कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम का जादू मध्य प्रदेश तक पहुंचा, आक्रामक कांग्रेस और गुटों में बंटी भाजपा
कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम का जादू मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। इस चुनाव के बाद पार्टी के दो शीर्षस्थ नेताओं कमल नाथ और दिग्विजय सिंह की तो पूरी बाडी लैंग्वेज ही बदल गई है।
सद्गुरु शरण, भोपाल। कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम का जादू मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। इस चुनाव के बाद पार्टी के दो शीर्षस्थ नेताओं कमल नाथ और दिग्विजय सिंह की तो पूरी बाडी लैंग्वेज ही बदल गई है, जिसका प्रभाव दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं पर भी दिख रहा है। पार्टी के तेवर अचानक तीखे हो गए हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह समेत भाजपा के ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीडी शर्मा जैसे बड़े नेता सीधे कांग्रेस के निशाने पर हैं, जिन पर हर तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। प्रदेश का विधानसभा चुनाव अब भी पांच-छह महीने दूर है, पर कांग्रेस के बड़े नेता इस तरह व्यवहार करने लगे हैं मानो उन्हें राजभवन से सरकार बनाने का न्योता मिल चुका है।
कांग्रेस कार्यकर्ता नारी सम्मान योजना के लिए महिलाओं का पंजीकरण कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में सरकारी अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को डांट-फटकार रहे हैं। कार्यकर्ताओं को निर्देशित किया जा रहा है कि असहयोग करने वाले अधिकारियों की सूची तैयार करते रहें।
मध्य प्रदेश की राजनीति आमतौर पर अपने शालीन व्यवहार के लिए जानी जाती है, यद्यपि इस बार जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, कम से कम कांग्रेस के हर स्तर के नेता वाणी का संयम खोते नजर आ रहे हैं। कुछ इसी शैली में कांग्रेस नेताओं के निशाने पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा भी चल रहे हैं, जिन पर बिना आधार भ्रष्टाचार से तमाम संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया जा रहा है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तो लगभग रोज कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के निशाने पर रहते हैं। राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि कर्नाटक चुनाव के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने सोची-समझी रणनीति के तहत भाजपा के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक लड़ाई शुरू की है, जिसके लिए भाजपा कतई तैयार नहीं थी। इस वजह से पार्टी कांग्रेस नेताओं के मौजूदा तेवरों के सामने हतप्रभ दिख रही है।
कांग्रेस के दोनों नेता जिस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनके वरिष्ठ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं, पार्टी को उसका जवाब देते नहीं बन रहा। कमल नाथ और दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश की मौजूदा राजनीति में वरिष्ठतम नेता हैं, लिहाजा वह कांग्रेस के साथ भाजपा की भी कमजोरी-मजबूती अच्छी तरह समझते हैं। उन्हें पता है कि भाजपा में बेशक दिग्गज नेताओं की फौज है, पर गुटों में बिखरी हुई। कांग्रेस इसका लाभ उठा रही है। हालत यह है कि कोई कांग्रेस नेता जब किसी भाजपा नेता पर कोई गंभीर आरोप लगाता है तो उसका जवाब या तो स्वयं उस नेता को देना पड़ता है या पार्टी का कोई छोटे कद का प्रवक्तानुमा कार्यकर्ता सामने आता है।
स्पष्ट है कि कमल नाथ या दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के सामने ऐसे प्रवक्ता की बात प्रभावहीन साबित हो जाती है, जबकि स्वयं अपना बचाव करने में वरिष्ठ नेता भी दबाव में आ ही जाते हैं। आश्चर्य की बात है कि पिछले करीब दो दशकों से सत्तासीन भाजपा योग्य और अनुभवी प्रवक्ताओं की टीम तैयार नहीं कर सकी।
जहां तक भाजपा की गुटबाजी का सवाल है, इसके लक्षण अब सतह पर प्रकट होने लगे हैं। दरअसल, कई स्वप्नजीवी भाजपा नेता मुख्यमंत्री बनने का सपना देखते हुए सोते-जागते हैं। ये नेता विभिन्न माध्यमों से यह अफवाह फैलाने का मौका नहीं चूकते कि विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को हटाया जाएगा।
ऐसी चर्चा प्रत्येक महीने-दो महीने में शुरू हो जाती है। ऐसे नेताओं की कारस्तानी भाजपा नेतृत्व से छिपी नहीं है, इसके बावजूद इन पर कोई नियंत्रण नहीं किया जाता। कांग्रेस स्वाभाविक रूप से इसका लाभ उठाती है और मुख्यमंत्री बदले जाने की अफवाह को खूब हवा देती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बेशक बहुत मेहनत कर रहे हैं। शायद ही कोई दिन होता है, जब वह प्रदेश के किसी न किसी अंचल में कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं कर रहे होते हैं।
राज्य सरकार की गेमचेंजर बताई जा रही लाड़ली बहना योजना खासी लोकप्रिय हो रही है जिससे चिंतित कांग्रेस ने नारी सम्मान योजना के लिए पंजीकरण शुरू किया है। विभिन्न मोर्चों पर शिवराज सरकार की अन्य उपलब्धियां भी उल्लेखनीय हैं, पर कांग्रेस माइंडगेम के जरिये इन उपलब्धियों को निस्तेज करने का हर संभव प्रयास कर रही है।
कांग्रेस नेता पिछले दस-बारह दिनों से ऐसी घोषणाएं करने लगे हैं जिनसे ऐसा प्रतीत होता है मानो कांग्रेस की सरकार बनना तय है। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले तीन साल में शिवराज सिंह सरकार ने समाज के लगभग प्रत्येक वर्ग के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय नेता मध्य प्रदेश पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसके बावजूद पार्टी की आत्मघाती गुटबाजी थमती नहीं दिख रही।
यदि केंद्रीय भाजपा नेतृत्व समय रहते ऐसे नेताओं पर नियंत्रण नहीं कर सका तो कांग्रेस के लिए मनोवैज्ञानिक लड़ाई में भाजपा को पस्त कर देना आसान हो जाएगा। कांग्रेस अपनी सांगठनिक कमजोरी से जूझ रही है। अब चुनाव से पहले पार्टी इस मोर्चे पर कोई बड़ी उपलब्धि हासिल भी नहीं कर सकती।
ऐसे में भाजपा कार्यकर्ताओं में भ्रम और अस्थिरता पैदा करके कांग्रेस अपनी कमजोरी की किसी हद तक भरपाई कर सकती है। चुनाव से पांच-छह महीने पहले कहा जा सकता है कि कम से कम रणनीति के मामले में कांग्रेस, भाजपा को चुनौती दे रही है।
लेखक नईदुनिया, मध्य प्रदेश- छत्तीसगढ़ के संपादक हैं