Gwalior news: अब 37 डिग्री के तापमान में भी होगी मटर की अच्छी खेती, स्टोर करने पर स्वाद बदलेगा न रंग
मटर की इस नई किस्म को भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर के कृषि विज्ञानी डा. अशोक परिहार और डा. जेपी दीक्षित ने बनाया है। इस काम में इन्हें करीब दस साल लगे। इसकी खासियत यह भी है कि सूखी मटर को कोल्ड स्टोर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
ग्वालियर, अजय उपाध्याय। कृषि वैज्ञानिकों ने मटर के ऐसे उन्नत किस्म के बीज का विकास किया है, जो 30 के बजाए 37 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी भरपूर उत्पादन देगा। यही नहीं, स्टोर कर रख देने पर भी इस मटर का रंग हरा रहेगा और स्वाद ताजा मटर जैसा ही होगा। वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति की पैदावार अन्य मटर के मुकाबले 30 प्रतिशत अधिक होने का दावा किया है।
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर के कृषि विज्ञानी डा. अशोक परिहार और डा. जेपी दीक्षित ने यह नई किस्म तैयार की है, जिसका नाम आइपीएफडी 10-12 रखा गया है। इस नई किस्म को तैयार करने में करीब दस साल लगे हैं। कृषि विज्ञानियों का कहना है आइपीएफडी 10-12 बीज से उत्तर भारत में मटर का उत्पादन 30 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है।
मधुमेह के रोगी भी इसका जमकर ले सकेंगे स्वाद
झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, दतिया एवं शिवपुरी आदि के किसान इसका उत्पादन करने में रुचि दिखा रहे हैं। इस बीज के दाने में मिठास कम रहने से मधुमेह रोगी भी इसका स्वाद ले सकेंगे। राजमाता विजयाराराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के डायरेक्टर आफ रिसर्च संजय शर्मा का कहना है कि बीज को ब़़ढावा देने के लिए दतिया, भिंड व ग्वालियर के किसानों को बीज की उपलब्धता कराई गई है।
Good News : चंदौली जिले में गेहूं की खेती के लिए प्रमाणित बीज पर अन्नदाताओं को मिलेगा अनुदान
सूखी मटर को कोल्ड स्टोर में रखने की आवश्यकता नहीं होगी
रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय झांसी के कृषि विज्ञानी डा. सुशील चतुर्वेदी का कहना है कि इस बीज से तैयार मटर का दाना सूखने पर रंग नहीं बदलता। सूखी मटर को कोल्ड स्टोर में रखने की जरूरत नहीं प़़डेगी। किसान अब खुद हरी मटर को डिब्बा पैक कर बाजार में ऊंचे दाम पर बेच सकेंगे।
दो बार की सिंचाई में तैयार होती है फसल
डा. चतुर्वेदी का कहना है मटर की फसल 120 से 125 दिन में तैयार होगी। वर्तमान मटर की फसल के लिए एक बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, जबकि इस नई किस्म में दो बार पानी दिया जाता है। इसकी बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से 10 नवंबर तक होनी चाहिए, जिससे इसकी पैदावार बेहतर होती है तथा 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।
इसमें डाई अमोनियम सल्फेट की खाद देने की आवश्यकता होती है, जिससे पैदावार 28 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है। इसकी फलियां तोड़कर सब्जी के लिए बेची जा सकती हैं और यह मटर सूखने के बाद सब्जी से लेकर चाट, नमकीन आदि के लिए बहुत उपयोगी होती है। बीज में रोग प्रतिरोधक क्षमता होने से कीट व बीमारियों से बचाव रहेगा।
बीज से पैदावार आम मटर से डेढ़ गुना ज्यादा
डा. एसके चतुर्वेदी कहते हैं कि आइपीएफडी 10-12 किस्म की पैदावार आम मटर की प्रजाति से डेढ़ गुना अधिक है और मिठास कम होने के साथ इसका दाना सूखने के बाद भी हरा व गोल रहेगा। उत्तर भारत में इसकी पैदावार पिछले बीजों से 30 प्रतिशत अधिक होगी। किसान अब हर मौसम में मटर के हरे दाने का छोटे पैकेट बनाकर बाजार में बेच सकेंगे। इससे उनकी आय भी बढ़ेगी।
Hapur News: आसपास के किसानों के बीच मिसाल बनीं गढ़मुक्तेश्वर की राजदुलारी