पाक में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को देखकर बलूचिस्तान के बलूच बोले, इमरान कर्ज उतारने के लिए बेच देंगे देश

पाकिस्तान ने एक चीनी कंपनी को बलूचिस्तान में 35 करोड़ डॉलर के खनन प्रोजेक्ट की इजाजत दी है। ऐसे में यहां रहने वाले ब्लोचों का कहना है कि सरकार देश को बेचने में लगी हुई है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sat, 18 Jul 2020 03:05 PM (IST) Updated:Sat, 18 Jul 2020 06:51 PM (IST)
पाक में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को देखकर बलूचिस्तान के बलूच बोले, इमरान कर्ज उतारने के लिए बेच देंगे देश
पाक में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को देखकर बलूचिस्तान के बलूच बोले, इमरान कर्ज उतारने के लिए बेच देंगे देश

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कोरोना संकट के बीच पाकिस्तान एक बहुत ही बुरे आर्थिक दौर से गुजर रहा है। उस पर 100 अरब डॉलर का ऋण है। मार्च से अब तक दो करोड़ लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं और एक हजार से ज्यादा उद्योग बंद हो गए हैं। ऐसे में अंदरूनी विद्रोह के बाद भी पाकिस्तान सरकार के लिए चीन से नाता तोड़ने का विकल्प ही नहीं है। अब पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके में रहने वाले बलूच चीन से उसकी दोस्ती के खिलाफ हो रहे हैं।

हाल ही में पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान में तांबे और सोने के खनन के लिए चल रहे चीन की एक कंपनी के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की अनुमति दी। स्थानीय मीडिया के अनुसार सैंडक कॉपर-गोल्ड प्रोजेक्ट पर काम एक बार फिर शुरू हो गया है। यह खदान बलूचिस्तान प्रांत के चागी जिले में स्थित सैंडक के करीब है। इसे पहले दस साल के लिए चीन की कंपनी मेटालर्जिकल कॉर्पोरेशन को दिया गया था।

पाकिस्तान में यह कंपनी सैंडक मेटल्स लिमिटेड या एसएमएल के नाम से रजिस्टर्ड है। चीनी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट एक्स्टेंड करने को लेकर बलोच अलगाववादियों के बीच काफी गुस्सा देखा जा रहा है। उनका कहना है कि चीन उनके इलाके से खनिज चुरा रहा है। 

2001 में हुई थी प्रोजेक्ट की शुरूआत 

सैंडक प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2001 में हुई थी। 2002 में इसे दस साल के लिए चीन को सौंप दिया गया था फिर 2012 में इसे पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया और 2017 में एक और एक्सटेंशन मिला। अब 2020 में इस प्रोजेक्ट को और 15 साल के लिए आगे बढ़ा दिया गया है। पाकिस्तान सरकार को उम्मीद है कि इससे देश में 4.5 करोड़ डॉलर का निवेश होगा।

सरकार द्वारा पिछले साल जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 2002 से 2017 के बीच देश को इस प्रोजेक्ट से दो अरब डॉलर का फायदा मिला है। जानकारों का कहना है कि खदान में 40 करोड़ टन से भी अधिक सोने और तांबे का भंडार मौजूद है।

सबसे कम आबादी और सबसे अधिक गरीब 

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे गरीब और सबसे कम आबादी वाला इलाका है। पाकिस्तान ने इस इलाके में कई विकास परियोजनाएं शुरू की हैं लेकिन बावजूद इसके, यहां कोई बदलाव नहीं हुए हैं। पिछले कई दशकों से अलगाववादी यहां सक्रिय हैं। 2005 में पाकिस्तान सरकार ने इनके खिलाफ एक सैन्य अभियान भी चलाया था लेकिन इलाके के हालात वैसे के वैसे ही हैं।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर 

