राज्य ब्यूरो, भोपाल। मानसिक बीमारियों से पीड़ित होने के बाद भी बहुत से लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती, क्योंकि इनके बारे में जागरूकता का काफी अभाव है। मानसिक बीमारियों की घर बैठे पहचान के लिए मध्य प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग 'मेंटल हेल्थ असेसमेंट' एप बना रहा है।
इसके माध्यम से व्यक्ति खुद यह जांच कर सकेगा कि वह मानसिक समस्याओं से पीड़ित तो नहीं है। इसके लिए एप में कुछ प्रश्नों के उत्तर लिखने होंगे। इन उत्तरों के आधार पर एप एक स्कोर (कुल अंक) तैयार करेगा। निर्धारित मापदंड से अधिक अंक होने पर उस व्यक्ति को मानसिक समस्या से पीड़ित माना जाएगा।
इसके बाद उसे यह विकल्प भी दिया जाएगा कि वह मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन पर काउंसलर से संपर्क कर सके। मानसिक रोगियों के उपचार के लिए प्रदेश के जिला अस्पतालों में बनाए गए 'मन कक्षों' की जानकारी भी रहेगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के उप संचालक डा. शरद तिवारी ने बताया कि एप तैयार करने का काम चल रहा है।
उन्होंने कहा कि अप्रैल तक यह सुविधा शुरू हो सकती है। संकोच के चलते कई लोग मानसिक बीमारियों के उपचार के लिए डाक्टर के पास नहीं जाते, वे एप से मूल्यांकन कर सकेंगे। इससे आत्महत्या के मामले, अवसाद, चिंता की बीमारी, नशाखोरी, अनिद्रा की बीमारी कम की जा सकेगी।
एप में इस तरह के पूछे जाएंगे प्रश्नः
- रात में नींद के बीच कितनी बार उठते हैं।
- छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन तो नहीं होता।
- थकान, सिरदर्द और भूख नहीं लगने की दिक्कत है।
- खालीपन महसूस होता है।
- किसी से मिलने या बात करने की इच्छा नहीं होती।
- ऐसा लगता है कि जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा।
इसको लेकर मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डा प्रभुराम चौधरी ने कहा कि मानसिक बीमारियों की जल्द पहचान हो सके, इसलिए मेंटल हेल्थ असेसमेंट एप बना रहे हैं। इसका खूब प्रचार-प्रसार भी करेंगे, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग अपना मूल्यांकन कर सकें।
अध्ययन: चार से छह साल बाद शुरू हो पाता है उपचार
भोपाल के मनोचिकित्सक डा. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ व न्यूरो साइंस (निमहांस) के वर्ष 2015 के एक अध्ययन में सामने आया था कि मानसिक रोगियों का उपचार शुरू होने में चार से छह साल लग जाते हैं। यह भी पता चला था कि देश में औसतन 14 और मध्य प्रदेश में 17 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं।
बता दें कि 90 प्रतिशत लोगों को बीमारी के बारे में जानकारी ही नहीं होती, इसलिए वे यह मानने को तैयार ही नहीं होते। डा. त्रिवेदी ने कहा कि कोविड के बाद नींद में असंतुलन और मोबाइल के ज्यादा उपयोग से दिक्कतें और बढ़ी हैं। ऐसे में एप लोगों को जागरूक करने में काफी मदद करेगा।