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मिलिए मध्‍यप्रदेश के 'स्टीफन हाकिंग' सुबोध जोशी से, जिन्‍होंने दिव्यांगता को हथियार बना लिखी सफलता की नई परिभाषा

मध्य प्रदेश के उज्जैन निवासी सुबोध जोशी भी ऐसे ही शख्स हैं जिनका सिर्फ दिमाग और दाएं हाथ का अंगूठा काम करता है बाकी शरीर निस्तेज है। मांसपेशियों को शिथिल कर नाकाम कर देने वाली मस्क्युलर डिस्ट्राफी बीमारी से पीडि़त जोशी ने भी दिमाग की ताकत का सकारात्मक उपयोग किया।

By Vijay KumarEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 07:50 PM (IST)Updated: Thu, 02 Dec 2021 07:50 PM (IST)
मिलिए मध्‍यप्रदेश के 'स्टीफन हाकिंग' सुबोध जोशी से, जिन्‍होंने दिव्यांगता को हथियार बना लिखी सफलता की नई परिभाषा
मध्य प्रदेश के उज्जैन निवासी सुबोध जोशी भी ऐसे ही शख्स हैं

ईश्वर शर्मा, इंदौर/उज्जैन! महान विज्ञानी स्टीफन हाकिंग की कहानी हम सबने सुनी है कि उन्होंने पूरा शरीर नाकाम होने के बावजूद दिमाग की ताकत से ब्रह्मांड के रहस्य सुलझाने के प्रयास किए। मध्य प्रदेश के उज्जैन निवासी सुबोध जोशी भी ऐसे ही शख्स हैं, जिनका सिर्फ दिमाग और दाएं हाथ का अंगूठा काम करता है, बाकी शरीर निस्तेज है। मांसपेशियों को शिथिल कर नाकाम कर देने वाली मस्क्युलर डिस्ट्राफी बीमारी से पीडि़त जोशी ने भी अपने दिमाग की ताकत का सकारात्मक उपयोग किया। उन्होंने दिमाग को इतना योग्य बनाया कि अब अमेजन जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनी सहित भारतीय टेक कंपनी विप्रो व अन्य 10 कंपनियां तथा अजीम प्रेमजी फाउंडेशन जैसे गैर सरकारी संगठन अपने महत्वपूर्ण दस्तावेजों के अनुवाद इनसे कराते हैं।

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शरीर न सही, दिमाग ही सही:

57 वर्षीय सुबोध जोशी जब तीन वर्ष के थे, तब माता-पिता को पहली बार पता चला कि बेटे को मस्क्युलर डिस्ट्राफी है। इसमें उम्र बढऩे के साथ मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं और एक समय ऐसा आता है जब पूरा शरीर निस्तेज हो जाता है। शरीर कमजोर होता देख जोशी ने दिमाग को कुशाग्र बनाना शुरू किया। वर्ष 1988 में उन्होंने तब उज्जैन में कंप्यूटर सेंटर शुरू कर दिया था, जब देश में कंप्यूटर क्रांति शुरू ही हुई थी। 17 वर्षों तक विभिन्न एनजीओ के लिए भी काम किया। 2016 तक जब शरीर पूरी तरह निष्क्रिय होने लगा तो उन्होंने घर में बैठकर अनुवाद का काम शुरू किया। अमेजन के यूरोप स्थित आफिस ने इनसे अनुवाद करवाना शुरू कर दिया। जोशी विशेष डिजाइन की अपनी कुर्सी पर बैठ काम करते हैं और कई बड़ी कंपनियों व एनजीओ ने इन्हें अपना मास्टर ट्रांसलेटर (विशेषज्ञ अनुवादक) बना रखा है। जोशी बोझ बनने के बजाय खुद का पालन-पोषण कर रहे हैं और दो लोगों बालू सिंह और राहुल वर्मा को रोजगार भी दे रखा है।

तकनीक और आवाज को हथियार बनाया:

जोशी ऐसे एप का प्रयोग करते हैं जो उनकी आवाज को सुनकर टाइप कर देते हैं। दाएं हाथ के अंगूठे में हल्की-सी चेतना है। उससे माउस को हिलाने, क्लिक करने सहित आनस्क्रीन कीबोर्ड पर काम करते हैं। वह केंद्र्र व राज्य सरकार को दिव्यांग संबंधी नीतियां बनाने के लिए सलाह भी देते हैं। अखबारों, पत्रिकाओं में अब तक 250 से अधिक शोध व लेख प्रकाशित हुए हैं।


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