Bhopal: उद्योगों के दूषित जल को पुनः उपयोग लायक बनाएगी ये नैनो तकनीक, 45 मिनट में पूरा पानी साफ
इसमें सेमीकंडक्टर को सक्रिय कार्बन पर जोड़कर एक नई फोटोकैटलिस्ट बनाया जाता है। कैटलिस्ट की सिंथेसिस में टीआइओटू सेमीकंडक्टर और सक्रिय कार्बन का शामिल होना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस कैटलिस्ट को संश्लेषित करने के लिए सभी आवश्यक पैरामीटर्स और सांद्रता का अनुकूलन किया गया था। इस सेमीकंडक्टर में कार्बन का उपयोग किया जाता है ताकि यह पानी में मौजूद प्रदूषक को सोख सके।
अंजली राय, भोपाल। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन रिसर्च (आइसर) के विज्ञानियों ने फार्मा कंपनियों के दूषित जल को शुद्ध करने की दिशा में बड़ी सफलता पाई है। आइसर के रसायन अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ शंकर चाकमा ने शोधार्थियों के साथ मिलकर एक कार्बन आधारित नैनो कम्पोजिट तैयार किया है, जो जल को शुद्ध करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इसके लिए विज्ञानियों ने सेमीकंडक्टर सामग्री और एक्टिवेटेड कार्बन से नैनो कम्पोजिट तैयार किया है, जो पाराबैंगनी प्रकाश के विकिरण की उपस्थिति में फोटो कैटेलिटिक तकनीक से दवाइयों में मौजूद एंटीबायोटिक को अपघटित कर देता है।
विज्ञानियों का कहना है कि इस प्रक्रिया में करीब 40 से 45 मिनट का समय लगता है। इस दौरान दूषित जल में मौजूद एंटीबायोटिक को अपघटित कर जल को 88 फीसद तक शुद्ध कर देता है। यह प्रक्रिया जल के संचयन में काफी लाभकारी साबित होगा। बता दें कि यहां विज्ञानी न केवल एंटीबायोटिक्स के विघटन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, बल्कि विघटन प्रक्रिया के दौरान बने मध्यस्थों की पहचान पर भी ध्यान देते हैं।
इसके अलावा, उन्होंने मध्यस्थों के उपजातियों की विषाक्तता की जांच भी की और पाया कि उपजातियां मुख्य यौगिक की तुलना में बहुत कम विषाक्तता दिखाती हैं। विज्ञानी यह भी दावा करते हैं कि यह तकनीक सस्ता और लाभकारी है, क्योंकि एक्टिवेटेड कार्बन, जो एक्टिवेटेड कार्बन डाप्ड सेमीकंडक्टर फोटोकैटलिस्ट की संश्लेषण में उपयोग हुआ, वातावरण में मौजूद अपशिष्ट से बनाया गया है। बता दें कि यह अध्ययन हाल ही में रिसर्च आन केमिकल इंटरमीडिएट्स जर्नल में प्रकाशित हो चुका है।
क्या है एक्टिवेटेड कार्बन डाप्ड सेमीकंडक्टर फोटोकैटलिस्ट
इसमें सेमीकंडक्टर को सक्रिय कार्बन पर जोड़कर एक नई फोटोकैटलिस्ट बनाया जाता है। कैटलिस्ट की सिंथेसिस में टीआइओटू सेमीकंडक्टर और सक्रिय कार्बन का शामिल होना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस कैटलिस्ट को संश्लेषित करने के लिए सभी आवश्यक पैरामीटर्स और सांद्रता का अनुकूलन किया गया था। इस सेमीकंडक्टर में कार्बन का उपयोग किया जाता है, ताकि यह पानी में मौजूद प्रदूषक को सोख सके।
इसी तरह फोटो कैटेलिटिक तकनीक में रोशनी की ऊर्जा का उपयोग रासायनिक प्रतिक्रियाओं को चलाने के लिए किया जाता है। एक फोटो कैटेलिस्ट (आमतौर पर एक ठोस सामग्री) रोशनी को अवशिष्ट करता है और गति को तेज करता है। यह स्थिति अन्य मोलेक्यूलों के साथ प्रतिक्रिया करती है, जिससे प्रतिक्रिया मध्यवर्ती उत्पन्न होते हैं। हर प्रतिक्रिया के बाद, फोटो कैटलिस्ट अपने आप को पुनर्जीवित करता है।
ताकि शुद्ध जल की ना हो कमी
एक अनुमान के अनुसार, जल्द ही दुनिया की करीब दो-तिहाई आबादी पानी की कमी की समस्या से जूझती नजर आएगी। इसी को ध्यान में रखकर विज्ञानियों ने इस शोध को आगे बढ़ाया है। इस शोध में प्रो. एएस गिरि, प्रो. वीआर दुग्याला, डा. शंकर चाकमा, मंजू नागर गालोदिया और आदित्य पाटिदार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शोध को पूरा करने में करीब साल भर का समय लगा है ।
इस शोध से फार्मा कंपनियों के दूषित जल को 88 फीसद तक शुद्ध किया जा सकता है। इससे पानी की समस्या काफी दूर होगी।
डॉ शंकर चाकमा, विभागाध्यक्ष, रसायन अभियांत्रिकी विभाग, आइसर