इंदौरः बहुत मुश्किल था समझाना कि मौत के बाद भी कोई पुण्य कमा सकता है
मुस्कान ग्रुप के माध्यम से अब तक साढ़े सात हजार से ज्यादा कार्निया दान में प्राप्त किए जा चुके हैं। आर्य और बागानी दोनों ही व्यापारी हैं, लेकिन अंगदान और नेत्रदान के लिए लोगों को प्रेरित करने का सेवा कार्य उनके पेशे में बाधा नहीं बनता।
दो व्यापारी जिनका मेडिकल से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सम्मान ऐसा कि बड़े-बड़े डॉक्टर उनके जज्बे को सलाम करते हैं। दोनों मरीजों का इलाज तो नहीं कर सकते, लेकिन वे जो करते हैं, वह गमजदा परिवार को सुकून जरूर दे जाता है। सर्दी-गर्मी हो या बरसात, इनका जज्बा कम नहीं होता। ब्रेन डेथ की सूचना मिलते ही दोनों पहुंच जाते हैं उस अस्पताल में जहां मरीज भर्ती है।
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परिजन की काउंसलिंग कर उन्हें समझाते हैं कि ब्रेन डेथ घोषित हो चुके मरीज के अंगदान कर कैसे वे उसकी आत्मा को शांति पहुंचा सकते हैं। कैसे एक व्यक्ति मरने के बाद भी पुण्य कमा सकता है और परिजन उसके पुण्य के इस कार्य में सहभागी बन सकते हैं। हम बात कर रहे हैं कपड़ा व्यापारी संदीपन आर्य और महारानी रोड पर इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान के संचालक जीतू बागानी की। दोनों मुस्कान ग्रुप के सेवादार हैं और करीब 10 साल से सेवा कार्य में लगे हैं।
इस ग्रुप की स्थापना यूं तो 23 साल पहले निर्धन बच्चियों की शादी कराने से हुई थी लेकिन करीब 10 साल से यह नेत्रदान, त्वचा दान, देहदान से जुड़ा है। 2013 से इस ग्रुप ने खुद को अंगदान से जोड़ लिया। इसी वर्ष इंदौर सोसायटी फॉर ऑर्गन डोनेशन की स्थापना हुई। आर्य और बागानी इस सोसायटी से जुड़े और उन्होंने ब्रेन डेथ घोषित हो चुके मरीज के परिजन की काउंसलिंग का जिम्मा संभाल लिया। दोनों का परिवार मूलत: अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के सक्खर जिले का है।
आर्य के मुताबिक वर्ष 2004 में उनकी मां का निधन हुआ। उन्होंने उनके नेत्रदान का विचार किया तो रिश्तेदारों ने विरोध कर दिया। बावजूद इसके नेत्रदान किया गया। उठावने में जब इंदौर आई हॉस्पिटल की तरफ से डॉक्टर धन्यवाद पत्र लेकर आए तो वही रिश्तेदार तारीफ करने लगे। इस घटना से उन्हें सेवाकार्य से जुड़ने की प्रेरणा मिली।
लगभग ऐसी ही कहानी बागानी की है। करीब 8 साल पहले एक मित्र की मृत्यु के बाद उन्होंने रिश्तेदारों के विरोध के बावजूद परिजन को नेत्रदान के लिए तैयार किया। बाद में मुस्कान ग्रुप से जुड़े और खुद नेत्रदान प्राप्त करने की ट्रेनिंग ली। वे अब तक 1500 से ज्यादा नेत्रदान खुद प्राप्त कर चुके हैं।
मुस्कान ग्रुप के माध्यम से अब तक साढ़े सात हजार से ज्यादा कार्निया दान में प्राप्त किए जा चुके हैं। आर्य और बागानी दोनों ही व्यापारी हैं, लेकिन अंगदान और नेत्रदान के लिए लोगों को प्रेरित करने का सेवा कार्य उनके पेशे में बाधा नहीं बनता। परिजन भी उनके इस पुण्य सेवा कार्य में सहयोगी बनने को तत्पर रहते हैं।
बागानी और आर्य के मुताबिक नेत्रदान, देहदान को लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ रही है। अंगदान को लेकर अब भी काम करना बाकी है। पहले परिजन की स्वीकृति लेना बहुत मुश्किल होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। वे स्वप्रेरणा से फोन कर सूचना देने लगे हैं।
6 साल पहले दोनों निजी अस्पताल में चल रहे स्किन बैंक से जुड़े। 6 साल में ही इंदौर देश में स्किन डोनेशन के मामले में देश में दूसरे स्थान पर पहुंच गया। अब यहां से त्वचा के टिशू पूरे देश में भेजे जा रहे हैं। 6 साल में करीब 450 स्किन डोनेशन प्राप्त किए गए। ऑर्गन डोनेशन सोसायटी के माध्यम से 31 महीने में हुए 34 अंगदान में आर्य और बागानी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दोनों बताते हैं कि अस्पताल में भर्ती मरीज के परिजन को यह समझाना कि वे मरीज के अंगदान कर कई लोगों को जीवन दे सकते हैं, बहुत मुश्किल होता है। कई बार अप्रिय स्थिति भी बनती है, लेकिन ग्रुप के सेवादार पूरी शिद्दत से अपने काम में लगे रहते हैं।
- संदीपन आर्य और जीतू बागानी इंदौर के मुस्कान ग्रुप से जुड़े हैं।