नक्सली इलाकों में बुलेट पर बैलेट की जीत
नक्सली इलाकों में पहले दौर के चुनाव में बुलेट पर बैलेट भारी पड़ा है। गत 10 अप्रैल को नक्सल प्रभावित 12 लोकसभा सीटों पर बहिष्कार की धमकियों और हिंसक वारदातों के बावजूद जनता ने जमकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक बस्तर में मतदान कर्मियों की बस और एंबुलेंस पर हमला नक्सलिय
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। नक्सली इलाकों में पहले दौर के चुनाव में बुलेट पर बैलेट भारी पड़ा है। गत 10 अप्रैल को नक्सल प्रभावित 12 लोकसभा सीटों पर बहिष्कार की धमकियों और हिंसक वारदातों के बावजूद जनता ने जमकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक बस्तर में मतदान कर्मियों की बस और एंबुलेंस पर हमला नक्सलियों की इसी हताशा का नतीजा है। 17 अप्रैल को आठ अन्य नक्सल प्रभावित लोकसभा सीटों पर मतदान होगा। गृह मंत्रालय द्वारा तैयार आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ के बस्तर में, जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता है, कुल 56.40 फीसद मतदान हुआ। यह 2009 के मतदान से करीब 10 फीसद ज्यादा है। इसी तरह बिहार के तीन नक्सल प्रभावित लोकसभा क्षेत्रों औरंगाबाद, गया और जमुई में भी रिकार्ड मतदान हुआ। औरंगाबाद में 2009 के 43.50 फीसद के मुकाबले 51, गया में 42.44 फीसद के मुकाबले 54 और जमुई में 38.12 फीसद के मुकाबले 52 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। जमुई में मतदान के दिन ही नक्सलियों के हमले में तीन जवान शहीद हो गए थे।
झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों में भी लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया। चतरा में 2009 के 45.67 फीसद के मुकाबले 56.40 फीसद, लोहरदगा में 52.21 फीसद के मुकाबले 59 और पलामू में 45.94 फीसद के मुकाबले 59.39 फीसद लोगों ने वोट डाले। नक्सल प्रभावित महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और ओडिशा की चार लोकसभा सीटों में भी इस बार 2009 के मुकाबले ज्यादा लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया।