पीलीभीत में राग-द्वेष के भंवर में मेनका
चुनाव में किसकी हवा है? बरखेड़ा-पूरनपुर रोड पर स्थित पिपरिया भजा गांव के प्रधान के घर के बरामदे में हथेली पर खैनी मलते डोरीलाल कश्यप ने सवाल सुनकर झट कहा, 'पीलीभीत में जो भी लड़ेगा, कमल के फूल से लड़ेगा।' अगला सवाल- 'तो क्या मेनका गांधी जीतेंगी? 'जीतेंगी तो बीजेपी की वजह से', इस बार जवाब साथ बैठे परशुराम कश्यप की ओर स
[राजीव दीक्षित], पीलीभीत। चुनाव में किसकी हवा है? बरखेड़ा-पूरनपुर रोड पर स्थित पिपरिया भजा गांव के प्रधान के घर के बरामदे में हथेली पर खैनी मलते डोरीलाल कश्यप ने सवाल सुनकर झट कहा, 'पीलीभीत में जो भी लड़ेगा, कमल के फूल से लड़ेगा।' अगला सवाल- 'तो क्या मेनका गांधी जीतेंगी? 'जीतेंगी तो बीजेपी की वजह से', इस बार जवाब साथ बैठे परशुराम कश्यप की ओर से आया। इस संक्षिप्त जवाब में एक संदेश छिपा था और कहने के अंदाज के रूखेपन से उदासीनता भी। बीसलपुर के मोहम्मदपुर भजा गांव के बाबूराम गंगवार भी बतौर सांसद मेनका से संतुष्ट नहीं लेकिन वोट उन्हीं को देना चाहते हैं।
पांच साल पहले पीलीभीत की अपनी सीट बेटे वरुण गांधी के हवाले करने के बाद सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में बतौर भाजपा प्रत्याशी अपने पुराने संसदीय क्षेत्र में वापस आई मेनका के प्रति मतदाताओं के राग-द्वेष का यह मिश्रित भाव चौंकाता है। ससुराल से अलगाव और 1984 में अमेठी से जेठ राजीव गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव हारने के बाद नेहरू गांधी परिवार की बहू मेनका ने 1989 में पीलीभीत को अपना संसदीय क्षेत्र चुना और यहां की जनता ने उन्हें सर-माथे बैठाकर पांच बार लोकसभा भेजा। इस कदर कि पीलीभीत और मेनका एक-दूसरे के पर्याय बन गए। पांच साल बाद जब वह फिर पीलीभीत लौटी हैं तो परिस्थितियां बदली हुई हैं। उनकी चर्चा तो हर तरफ है लेकिन तराई के इस पिछड़े जिले के मतदाता अपने वोट के तराजू में जनप्रतिनिधि के तौर पर क्षेत्र के लिए उनकी पिछली सेवाओं को भी तौल रहे हैं। कहीं यह अहसास है कि मेनका और उनके बेटे वरुण के जरिये क्षेत्र को जो मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। व्यक्ति से अपेक्षा उसके कद के अनुरूप होती है और मेनका इसका अपवाद नहीं।
लोगों के अंदर घुमड़ रहे सवालों का कहीं मेनका को भी इल्म है। शायद यही वजह है कि चुनावी जनसभाओं में वह क्षेत्र के लिए अपनी उपलब्धियां गिनाने की बजाय भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उममीदवार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक ईमानदार सरकार की दुहाई दे रही हैं। जैसे उन्हें अपने पर कम और मोदी पर ज्यादा भरोसा हो। अपना चुनावी अभियान मोदी पर फोकस कर वह भले सवालों से बच रही हों लेकिन जागरूक मतदाता मौके तलाश ही लेते हैं। बीते दिनों पीलीभीत शहर की अशोका कॉलोनी में प्रचार के लिए गई मेनका से स्थानीय महिलाओं ने यह पूछकर उन्हें कुछ पल के लिए असहज कर दिया कि 'आपका चुनावी एजेंडा क्या है?'
और फिर उनके सियासी विरोधी कहां चूकने वाले। बहुजन समाज पाटी के प्रत्याशी अनीस अहमद खां उर्फ फूल बाबू और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार बुद्धसेन वर्मा उन्हें बाहरी बताकर घेरने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी यह आरोप लगाने से इसलिए बच रहे हैं क्योंकि उन पर खुद बाहरी होने का लेबल लगाया जा रहा है। विरोधी यह भी कह रहे हैं कि यदि मेनका जीत गई तो दिल्ली की होकर रह जाएंगी। इन शब्दबाणों का मेनका भले न प्रतिकार करें लेकिन उनके चुनाव प्रबंधन से जुड़े एमके मलिक न सिर्फ सिरे से इसका खंडन करते हैं बल्कि पीलीभीत सांसद के तौर पर मेनका की उपलब्धियों की फेहरिस्त बांच डालते हैं। चुनाव में वोटरों पर डोरे डालने वाले और भी हैं। सपा प्रत्याशी बुद्धसेन वर्मा के समर्थन में पीलीभीत के सपा विधायक और अखिलेश सरकार में खादी-ग्रामोद्योग मंत्री रियाज अहमद घूम-घूमकर राज्य सरकार की उपलब्धियां बता रहे हैं। हालांकि बुद्धसेन के गांव गजरौला के प्रधान महबूब खां इसे चुनावी नौटंकी करार देते हैं। कहते हैं कि सपा ने तो मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था जो कोरा साबित हुआ। सपा, बसपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं या स्टार प्रचारकों ने अभी पीलीभीत का रुख नहीं किया है। दूसरी ओर मेनका गांधी के चुनावी अभियान को अच्छी तरह जानने वालों को ऐसी जरूरत नहीं महसूस होती। पूरनपुर के चंदोइया मोहल्ले में मेनका गई तो अपनी बहू यामिनी रॉय चौधरी का जिक्र कर बंगालियों से कहा कि अब तो आप लोगों से रिश्तेदारी हो गई है।
वोटों के इस संग्राम को जीतने के लिए जाति-धर्म के समीकरण बैठाए जा रहे हैं। बीसलपुर के मुस्लिम बहुल ग्यासपुर मोहल्ले में ईट भट्ठा मालिक हाजी अनवार अली कहते हैं कि मुख्य मुद्दा विकास नहीं, बिरादरीवाद है। यदि लोध सपा प्रत्याशी बुद्धसेन वर्मा के पीछे एकजुट हुए तो मुसलमान भी उनके पीछे जाएंगे वर्ना बसपा उम्मीदवार अनीस अहमद खां को वोट देंगे। मुसलमान तो बसपा को फूल बाबू की वजह से वोट दे रहे हैं, अन्यथा समाजवादी पार्टी को देते। वहीं ग्यासपुर साधन सहकारी समिति के अध्यक्ष बाबूराम गंगवार कहते हैं 'यदि फूल बाबू न लड़ें तो मेनका चुनाव हार जाएं।' उनका इशारा हिंदू-मुस्लिम के आधार पर मतों के ध्रुवीकरण की ओर है।
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