Move to Jagran APP

MP News: भाजपा के इन दिग्गज नेताओं के सामने है अपनी साख बचाने की चुनौती

मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवारवाद की खिलाफत के बीच भाजपा दूसरी बार चुनाव लड़ रही है। ऐसे में नेताओं के पुत्र-पुत्रियों को मौका नहीं मिलने के आसार दिख रहे हैं। 2018 के चुनाव में भी कई मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं के पुत्रों को मौका नहीं दिया गया था।

By Jagran NewsEdited By: Preeti GuptaPublished: Sun, 26 Mar 2023 11:47 AM (IST)Updated: Sun, 26 Mar 2023 11:47 AM (IST)
MP News: भाजपा के इन दिग्गज नेताओं के सामने है अपनी साख बचाने की चुनौती
भाजपा के इन दिग्गज नेताओं के सामने है अपनी साख बचाने की चुनौती

धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवारवाद की खिलाफत के बीच भाजपा दूसरी बार चुनाव लड़ रही है। ऐसे में नेताओं के पुत्र-पुत्रियों को मौका नहीं मिलने के आसार दिख रहे हैं। 

loksabha election banner

2018 के चुनाव में भी कई मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं के पुत्रों को मौका नहीं दिया गया था। तो वहीं इस साल के होने वाले चुनाव में भी कई नेताओं के पुत्र और पुत्रियों को चुनाव लड़ने के मौका मिलने के आसार नहीं दिख रहे हैं। इसकी वजह से नेता और उनके पुत्र-पुत्री मायूस हैं।

कई वरिष्ठ चुनाव राजनीति से बाहर

भाजपा में आधे दर्जन से अधिक दिग्गज नेताओं ने कई वर्षों पहले से अपनी राजनीतिक विरासत को अगली पीढ़ी को सौंपने की तैयारी शुरू कर दी थी।

लेकिन 2013 से मोदी-युग की शुरूआत हुई, भाजपा ने कांग्रेस को परिवारवाद के मुद्दे पर निशाना साधना शुरू किया।

वहीं, इस रणनीति को पार्टी में भी मजबूती से अपनाया गया। नतीजन 2018 के विधानसभा चुनाव में कुछ ही नेता पुत्रों या परिवार के सदस्यों को मौका मिला।

इसके अलावा, 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके कई वरिष्ठ नेताओं को भी चुनावी राजनीति से बाहर कर दिया।

राजनीति में सक्रिय नहीं नेताओं के पुत्र

फिलहाल इस मुद्दे पर पार्टी के कोई भी नेता खुल कर बोलना नहीं चाहते हैं। हर किसी का यह कहना है कि राजनीतिक विरासत पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्पष्ट संदेश के बाद कहने के लिए कुछ नहीं बचता।

इसका असर दिखने लगा है। पहले नेताओं के पुत्र सक्रिय रहते थे वे अब नजर नहीं आ रहे हैं।

यह भी पढ़ें- ISRO ने 36 सैटेलाइट के साथ भारत का सबसे बड़ा LVM3 रॉकेट किया लॉन्च, जानें क्या है इसकी खासियत

चुनावों में दिख सकता है परिवारवाद का असर

यदि परिवारवाद पर रोक का असर टिकट वितरण पर भी नजर आया तो दिग्गजों और उनके पुत्रों के राजनीतिक अरमान ठंडे हो जाएंगे।

उधर, चुनावों में किस्मत आजमाने की आस लगाए बैठे नेता-नेता पुत्रों को पार्टी का यह दावा भी निराश करने वाला है कि पिछले दिनों जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, वहां भाजपा को मिली जीत परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देने की वजह से हुई है।

यह भी पढ़ें- कर्नाटक चुनाव से पहले BJP की कोशिश, येदियुरप्पा के जरिए लिंगायत वोट बैंक को रिझाने के प्रयास जारी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.