MP High Court: जानें, ससुर पर दुष्कर्म का आरोप लगाने वाली पीड़िता को क्यों नहीं मिली गर्भपात की अनुमति
MP High Court Father In Law Molestation Case दुष्कर्म पीड़िता ने हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने गर्भपात की अनुमति के लिए दायिर याचिका शपथ पत्र नहीं मिलने पर खारिज कर दी। याचिका में पीड़िता ने दावा किया था कि यह गर्भ ससुर द्वारा दुष्कर्म की वजह से ठहरा है।
ग्वालियर, जेएनएन। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने वीरवार को एक दुष्कर्म पीड़िता से उस मामले में अपना शपथ पत्र पेश किया, जिसमें कोर्ट ने पूछा था कि यदि उसके पेट में पल रहे बच्चे के जैविक पिता ससुर नहीं निकले तो क्या वह हत्या व अवमानना के केस का सामना करने के लिए तैयार है। पीड़िता ने शपथ पत्र में कहा कि बच्चे के जैविक पिता ससुर हैं। ससुर ने 23 फरवरी, 2022 को दुष्कर्म किया था, जिससे वह गर्भवती हुई थी। यदि मेरे गर्भ में पल रहे बच्चे के पिता ससुर नहीं निकलते हैं तो मैं अवमानना व धारा 302 की कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार हूं। शपथ पत्र पढ़कर कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के भविष्य का सवाल है और उसे तलब कर लिया। कोर्ट ने पीड़िता से पूछा- शपथ पत्र में जो बातें लिखी हैं, क्या उनकी जानकारी है। पीड़िता ने कहा- मैं निरक्षर हूं, इसलिए क्या लिखा है, उसकी जानकारी नहीं है। याचिका किस बात के लिए दायर की है, इसकी भी जानकारी नहीं है। कोर्ट ने सभी स्थितियों को देखते हुए कहा कि पीड़िता को यह भी नहीं पता कि उन्होंने किस बात को लेकर याचिका दायर की है, इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है। पीड़िता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती। पीड़िता ने भिंड जिले के मालनपुर थाने में ससुर के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज कराया था। शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता एके निरंकारी ने पैरवी की।
जानें, क्या है मामला
21 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता ने याचिका में तर्क दिया था कि पति काम के सिलसिले में बाहर गए थे। 52 वर्षीय ससुर ने अकेला देखकर दुष्कर्म किया, जिससे वह गर्भवती हो गई। इस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है, इसलिए गर्भपात की अनुमति दी जाए। हाई कोर्ट ने 23 मई को शासन व याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद दतिया के एक केस का हवाला दिया था, जिसमें पीड़िता ने तथ्य छिपाकर गर्भपात की अनुमति ली थी। जब कोर्ट के सामने सच आया तो दुख व्यक्त किया था। कहा था कि पीड़िता व उसके पिता ने जन्म से पहले ही एक बच्चे की हत्या करा दी। इस घटना को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता से दो बिंदुओं पर स्पष्ट शपथ पत्र मांगा था।