत ही है। यह 7 प्रतिशत भी अस्त-व्यस्त है। डेवलपमेंट में परेशानी भी बहुत है। जब सड़क बनाने जाते हैं तो विरोध होने लगता है। कब्जा हटाएं तो विरोध होता है। सभी का सहयोग जरूरी है।
क्रेडाई इंदौर चैप्टर के अध्यक्ष विजय गांधी ने कहा कि मास्टर प्लान बनाने के बाद विकास शुरू होते ही हर साल इसका आकलन होना चाहिए। यह बात लोगों को पता होना चाहिए कि साल में कितने प्रतिशत काम पूरा किया गया। हर साल आकलन होने से यह पता चल सकेगा कि कितना काम वास्तव में हुआ है।
अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी