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13 साल में दो हजार से ज्यादा आरटीआई लगाई, व्यापम, ड्रग ट्रायल जैसे मुद्दे उठाए

प्रोफेसरों के लेक्चर भी अंग्रेजी में होते थे। मैंने इस पर आपत्ति उठाई और कहा कि हम मुश्किल से पढ़ाई कर यहां तक पहुंचे हैं तो टीचर ने कहा कि तुम हिंदी मीडियम के स्टूडेंट यहां पढ़ने आते ही क्यों हो?

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 10 Jul 2018 06:00 AM (IST)
13 साल में दो हजार से ज्यादा आरटीआई लगाई, व्यापम, ड्रग ट्रायल जैसे मुद्दे उठाए

हिंदी मीडियम के छात्रों के साथ मेडिकल कॉलेजों में होने वाले भेदभाव को मैंने खुद महसूस किया है। हरदा में 12वीं तक हिंदी मीडियम से पढ़ाई करने के बाद 1995 में प्री मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) की तैयारी के लिए मैं इंदौर आया। 1996 में पीएमटी में सिलेक्ट हुआ और एमजीएम मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया।

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अंग्रेजी की मोटी-मोटी किताबों को पढ़ना किसी भी हिंदी मीडियम के छात्र के लिए मुश्किल काम था। प्रोफेसरों के लेक्चर भी अंग्रेजी में होते थे। मैंने इस पर आपत्ति उठाई और कहा कि हम मुश्किल से पढ़ाई कर यहां तक पहुंचे हैं तो टीचर ने कहा कि तुम हिंदी मीडियम के स्टूडेंट यहां पढ़ने आते ही क्यों हो?

इसके बाद मुझे प्रैक्टिकल में फेल कर दिया गया। विद्रोह की शुरुआत यहीं से हुई। मैंने ओल्ड कोर्स में मेडिकल में टॉप किया था, एक अन्य छात्र ने न्यू कोर्स में, लेकिन सिर्फ न्यू कोर्स वाले को गोल्ड मेडल दिया गया, मुझे नहीं।

2005 में मैंने गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में लेक्चररशिप जॉइन कर ली। बाद में मेरा चयन प्रीपीजी में हो गया। इस दौरान मैंने देखा कि एक ही कॉलेज में पढ़ने वाले, एक ही लाइन में बैठने वाले लड़के टॉप की पोजीशन पर आ जाते हैं और मैं नीचे। 2005 में मुझे व्यापम घोटाले का पता लगना शुरू हुआ। मैंने उसी वक्त तय कर लिया कि इस घोटाले की जड़ तक जाऊंगा और जनता के सामने इसे लाकर ही रहूंगा। 2008 में मैंने सीनियर रेजिडेंट के रूप में एमजीएम मेडिकल कॉलेज में जॉइन किया।

इस दौरान 2004 में व्यापम के मास्टर माइंड जगदीश सागर का एडमिशन एमडी पीएसएम में हो गया था। 2005 में जगदीश सागर का नाम पेपर आउट मामले में सामने आने लगा था। 2006 में जानकारी लगी कि ग्वालियर का दीपक यादव भी प्रीपीजी में एडमिशन करवाता है।

जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में प्रदेश में अलग-अलग कॉलेजों में जाने के दौरान पता चला कि दीपक यादव और जगदीश सागर पूरे प्रदेश में रैकेट चला रहे हैं। यह भी पता चला कि ये लोग बाहर से लड़के बुलाकर परीक्षा में बैठाकर पास करवाते हैं। 2009 में मैंने शिकायत की कि परीक्षा फॉर्म और एडमिशन फॉर्म के फोटो में अंतर रहता है। इसका मिलान नहीं होता।

शिकायत पर कार्रवाई करते हुए राज्य सरकार ने दिसंबर 2009 में मामले की जांच के लिए कमेटी बना दी। मैंने परिचित विधायकों के माध्यम से इस मुद्दे को विधानसभा में उठवाया। विधायकों ने सरकार से पूछा कि कमेटी ने जांच में क्या पता किया, यह सबको बताया जाए। नवंबर 2011 में पहली बार विधानसभा पटल पर 114 छात्रों की सूची रखी गई। पता चला कि ये लड़के फर्जी तरीके से सिलेक्ट हुए हैं। मैंने ही जगदीश सागर के संबंध में सूचना पुलिस को दी।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सीबीआई जांच के लिए गुहार लगाई। कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। मामले में अब तक करीब 5000 आरोपित बनाए जा चुके हैं। करीब 250 एफआईआर हो चुकी हैं। 2005 से अब तक मैं दो हजार से ज्यादा आरटीआई लगा चुका हूं।

2010 में मुझे जानकारी लगी कि अस्पतालों में ड्रग ट्रायल चल रहा है। विधायकों के प्रश्नों पर करीब दो हजार पेज की जानकारी विधानसभा के पटल पर रखी गई। मैंने सूचना के अधिकार के माध्यम से इसे हासिल किया। मप्र की पहली आरटीआई मैंने लगाई थी। जिस दिन यह कानून बना, मैंने उसी दिन आवेदन दायर कर दिया था।

प्रदेश में महिला कर्मचारियों के लिए शिशु पालन अवकाश के लिए संघर्ष किया। याचिका दायर की। दो साल का सवैतनिक अवकाश शुरू करवाया। शासकीय अस्पतालों में बांझपन के इलाज के इंतजाम के लिए याचिका दायर की। बाद में शासन ने इसे 21वीं बीमारी के रूप में राज्य बीमारी योजना में शामिल कर लिया।


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