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MP Nikay Chunav 2022: मध्य प्रदेश में आठ वर्षो के बाद पंचायत और निकाय चुनाव के जरिये शक्ति प्रदर्शन

निकाय चुनाव के मतदान में अभी कुछ दिन शेष हैं लेकिन पंचायतों के पहले चरण का चुनाव हो चुका है। जिन पंचायतों में मतदान कराया गया वहां मतगणना भी हो चुकी है। उनके जो परिणाम आए हैं वे कई बड़े नेताओं की मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 11:29 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 11:29 AM (IST)
MP Nikay Chunav 2022: मध्य प्रदेश में आठ वर्षो के बाद पंचायत और निकाय चुनाव के जरिये शक्ति प्रदर्शन
पंचायत चुनाव में मतदान के लिए भोपाल के एक मतदान केंद्र पर कतारबद्ध मतदाता। जागरण

संजय मिश्र। मध्य प्रदेश इन दिनों चुनाव के रंग में रंगा हुआ है। लगभग आठ वर्षो के बाद पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव हो रहे हैं। भाजपा एवं कांग्रेस जहां आमने-सामने की लड़ाई में है, वहीं अनेक सीटों पर कई राजनीतिक दल त्रिकोण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा एवं कांग्रेस इसे 2023 के विधानसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास मानकर लड़ रही हैं। चुनावी परिवेश में विधानसभा चुनाव के पूर्व के शक्ति प्रदर्शन की ध्वनि गूंज साफ सुनाई दे रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां भाजपा प्रत्याशियों के लिए जमकर सभाएं कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए कमल नाथ ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है।

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प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों में भाजपा का प्रभुत्व रहा है। दिसंबर 2014 में हुए चुनाव में सभी 16 नगर निगमों में भाजपा के ही महापौर चुने गए थे। नगर पालिकाओं और नगर परिषदों के ज्यादातर अध्यक्ष भी भाजपा के ही रहे हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तो कमल नाथ सरकार ने सुनियोजित तरीके से नगरीय निकायों में नगर पालिक विधि में संशोधन करके महापौर एवं निकायों के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का प्रविधान कर दिया। इसमें महापौर और अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता की जगह पार्षदों के माध्यम से कराने की व्यवस्था बनाई गई थी। मकसद साफ था कि जनता पार्षद चुनेगी और फिर पार्षदों में से कोई महापौर और अध्यक्ष बनेगा। इसमें जोड़-तोड़ के जरिये सरकार अपनी पसंद का महापौर बनाने में सफल हो सकती थी। भाजपा ने कांग्रेस की मंशा को समझ लिया और इसका पुरजोर विरोध किया। उसने तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन से मिलकर इसे लोकतंत्र के लिए अनुचित मानते हुए अनुरोध किया कि अध्यादेश को अनुमति न दें।

संविधानिक व्यवस्था के चलते ऐसा नहीं हो पाया और राज्यपाल ने सरकार के प्रस्ताव को अनुमति दे दी। बाद में कानूनी अड़चनों के कारण समय पर चुनाव नहीं हो पाए। मार्च 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद शिवराज सरकार ने कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियम में संशोधन के लिए विधेयक का प्रारूप तैयार कराया। इसे विधानसभा में प्रस्तुत भी कर दिया, लेकिन यह पारित नहीं हो सका। इस तरह कांग्रेस सरकार के समय लागू की गई अप्रत्यक्ष चुनाव की प्रणाली प्रभावी रही। हालांकि निकायों में आरक्षण मामला सुप्रीम कोर्ट में चले जाने के कारण चुनाव कानूनी अड़चनों में फंस गया। मई में जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव का रास्ता साफ हो गया तो आनन-फानन शिवराज सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने की व्यवस्था लागू कर दी।

विधानसभा चुनाव के पूर्व हो रहे इस चुनाव की महत्ता को देखते हुए भाजपा विशेष सतर्कता बरत रही है। टिकट वितरण में नए चेहरों को प्राथमिकता देकर उसने साफ संदेश दिया कि परिवारवाद नहीं चलेगा। जिन प्रत्याशियों के परिजनों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी हुई, उनके टिकट से वंचित रखा गया। इंदौर में एक और भोपाल में दो ऐसे प्रत्याशियों के टिकट काटे गए जिन्हें स्थानीय मंत्रियों एवं विधायकों की पैरवी पर प्रत्याशी बनाया गया था। मुख्यमंत्री ने संदेश दे दिया कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को किसी भी स्थिति में आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। इस प्रयोग के परिणाम जो भी आएं, लेकिन जनता और कार्यकर्ताओं के बीच इसका अच्छा संदेश गया है।

निकाय एवं पंचायत चुनाव भले ही स्थानीय हों, पर इनका महत्व कितना है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों दलों के वरिष्ठ नेता जीजान से जुटे हैं। वे किनारे रहकर कोई जोखिम लेना नहीं चाहते। कमल नाथ ने तो विधायकों और विधानसभा चुनाव का टिकट चाहने वालों से साफ कह दिया है कि निकाय चुनाव के परिणाम के आधार पर उनका रिपोर्ट कार्ड बनेगा। इसके आधार तय होगा कि विधायकों का टिकट कायम रहेगा या नहीं। यही कारण है कि विधायक अपने-अपने क्षेत्र में पूरी ताकत से प्रत्याशी के साथ खड़े हैं। हालांकि कई जगह बागी प्रत्याशी दोनों दलों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। अभी भी मान-मनौवल का दौर चल रहा है। 

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]


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