अहिल्याबाई प्रतिदिन मिट्टी के एक करोड़ शिवलिंग का पूजन के बाद नर्मदा नदी में विसर्जित करती
gyanvapi masjid भगवान शिव के प्रति देवी अहिल्याबाई होलकर की आस्था श्रृद्धा और विश्वास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके हस्ताक्षर में कहीं भी उनका नाम नहीं बल्कि श्री शंकर आदेश लिखा रहता था। फिर चाहे कोई निजी पत्र हो या शासकीय दस्तावेज।
इंदौर, जेएनएन । अहिल्याबाई प्रतिदिन कोटी लिंगार्चन करती थीं, स्वयं से अधिक शिव पर विश्वास करने वाली अहिल्याबाई ने न केवल सदियों पहले काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया बल्कि हिमालय पर स्थित केदारनाथ ज्योर्तिलिंग से लेकर दक्षिण में समुद्र के तट पर स्थापित ज्योर्तिलिंग रामेश्वरम् तक निर्माण और जीर्णोद्धार कार्य कराया। 12 ज्योर्तिलिंग ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न शिव मंदिरों व अन्य मंदिरों का भी निर्माण और जीर्णोद्धार कराया।
भगवान शिव के प्रति देवी अहिल्याबाई होलकर की आस्था, श्रृद्धा और विश्वास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके हस्ताक्षर में कहीं भी उनका नाम नहीं बल्कि श्री शंकर आदेश लिखा रहता था। फिर चाहे कोई निजी पत्र हो या शासकीय दस्तावेज। उनके लिए शिव आराधना, न्याय और प्रजा ही सर्वोपरी थी।
मालूम हो कि अहिल्याबाई प्रतिदिन कोटी लिंगार्चन करती थीं। हर सुबह मिट्टी से एक करोड़ शिवलिंग बनाए जाते थे। उनका पूजन कर उन्हें नर्मदा नदी में विसर्जित किया जाता था। इस पूजन के लिए उन्होंने पंडितों की विशेष व्यवस्था भी की थी। इन शिवलिंग में अनाज रखा जाता है ताकि नदी की गहराई में रहने वाले जीव जो ऊपर नहीं आ पाते उनतक भोजन पहुंच सके। यह परंपरा आज भी महेश्वर के उस मंदिर में जारी है जहां अहिल्याबाई पूजा किया करती थीं। वर्तमान में सोमवार को एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा होती है और शेष दिनों में 10 हजार शिवलिंग बनाकर पूजा होती है। पूजा के बाद यह शिवलिंग नर्मदा में विसर्जित किए जाते हैं।
इतिहासकार के अनुसार जब अहिल्याबाई महेश्वर से शासन चला रही थीं तब स्थानीय लोगों ने उनसे नर्मदा किनारे घाट बनाने की प्रार्थना की। यहां घाट बनवाने से पहले उन्होंने काशी विश्वनाथ का मंदिर बनवाया। यह मंदिर ऐसे स्थान पर बनवाया कि जिस गद्दी पर वे बैठकर राज्य की बागडोर संभालती थी वहां से मंदिर और नर्मदा नदी के दर्शन हो जाएं। इस मंदिर के निर्माण के बाद महेश्वर में 22 घाटों का निर्माण करवाया। सभी घाट पर शिव मंदिर बनवाए और जगह-जगह शिवलिंग स्थापित किए ताकि हर व्यक्ति शिव आराधना कर सके और घाट पर मंदिर व शिवलिंग स्थापित होने से उसकी पवित्रता बनी रहे।
जानकारी हो कि वाराणासी में काशी विश्वनाथ मंदिर और सौराष्ट्र में सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर उसे नया स्वरूप दिया जिसका अस्तित्व सदियों बाद भी स्थापत्यकला, उदारशीलता और कर्तव्यपरायणता का उदाहरण प्रस्तुत करता है। महराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तर भारत सहित देश के विभिन्न प्रांतों में अहिल्याबाई ने मंदिर, घाट, कुंए, बावड़ी, धर्मशालाएं, पुल आदि बनवाए। उन्होंने ऋषिकेश, गंगोत्री, विष्णु प्रयाग, हरिद्वार, बद्रीनाथ, वृंदावन, अयोध्या, नैमिषारण्य, इलाहाबाद, वाराणसी, गया, पुष्कर, नाथद्वारा, उज्जैन, ओंकारेश्वर, अमरकंठक, द्वारका, नासिक, एलोरा, पुणे, जेजुरी, चौंडी, बाफगांव, संबलग्राम, पंढरपुर, राजापुर, गौकर्ण, रामेश्वर आदि स्थानों पर लोकहित में निर्माण कार्य कराए। इसके अतिरिक्त प्रदेश में बुरहानपुर, खरगोन, हातोद, देवगुराड़िया, तिल्लौरखुर्द, पिपलदा, सांवेर, देपालपुर, गौतमपुरा, मनासा, रामपुरा, भानपुरा, तराना आदि स्थानों पर भी निर्माण कार्य करवाए हैं।
जानकारी के अनुसार अहिल्याबाई ने काशी, मथुरा, जेजुरी, पंढ़रपुर, ओंकारेश्वर आदि तीर्थों की यात्रा तो की ही साथ ही चारों धामों, 12 ज्योर्तिलिंगों, सात नगरियों, अन्य तीर्थ स्थानों और नदियों के किनारे उन्होंने कई मंदिर, घाट, धर्मशालाएं भी बनवाई। 1784 में उन्होंने परली बैजनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और 1785 में सौराष्ट्र में सोमनाथ महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार करा कर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ श्री तारकेश्वर, श्रीगंगाजी सहित नौ मंदिर बनवाए।
यहां भी कराया कार्य:
* द्वारका में पूजा घर बनवाया
* रामेश्वरम् में राधाकृष्ण मंदिर, धर्मशालाएं व कुएं बनवाए।
* जगन्नाथपुरी में रामचंद्र मंदिर, धर्मशाला व कुएं बनवाए।
* ओंकारेश्वर में ममलेश्वर व त्रयंबकेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, शिवजी का चांदी का मुखौटा बनवाया।
* अयोध्या में राम मंदिर, चेताराम मंदिर, भैवर मंदिर, नागेश्वर मंदिर सहित अन्य मंदिर बनवाए।
* उज्जैन में चिंतमन गणपति, जनार्दन मंदिर, लीला पुरुषोत्तम बालाजी मंदिर, घाट, कुंड, धर्मशालाएं व बावडि़यं बनवाई।
* चित्रकूट में श्रीराम व अन्य चार मूर्तियों की स्थापना की।
* नाथद्वारा में मंदिर, धर्मशाला, कुंआ व कुंड बनावाया।
* बेरूल (कर्नाटक) में गणपति, पांडुरंग, जलेश्वर, खंडोबा, तीर्थराज व अग्नि के मंदिर बनवाए।
* प्रयाग में विष्णु मंदिर, धर्मशाला आदि का निर्माण।
* नासिक में श्रीराम मंदिर, गोरा महादेव मंदिर व धर्मशाला का निर्माण।
* गया में श्रीविष्णुपद मंदिर, सभा मंडप का निर्माण।
* पुष्कर में श्री विष्णु मंदिर, घाट और धर्मशाला का निर्माण।
* त्रयंबकेश्वर में दो मंदिर और एक तालाब का निर्माण।
* गंगोत्री में विश्वनाथ, केदारनाथ, अन्नपूर्णा, भैवर मंदिर, छह धर्मशालाएं बनवाई।