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Kuno National Park: बेसहारा श्वानों को लगा रहे टीका ताकि सुरक्षित रहें कूनो में आने वाले अफ्रीकी चीते

Kuno National Park कूनो नेशनल पार्क के आसपास के पांच किमी के दायरे में बसे गांवों के बेसहारा श्वानों का टीकाकरण करवाया जा रहा है ताकि रैबीज और टिटनेस जैसी बीमारियां चीतों तक नहीं पहुंचे। इससे पहले गाय भैंस और बकरियों का टीकाकरण करवाया जा चुका है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Sat, 20 Nov 2021 06:52 PM (IST)
Kuno National Park: बेसहारा श्वानों को लगा रहे टीका ताकि सुरक्षित रहें कूनो में आने वाले अफ्रीकी चीते
बेसहारा श्वानों को लगा रहे टीका ताकि सुरक्षित रहें कूनो में आने वाले अफ्रीकी चीते। फाइल फोटो

श्योपुर, जेएनएन। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल श्योपुर जिले में फरवरी, 2022 तक कूनो पालपुर राष्ट्रीय पार्क में नामीबिया (दक्षिण अफ्रीका) से 10 चीतों को लाने की तैयारी अंतिम दौर में है। चीतों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को देखते हुए राष्ट्रीय पार्क प्रबंधन हर जरूरी कदम उठा रहा है। पार्क के आसपास के पांच किमी के दायरे में बसे गांवों के बेसहारा श्वानों का टीकाकरण करवाया जा रहा है, ताकि रैबीज और टिटनेस जैसी बीमारियां चीतों तक नहीं पहुंचे। इससे पहले गाय, भैंस और बकरियों का टीकाकरण करवाया जा चुका है। कुत्तों के टीकाकरण में विशेष बात यह भी है कि वन विभाग के कर्मचारी पहली डोज लगाने के साथ ही श्वान के शरीर में एक माइक्रोचिप भी लगा रहे हैं, ताकि बूस्टर डोज के लिए इनकी पहचान आसानी से हो सके।

संक्रमण फैलने की आशंका

राष्ट्रीय पार्क के विशेषज्ञ बताते हैं कि कुत्तों के काटने से रैबीज, टिटनेस, पेस्टेराला, मेथिसिलिन रजिस्टेंस स्टैफिलोकोकस आरियस (एमआरएसए) और कैप्नोसाइटोफगा बैक्टीरियल संक्रमण फैलने की आशंका रहती है। जरूरी नहीं कि चीते श्वान का शिकार करें, लेकिन किसी जानवर को श्वान ने काटा हो और उस जानवर का चीते ने शिकार कर खा लिया तो उसके शरीर में भी वायरस पहुंच सकता है। प्रबंधन चीतों की सुरक्षा को लेकर किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहता है। कई तरकीबें नाकाम रहीं तो माइक्रोचिप लगाई पूर्व में जब कुत्तों को वैक्सीन लगाई गई तो उनकी पहचान के लिए शरीर पर रंग लगाया गया। पानी में वह धुल गया। इसके बाद उनके गले में पट्टा भी बांधा लेकिन कई बार ग्रामीणों ने उसे निकाल दिया। श्वानों की पहचान कर बूस्टर डोज लगाने में परेशानी हो रही थी। इसके बाद बेंगलुरू से माइक्रोचिप मंगवाई गई। यह चिप चावल के दाने के आकार की होती है और विशेष इंजेक्शन के माध्यम से कुत्ते की गर्दन की त्वचा के भीतर लगा दी जाती है। चिप रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन (आरएफआइडी) तकनीक पर काम करती है। इससे चिप में लगे टैग को तलाशा जा सकता है और उसमें दर्ज डाटा भी देखा जा सकता है। चिप लगे हुए श्वान के पास जाकर जैसे ही कर्मचारी रीडर से देखते हैं तो स्क्रीन पर पूरी जानकारी आ जाती है कि इसे कब वैक्सीन लगी थी। जयपुर से विशेष जाल मंगवाया पहले दौर में जिन 109 कुत्तों को वैक्सीन लगाई गई थी, उन्हें पकड़ने में टीम को काफी परेशानी हुई। श्वानों को सुरक्षित पकड़ने के लिए जयपुर से विशेष जाल मंगवाए गए। इसमें कैद श्वान को विशेषज्ञ पहले वैक्सीन लगाते हैं और फिर माइक्रोचिप लगा देते हैं।

इसलिए लगवा रहे हैं माइक्रोचिप

श्योपुर कूनो पालपुर नेशनल पार्क के डीएफओ पीके वर्मा के मुताबिक, कूनो में लाए जाने वाले अफ्रीकी चीतों की सुरक्षा की हम हर स्तर पर तैयारी कर रहे हैं। आसपास के श्वानों के वैक्सीनेशन के साथ ही बूस्टर डोज लगाने में पहचान में परेशानी नहीं आए, इसलिए माइक्रोचिप भी लगवा रहे हैं।