अगर इंदौर ठान ले तो कुछ भी मुश्किल नहीं...
समय के साथ शहर बढ़ा, थाने भी बढ़ गए लेकिन पुलिस की वह धार अब नजर नहीं आती। कई मामलों में तो खुद पुलिस की भूमिका संदिग्ध नजर आने लगती है।
बुजुर्गों से सुनते हैं कि किसी समय एक पुलिस वाला जिसके हाथ में सिवाय डंडे के कोई हथियार नहीं होता था, भीड़ नियंत्रित कर लेता था। पुलिस की धमक इतनी होती थी कि उसकी मौजूदगी ही बड़े-बड़े विवाद सुलझाने के लिए पर्याप्त थी। समय के साथ शहर बढ़ा, थाने भी बढ़ गए लेकिन पुलिस की वह धार अब नजर नहीं आती। कई मामलों में तो खुद पुलिस की भूमिका संदिग्ध नजर आने लगती है। इस छवि को सुधारना जरूरी है। ऐसा नहीं कि आम आदमी पुलिस की मदद नहीं करना चाहता लेकिन कानूनी पेचिदगियां इतनी हैं कि वह खुद को थाने और कोर्ट से दूर ही रखने में भलाई समझता है।
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इंदौरियों की पहचान देशभर में एक अच्छे मददगार के रूप में है, लेकिन यह उस वक्त धूमिल हो जाती है जब हम सड़क पर किसी के साथ वारदात होते हुए देखते भी अनजान बन जाते हैं। हमारे कंधे के पास से कोई किसी महिला के गले की चेन छीनकर भाग रहा होता है और हम सिर्फ इसलिए आरोपी के पीछे नहीं भागते क्योंकि हम सालों कोर्ट के चक्कर नहीं लगाना चाहते। कानून की पेचिकदगियां मदद करने के लिए उठे हमारे हाथों को रोक देती हैं। वारदात के बाद पुलिस की खामियां निकालना सबसे आसान है और हर आदमी इसमें माहिर भी होता है, लेकिन यह ठीक नहीं।
पुराने समय में गांवों में नियमित पुलिसिंग नहीं होती थी। सुरक्षा का जिम्मा खुद ग्रामीणों पर रहता था। बावजूद इसके वारदातों की संख्या कम थी। आज इंदौर में ढाई दर्जन थाने हो चुके हैं। पुलिसकर्मियों की संख्या भी बढ़ी लेकिन गांवों से शहर की तरफ दौड़ रही भीड़ ने इसे नकाफी साबित कर दिया है। समय आ गया है कि हम मदद के लिए पुलिस की तरफ देखने के बजाय सामाजिक सौहार्द का परिचय देते हुए एक-दूसरे की मदद को आगे आएं। कुछ साल पहले चोरी की वारदातों के बढ़ने के बाद निमाड़ के एक गांव में सोशल पुलिसिंग का सफल प्रयोग हुआ था। लोगों ने खुद ही अलग-अलग दल बनाकर रात में गश्त शुरू कर दी। असर यह हुआ कि पुलिस की मदद के बगैर ही वारदातों पर लगाम लग गई। ऐसा ही प्रयोग इंदौर में महिलाएं गुलाबी गैंग बनाकर कर चुकी हैं। हाल ही में ग्वालियर से करीब 70 किमी दूर शिवपुरी जिले के सुल्तानगढ़ वॉटर फाल में फंसे 45 लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए जब पुलिस और सेना पानी कम होने का इंतजार कर रही थी उसी वक्त 5 युवकों ने पानी में उतरकर इन 45 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने में महती भूमिका निभाई। यह साबित करता है कि सिर्फ इंतजार करने से कुछ नहीं होता, कदम भी बढ़ाना पड़ते हैं।
इंदौरियों की इंदौरियत कहीं गुम होती नजर आ रही है। यह वही इंदौर है जहां किसी से रास्ता पूछ लो तो वह घर तक छोड़ आता है। हमें अपनी इंदौरियत की तरफ लौटना होगा। एक-दूसरे की मदद का संकल्प लेते हुए हम दिल में ठान लें कुछ भी मुश्किल नहीं। इंदौर की 35 लाख जनता ठान ले तो मुठ्ठी भर बदमाशों की हिम्मत नहीं कि वे किसी की तरफ आंख उठाकर देख भी सकें। दुष्कर्म और हत्या तो बहुत दूर की बात है। सिर्फ पुलिस की खामियां गिनाने से कुछ नहीं होगा। हमें खुद पर भरोसा करते हुए एक-दूसरे की मदद करना होगी।
कुलदीप भावसार
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