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Anekant Gyan Mandir Research Institute: अनूठे शोध संस्थान में ताड़पत्र पर लिखी थाती को सहेजने की मुहिम

Anekant Gyan Mandir Research Institute मप्र के बीना स्थित संस्थान में संरक्षित किए गए 300 से 1500 वर्ष पुराने जैन धर्मग्रंथ धर्म-अध्यात्म से लेकर आयुर्वेद कला व जीवनशैली की जानकारी अंकित। 1899 में काष्ठ फलक पर लिखा धार्मिक साहित्य दुर्लभ कृतियों में शामिल है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 25 May 2022 05:17 PM (IST)Updated: Wed, 25 May 2022 05:17 PM (IST)
Anekant Gyan Mandir Research Institute: सोने की स्याही से ताड़पत्र पर लिखा कथा ग्रंथ दिखाते भैयाजी संदीप सरल। फोटो- नवदुनिया

अजय जैन, विदिशा: देश भर में अलग-अलग विषयों के हजारों शोध संस्थान हैं लेकिन मध्य प्रदेश के सागर जिले के बीना शहर में अनूठा शोध संस्थान है जहां तीन सौ वर्ष से 1,500 वर्ष पुराने ग्रंथों की पांडुलिपियां मौजूद हैं। यहां 600 स्थानों से एकत्र किए गए 30 हजार ग्रंथ मौजूद हैं, जिनमें 200 ग्रंथ ताड़पत्र पर लिखे हैं। यह ग्रंथ जैन धर्म के प्राचीन इतिहास से लेकर आध्यात्म, आयुर्वेद, कला, वास्तुशास्त्र की अद्भुत जानकारियां देते हैं। प्राकृत, संस्कृत, पाली और अभ्रंश भाषाओं में लिखे इन ग्रंथों को पढऩे के लिए शोध संस्थान युवाओं को भाषा ज्ञान भी करा रहा है।

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अनेकांत ज्ञान मंदिर शोध संस्थान इन दुर्लभ ग्रंथों से लोगों को रूबरू कराने के लिए देश भर में जगह-जगह प्रदर्शनी भी लगाता है। संस्थान के संस्थापक बाल ब्रम्हचारी भैयाजी संदीप सरल बताते हैं कि वर्ष 1992 में इस संस्थान की स्थापना हुई थी। उन्होंने देश के 15 राज्यों के 600 से अधिक शहरों और कस्बों में घूमकर 30 हजार दुर्लभ ग्रंथों की पांडुलिपियों को एकत्र किया है, इनमें 200 पांडुलिपियां ताड़पत्र पर लिखी हुई है।संस्थान इनका डिजिटलीकरण भी कर रहा है।

विदिशा। ताड़पत्र पर लिखी 1300 वर्ष पुरानी सुभाषित रत्नावली की पांडुलिपि दिखाते भैयाजी संदीप सरल।

युवाओं को प्राचीन भाषाएं सिखा रहा संस्थान : सैकड़ों वर्ष पहले लिखे यह ग्रंथ अलग- अलग भाषाओं में लिखे गए है, इनमें प्राकृत, पाली, अपभ्रंश और संस्कृत शामिल हैं। शोध संस्थान युवाओं को यह प्राचीन भाषाएं सिखाने का काम भी कर रहा है। भैयाजी संदीप बताते हैं कि उन्हें यह चारों भाषाएं पढऩी आती हैं। वह अलग-अलग शहरों में संस्कार कक्षा लगाकर बच्चों और युवाओं को यह भाषाएं सिखाते हैं। उनके अनुसार कुछ ग्रंथ कन्नड़ और तमिल भाषा के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी हैैं। इन्हें पढऩे के लिए क्षेत्रीय विद्वानों की सहायता ली जाती है।

ग्रंथों में नीति से नियम का सार : प्राचीन ग्रंथों में शासक की नीतियों से लेकर जीवन में उपयोग में लाए जाने वाले नियमों की जानकारी भी दर्ज है। महाराष्ट्र के सोलापुर से मिले ताड़पत्र पर रचित सुभाषित रत्नावली ग्रंथ सकल कीर्ति आचार्य द्वारा 1,300 वर्ष पहले लिखा गया था। इस ग्रंथ में शासन और समाज की नीतियों को बताया गया है। इसके अलावा 700 वर्ष पुराने आयुर्वेद से संबंधित ग्रंथ में खानपान से लेकर जीवन जीने के नियम बताए गए हैं।

अनेकांत शोध संस्थान में अलमारियों में सुरक्षित रखे दुर्लभ ग्रंथ।

ग्रंथों की सुरक्षा के लिए जैविक तरीका: भैयाजी संदीप सरल बताते हैं कि ताड़पत्र पर लिखे ग्रंथों की सुरक्षा के लिए वह जैविक तरीका अपनाते हैं। इन ग्रंथों के साथ नीम पत्ती, कपूर और लौंग से बने पाउडर की कपड़े से बनी पोटली रखते हैं। इसकी वजह से ग्रंथों में कीटाणु नहीं लग पाते। इसके अलावा ग्रंथों को धूप और हवा से बचाकर रखा जाता है।

बीना में दुर्लभ ग्रंथों के लिए बना अनेकांत शोध संस्थान।

सोने की स्याही से लिखा है भक्तांबर स्त्रोत: शोध संस्थान में 400 वर्ष पहले ताड़पत्र पर लिखे भक्तांबर स्त्रोत की पांडुलिपि भी है। सचित्र स्त्रोत में सोने की स्याही का उपयोग किया गया है। संदीप बताते हैं कि प्राचीन काल में धर्म के संवर्धन के लिए लिपिकार से इस तरह लिखवाया जाता था ताकि वर्षों तक यह ग्रंथ मौजूद रहें। उनके अनुसार प्राचीन काल में सोने के अलावा लेखन में काजल का भी उपयोग होता था। ताड़पत्र पर सुई की नोक से शब्द उकेरे जाते थे और उसे सोने के पानी या काजल की स्याही से भरा जाता था। इस वजह से सैकड़ों वर्ष बाद भी यह ग्रंथ सुरक्षित हैं।


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