आदिवासियों के उत्थान के प्रति समर्पण की सशक्त आवाज है द्रौपदी मुर्मू- शिवराज सिंह चौहान
एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति बनना सामाजिक सोच को अंधकार से निकालकर प्रकाश में प्रवेश कराना है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की संरक्षक और आदिवासी उत्थान की प्रणोता बनेंगी।
शिवराज सिंह चौहान। भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने जनजातीय गौरव द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी घोषित कर न केवल समाज के सभी वर्गो के प्रति सम्मान के भाव को पुन: सिद्ध किया है, अपितु कांग्रेस शासन के उस अंधे युग के अंत की भी घोषणा कर दी है, जिसमें सम्मान और पद केवल अपने लोगों को बांटे जाते थे। भारतीय लोकतंत्र में यह पहली बार होगा, जब कोई आदिवासी, वह भी महिला इस सर्वोच्च पद को सुशोभित करेंगी।
भाजपा का विचार हमेशा ही भेदभाव रहित, समरस तथा समानतामूलक समाज की स्थापना का रहा है। भाजपा को अपने शासन काल में तीन अवसर प्राप्त हुए और तीनों अवसरों पर उसने समाज के तीन अलग-अलग समुदायों से राष्ट्रपति का चयन किया। सर्वप्रथम अल्पसंख्यक वर्ग से महान विज्ञानी और कर्मयोगी डा. एपीजे अब्दुल कलाम, फिर दलित समुदाय के माननीय रामनाथ कोविन्द और अब जनजातीय समुदाय से श्रीमती द्रौपदी मुमरू।
हमें यह कहते हुए प्रसन्नता है कि हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव में मध्य प्रदेश से दो बहनों का निर्विरोध निर्वाचन हुआ, जिनमें वाल्मीकि समाज की सुमित्र वाल्मीकि भी हैं। वस्तुत: भाजपा अद्वैत दर्शन के एकात्म मानववाद को मानती है, जिसमें कहा गया है- तत्वमसि अर्थात् ‘तू भी वही है।’ पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन भी अद्वैत पर ही आधारित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘सबका साथ, सबका विकास’ का संकल्प भी एकात्म मानववाद की भावना से ही निकला है।
मुझे याद आता है कि द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ विधायक के ‘नीलकंठ सम्मान’ से सम्मानित किया गया था। वे समाज में सदैव सेवा का अमृत बांटती रही हैं। ओडिशा के बैदापैसी आदिवासी गांव में जन्मी मुर्मू ने जीवन में कठोरतम परीक्षाएं दी हैं। उनके विवाह के कुछ वर्ष बाद ही पति का देहांत हो गया और फिर दो पुत्र भी स्वर्गवासी हो गए। उन्होंने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में संघर्ष का मार्ग चुना और अपनी एकमात्र पुत्री के पालन-पोषण के लिए शिक्षक व लिपिक की नौकरियां कीं। जीवन-संघर्ष में वे हारी नहीं, बल्कि जनसेवा की भावना से ओतप्रोत होकर रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद का चुनाव लड़ीं और जीत कर सक्रिय राजनीति की शुरुआत की। वे भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा से जुड़ी रहीं और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं। ओडिशा में बीजू जनता दल एवं भाजपा की सरकार में मंत्री रहीं और 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनीं। आदिवासी हितों की रक्षा के लिए वे इतनी प्रतिबद्ध रहीं कि तत्कालीन रघुवर दास सरकार के आदिवासियों की भूमि से संबंधित अध्यादेश पर इसलिए हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि उन्हें संदेह था कि इससे आदिवासियों का अहित हो सकता है। वे किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकीं।
