स्वाद, शिक्षा और उद्यमिता का बेजोड़ मेल, तीन साल में 25 हजार करोड़ का निवेश
महज तीन साल में 300 बड़ी और मध्यम इंडस्ट्रीज इंदौर में खुल चुकी हैं। 25 हजार करोड़ का निवेश शहर के औद्योगिक क्षेत्रों में इन उद्योगों के जरिए हुआ है।
कपास की मंडी और कपड़ा मिलों के दम पर कभी पूरे देश के कारोबारी जगत में राज करने वाले इंदौर की बादशाहत मिलों के बंद होने बाद भी बरकरार है। नमकीन और स्वाद के लिए पहचाने जाना वाला ये शहर प्रदेश में औद्योगिक व आर्थिक विकास का भी सिरमौर है। नोटबंदी और जीएसटी के कठोर फैसलों के बीच भी यहां उद्योग के विकास की रफ्तार मंद नहीं पड़ी।
महज तीन साल में 300 बड़ी और मध्यम इंडस्ट्रीज इंदौर में खुल चुकी हैं। 25 हजार करोड़ का निवेश शहर के औद्योगिक क्षेत्रों में इन उद्योगों के जरिए हुआ है। सीधे तौर पर आने वाले दिनों में 30 हजार नौकरियां इनकी बदौलत पैदा होती दिख रही है। शहर की इस कारोबारी सफलता में सरकार से ज्यादा शहर का पुरुषार्थ काम कर रहा है।
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यह इंदौर की ही तासीर है कि औद्योगिक निवेश के लिए सबसे अहम आयोजन ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट को खजुराहों जैसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर ले जाने की कोशिश हुई। हालांकि सरकार को आखिर फिर इंदौर लौटना पड़ा। सरकार की इच्छा के बावजूद राजधानी भोपाल भी इनवेस्टर्स समिट की मेजबानी के पैमानों पर खरा नहीं उतर सका।
देश के अन्य प्रदेशों के मुकाबले मप्र की बीती इंवेस्टर्स समिट में हुए एमओयू में से 70 फीसद जमीन पर उतर चुके हैं। 2016 की इंवेस्टर्स समिट की सफलता का यह औसत देश के अन्य प्रदेशों के ऐसे ही आयोजनों में हुए निवेश करारों के अमल के औसत से दोगुने भी ज्यादा है।
प्रदेश का सबसे बड़ा, पुराना और सफल औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर प्रदेश में उद्योगों की पहली पसंद बन चुका है। हाल ये है कि निवेशकों की मांग के मुताबिक जमीन अब इस औद्योगिक क्षेत्र में उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इसी साल मध्यभारत का पहला स्मार्ट इंडस्ट्रीयल पार्क इंदौर के पास बनकर तैयार होगा।
ये अकेला औद्योगिक क्षेत्र होगा जहां उद्योगों के लिए जरूरी सुविधाओं के साथ अपना तालाब होगा, नहर होगी और प्रदूषण रहित वाहन ही दौड़ सकेंगे। आईआईटी, आईआईएम और स्तरीय शिक्षण संस्थानों के चलते इस शहर में देशभर के छात्रों ने डेरा डाला। इस प्रशिक्षित युवा आबादी से आईटी इंडस्ट्री भी इंदौर की ओर ही खींची चली आई।
पुणे, बेंगलुरु से किफायती होकर भी पैमानों पर खरा उतरने की वजह से प्रदेश का पहला और अकेला क्रिस्टल आईटी पार्क इंदौर में न केवल खुला बल्कि वैश्विक आईटी कंपनियों के दफ्तरों से लबालब हो गया। इस आईटी पार्क को सेज का दर्जा मिला है और कंपनियां सिर्फ एक्सपोर्ट के लिए यहां काम कर रही है।
देशी कंपनियों की मांग भी बढ़ी तो दूसरा पार्क भी तैयार हो गया है। इसी साल दूसरा आईटी पार्क भी शुरू हो जाएगा। इसमें बनते-बनते ही जगह भर चुकी है कंपनियां अब भी जगह मांग रही है। नतीजा है कि अब तीसरे आईटी पार्क की योजना पर काम शुरू हो चुका है। टीसीएस और इंफोसिस कदम रख चुकी है। शहर से निकली इम्पेट्स से लेकर इंफोबींस जैसी आईटी कंपनियां अब मल्टीनेशनल बनकर अपने निजी इकोनॉमिक जोन स्थापित कर चुकी है।
औद्योगिक विकास की भूख अभी शांत नहीं हुई है। दिल्ली-मुंबई इकोनॉमिक कॉरिडोर से जुड़ रहा इंदौर अब विकास को रफ्तार देने के लिए अरसे से नई रेल परियोजनाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। इस शहर के आसपास सबसे ज्यादा आदिवासी जिले हैं। योजनाबद्ध औद्योगिक विकास का सीधा लाभ अभावग्रस्त इस आबादी को भी मिलेगा। बिना थके इंदौर व्यवसाय के विकास के लिए दौड़ना नहीं छोड़ रहा।
जीएसटी लागू होने के बाद उद्योगपतियों ने अब क्षेत्र में लॉजिस्टिक और वेयर हाउस कॉम्पलेक्स बनाने की मांग भी उठा दी है। उम्मीद है यह सपना भी जल्द साकार होगा। इसी के साथ इंदौर देशभर की कंपनियों के सप्लाय चेन सिस्टम का गढ़ भी बन जाएगा।
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