2015 में चीन ने पाकिस्तान में 46 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की, जिसमें बलूचिस्तान की अहम भूमिका होनी थी। चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के जरिए चीन पाकिस्तान और एशिया के अन्य देशों में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है और इस तरह से अमेरिका और भारत से मुकाबला करना चाहता है। सीपीईसी पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थिति ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ेगा। इस योजना के तहत चीन और मध्य पूर्व को सड़क, रेल और तेल पाइपलाइनों से जोड़ा जाएगा। बलूचिस्तान में अलगाववादी और राजनीतिक दल दोनों ही चीन के इस निवेश का विरोध करते रहे हैं।

जून में पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला हुआ, जिसमें तीन लोगों की जान गई। जवाबी कार्रवाई में चार हमलावर भी मारे गए। माना जा रहा है कि इस हमले के पीछे बीएलए यानी बलूच लिबरेशन आर्मी का हाथ है। इससे पहले नवंबर 2018 में बलोच अलगाववादियों ने कराची स्थित चीनी कॉन्सुलेट पर भी हमला किया था। 14 जुलाई को एक हमले में तीन पाकिस्तानी सैनिक और आठ अन्य नागरिक घायल हुए।

बलूचिस्तान की गीचक घाटी में हुए इस हमले के जिम्मेदारी बीएलएफ यानी बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट ने ली। सांसद अकरम बलोच ने कहा कि चीन को खुश करने के लिए सरकार बलोच लोगों से पूछे बिना बीजिंग को एक के बाद एक कॉन्ट्रैक्ट देती जा रही है। इन खनिजों के असली मालिक यहां के लोग हैं। चीन के निवेश के बावजूद बलूचिस्तान अब भी निहायती गरीब है। ना वहां स्वास्थ्य सेवाएं हैं, ना शिक्षा, ना पक्के घर और ना पीने का साफ पानी। अब अगर वहां के खनिजों को और लूटा जाता है, तो इससे चीन विरोधी भावना और भड़केगी। 

चीन की ये आर्थिक परियोजनाएं इलाके में उपनिवेश स्थापित करने का प्रयास हैं। आज तक यहां बलूचिस्तान में जितनी भी विकास परियोजनाएं चलाई गई हैं, इस इलाके को या यहां के लोगों को कभी उनका कोई फायदा नहीं हुआ है। हम दशकों से कहते आ रहे हैं कि सरकार इन प्रोजेक्ट्स को शुरू करने से पहले कभी बलोच लोगों से सहमति नहीं लेती है। यह साफ है कि ये प्रोजेक्ट इलाके की अर्थव्यवस्था बेहतर बनाने के लिए या फिर यहां के लोगों को गरीबी से निकालने के लिए नहीं चलाए जा रहे हैं।

सौ अरब डॉलर के कर्ज तले पाकिस्तान 

बलूचिस्तान पर स्वतंत्र रूप से रिसर्च कर रहे कैसर बंगाली का भी यही मानना है वे कहते हैं कि चीनी कंपनियों को किन शर्तों पर कॉन्ट्रैक्ट दिए जा रहे हैं, इस सिलसिले में कोई पारदर्शिता नहीं है। बलूचिस्तान की सरकार को इनसे बाहर रखा जाता है। इतने प्रोजेक्ट होने के बाद भी लोगों को शायद ही कोई फायदा हुआ है।

पाकिस्तान सरकार इन सभी आरोपों को गलत बताती है। पाकिस्तान की आर्थिक परिषद के अशफाक हसन का कहना है कि उनके देश को विदेशी निवेश की सख्त जरूरत है और चीन एक भरोसेमंद साथी है। "कुछ पाकिस्तान विरोधी तत्व चीन के खिलाफ झूठे आरोप लगा रहे हैं। चीनी निवेश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए  मददगार साबित होगा, खासकर कोरोना संकट के बाद।

बलोच लोगों को भी इससे फायदा होगा। पाकिस्तानी उद्योगपतियों की राय में भी यह फायदे का सौदा है। उनके अनुसार इस निवेश से पाकिस्तान में हजारों लोगों को नौकरियां मिल सकी हैं और लाखों लोगों की जिंदगियां बदली हैं।  

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