प्राचीन भारत में महिलाओं, दलितों व आदिवासियों को जो गौरव व सम्मान प्राप्त था, भाजपा उसे पुनस्र्थापित करना चाहती है। विदेशी आक्रांताओं और स्वतंत्रता के पश्चात स्वार्थी राजनीतिक दलों ने इन वर्गो को सेवक या वोट बैंक बना दिया था। भाजपा उन्हें पुन: सामाजिक सम्मान व आत्मगौरव प्रदान करना चाहती है। हम चाहते हैं कि भारत में फिर गार्गी, मैत्रेयी जैसी महिलाओं के ऋषित्व की पूजा हो। मनुष्य का जन्म से नहीं, कर्म से मूल्यांकन हो, जैसे वाल्मीकि, कबीर या रैदास का हुआ। सामाजिक सोच और व्यवहार में महिला, आदिवासी व दलितों को पर्याप्त सम्मान प्राप्त हो। इसी लक्ष्य को सामने रख कर रामनाथ कोविन्द या द्रौपदी मुर्मू जैसे इन वर्गो के नेताओं को शीर्ष सम्मान देना भाजपा का उद्देश्य रहा है।
भाजपा सत्ता में केवल शासन के लिए नहीं है। हमारा उद्देश्य है कि भ्रमित हो चुकी सामाजिक सोच को सही दिशा दी जाए। हम भारतीय आदर्श जीवन मूल्यों को पुनस्र्थापित करने के लिए सत्ता में हैं। हम ऋग्वेद के मंत्र ‘ज्योतिष्मत: पथो रक्ष धिया कृता’ अर्थात् ‘जिन ज्योतिर्मय (ज्ञान अथवा प्रकाश) मार्गो से हम श्रेष्ठ करने में समर्थ हो सकते हैं, उनकी रक्षा की जाए।’ हम समभाव को शिरोधार्य करते हैं और ज्योतिर्मय मार्गो की रक्षा के लिए वचनबद्ध हैं। हम जनता को वहां से बचाना चाहते हैं, जहां परिवारवाद का अजगर कुंडली मार कर उनका शोषण करने को जीभ लपलपा रहा है। अब वह समय चला गया, जब चापलूसी करने वालों को सम्मानों, बड़े पदों और पुरस्कारों से अलंकृत किया जाता था। स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रोत्थान का आह्वान ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ हमारे प्राणों में गूंजता है।
भाजपा ने न केवल दलित, आदिवासी और महिलाओं को शीर्ष पद पर पहुंचाकर इन वर्गो का सम्मान किया है, अपितु राष्ट्र के सर्वोच्च नागरिक सम्मान अर्थात पद्म सम्मानों को भी ऐसे लोगों के बीच पहुंचाया, जो उनके सच्चे हकदार थे। अब पद्म पुरस्कार राष्ट्र की संस्कृति, परंपरा और प्रगति के लिए महान कार्य करने वाले वास्तविक व्यक्तियों, तपस्वियों, साहित्यकारों, कलाकारों और विज्ञानियों को दिए जा रहे हैं।
राष्ट्रपति का चुनाव हो अथवा पद्म सम्मानों का वितरण, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि व संवेदनशीलता उन्हें राजनीतिक समझौतों या स्वार्थो से बाहर निकालकर पवित्रता प्रदान करती है। भाजपा दलित, आदिवासी या महिलाओं को सम्मान देकर समाज को जगाने व एक वैचारिक सामाजिक क्रांति करने का प्रयत्न कर रही है। जागृत जनता ही श्रेष्ठ राष्ट्र का, श्रेष्ठ भारत का निर्माण कर सकती है। ऐतरेय ब्राह्मण में सदियों पूर्व लिखा गया था, ‘राष्ट्रवाणि वैविश:’ अर्थात् जनता ही राष्ट्र को बनाती है। द्रौपदी मुमरू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाना भारतीय जनता पार्टी द्वारा समस्त आदिवासी समाज व महिलाओं के भाल पर गौरव तिलक लगाने की तरह है। हमें अब तक उपेक्षित और शोषित रहे वर्ग को समर्थ तथा सशक्त बनाना है। एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति बनना सामाजिक सोच को अंधकार से निकालकर प्रकाश में प्रवेश कराना है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की संरक्षक और आदिवासी उत्थान की प्रणोता बनेंगी।
[मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश]