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    मध्य प्रदेश का मेडिकल हब है इंदौर

    By Nandlal SharmaEdited By:
    Updated: Mon, 02 Jul 2018 07:43 PM (IST)

    मार्च 2018 में एमवायएच में बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट (बीएमटी) का लोकार्पण किया गया। करीब पांच लाख रुपए की लागत से तैयार इस यूनिट का उद्देश्य न्यूनतम शुल्क पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध कराना है।

    मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहलाने वाला इंदौर शहर प्रदेश का मेडिकल हब भी बन चुका है। प्रदेश की मेडिकल राजधानी इंदौर पर न सिर्फ जिले की 35 लाख जनसंख्या की सेहत की जिम्मेदारी है बल्कि इससे जुड़े आधा दर्जन से ज्यादा जिलों से भी लोग इलाज के लिए यहीं आते हैं। प्रदेश में कोई भी बड़ा हादसा हो, मेडिकल मदद के लिए सबसे पहले इंदौर की तरफ देखा जाता है। इंदौर में उपलब्ध मेडिकल सुविधाओं के चलते सिर्फ निमाड़, मालवा और झाबुआ-आलीराजपुर के आदिवासी अंचल से ही नहीं बल्कि प्रदेश और देश के बाहर से भी लोग यहां इलाज कराने आते हैं।

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    शहर में बड़ी संख्या में निजी अस्पताल हैं, बावजूद इसके बड़ा वर्ग सरकारी अस्पतालों पर निर्भर है। निजी अस्पतालों के महंगे बजट के चलते हर किसी के लिए यहां पहुंच पाना आसान नहीं होता। प्रदेश का सबसे बड़ा महाराजा यशवंत राव हास्पिटल इंदौर में है। इस सरकारी अस्पताल के रिनोवेशन के लिए हाल ही में 16 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए। सरकार के अलावा लोगों ने भी इसे कायाकल्प में मदद की।

    एमजीएम मेडिकल कॉलेज परिसर में सुपर स्पेशिएलिटी सेंटर का काम तेजी से चल रहा है। 200 करोड़ रुपए की लागत से तैयार हो रहे इस सेंटर में अत्याधुनिक इलाज की तमाम सुविधाएं रहेंगी। चेन्नाई का शंकर नेत्रालय भी इंदौर आने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए जमीन आवंटित की जा चुकी है। मेदांता इंदौर आ चुका है और फोर्टिस जैसे कई बड़े अस्पताल चेन यहां अपनी शाखाएं खोलने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में उम्मीद जताई जा रही है कि कुछ सालों में इंदौर मेडिकल हब के रूप में पहचान बना लेगा।

     

    संस्थाएं और समाज मदद के लिए आते हैं आगे
    एमवायएच और जिला अस्पताल में गरीब मरीजों के लिए डायलिसिस की मुफ्त व्यवस्था है लेकिन रखरखाव के अभाव में अक्सर मशीनें बंद रहती हैं। दोनों ही जगह नेफ्रोलॉजिस्ट का अभाव है। ऐसी स्थिति में मरीज निजी केंद्रों पर डायलिसिस कराने को मजबूर हैं। यही हालत अन्य विभागों की भी है।

    निजी अस्पतालों की फीस पर सरकार का सीधा कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में शहर की स्वयंसेवी व सामाजिक संस्थाएं बखूबी ये जिम्मेदारी निभा रही है। इसमें मुख्य रूप से मरीजों को मुफ्त दवा दिलवाने, मेडिकल उपकरण नाममात्र के खर्च पर उपलब्ध करवाने जैसे कार्य भी शामिल हैं।

    एक दर्जन से ज्यादा सरकारी योजनाएं लागू
    इंदौर जिले में रोजाना 8 हजार से ज्यादा मरीज सरकारी अस्पतालों में पहुंचते हैं। अकेले एमवायएच की ओपीडी में यह संख्या करीब ढाई हजार है। इसके अलावा जिला अस्पताल और पीसी सेठी अस्पताल भी कई मरीज पहुंचते हैं। सरकारी अस्पतालों में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, बाल श्रवण योजना, राज्य बीमारी सहायता योजना, मुख्यमंत्री श्रमिक सेवा प्रसूति सहायता योजना, दीनदयाल योजना जैसी एक दर्जन से ज्यादा योजना लागू हैं।

    निजी अस्पताल में था 20 से 25 लाख का खर्च, एमवायएच में हुआ मुफ्त
    मार्च 2018 में एमवायएच में बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट (बीएमटी) का लोकार्पण किया गया। करीब पांच लाख रुपए की लागत से तैयार इस यूनिट का उद्देश्य न्यूनतम शुल्क पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध कराना है। अब तक यूनिट में चार मरीजों का ट्रांसप्लांट किया जा चुका है।

    निजी अस्पताल में 20 से 25 लाख रुपए खर्च करने पर मिलने वाली यह सुविधा इन मरीजों को मुफ्त उपलब्ध कराई गई। मरीजों में दो बच्चे भी शामिल हैं। आगे से यह सुविधा न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध कराई जाएगी।

    प्रदेश का सबसे पहला ट्रांसप्लांट इंदौर में, आर्गन डोनेशन में भी रिकार्ड
    आर्गन डोनेशन के क्षे‍त्र में तेजी से उभरते शहरों में इंदौर का नाम शामिल हो चुका है। पिछले 33 माह में 33 ग्रीन कोरीडोर बनाकर जरुरतमंद मरीजों को अंग उपलब्ध करवाए गए हैं।

    शहर में खास
    - जिले के सरकारी अस्पतालों में रोजाना 8 हजार मरीजों का इलाज
    - प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल एमवाय की ओपीडी में रोजाना 2500 से ज्यादा मरीज पहुंचते हैं।
    - 16 करोड़ से एमवाय का किया गया था कायाकल्प
    - 200 करोड़ की लागत से तैयार हो रहा सुपर स्पेशियलिटी सेंटर
    - 50 करोड़ की लागत से 300 बेड के जिला अस्पताल का कायाकल्प होगा

    ये व्यवस्था हो जाए तो और बेहतर होगी स्थिति
    - शहर का स्वास्थ्य सुधारने के लिए जरूरी है कि निजी अस्पतालों द्वारा वसूली जाने वाली फीस पर सरकारी नियंत्रण हो।
    - एमजीएम मेडिकल कॉलेज परिसर में तैयार हो रहे सुपर स्पेशिएलिटी सेंटर का काम तय समय में पूरा किया जाए ताकि मरीजों को न्यूनतम खर्च पर बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल सके।
    - डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ की कमी दूर करने के लिए नई योजनाएं लाई जाएं। सुविधाएं और वेतन बढ़ाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा डॉक्टर सरकारी नौकरी में आ सकें।
    - जिला अस्पतालों के डॉक्टरों के कामकाज की निगरानी की समुचित व्यवस्था हो। समय-समय पर जांच की व्यवस्था होना चाहिए।

     

    विशेष प्रयास की जरूरत
    - सुपर स्पेशिएलिटी सेंटर प्रभारी डॉ. एडी भटनागर के मुताबिक सेंटर का काम समय पर पूरा किए जाने की उम्मीद है।
    - एमवायएच अधीक्षक डॉ. वीएस पाल भी मानते हैं कि सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी दूर करने के लिए विशेष प्रयास किए जाने की जरूरत है।