पाकिस्‍तान के चुनाव में उतरने वाला कोई है मौका परस्‍त तो किसी को हाथ लगी हर बार हार

इस बार पाक चुनाव में नामी-गिरामी पर्यावरणविद्, पहला अल्पसंख्यक सिख समुदाय का उम्मीदवार, आतंक में पूरे परिवार को खोने वाला तो 41 बार हारने वाला भी शामिल है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 23 Jul 2018 10:03 AM (IST) Updated:Mon, 23 Jul 2018 10:48 AM (IST)
पाकिस्‍तान के चुनाव में उतरने वाला कोई है मौका परस्‍त तो किसी को हाथ लगी हर बार हार
पाकिस्‍तान के चुनाव में उतरने वाला कोई है मौका परस्‍त तो किसी को हाथ लगी हर बार हार

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनिया के हर देश के चुनाव में दो तरह के उम्मीदवार होते हैं। एक तो वे जो विशुद्ध रूप से सियासत करने की मंशा रखते हैं। दूसरे वे जो किसी जमीनी बदलाव के लिए सियासत में पहुंचना चाहते हैं जिससे उनकी राह आसान हो और वे अपने मकसद को सियासत के माध्यम से पूरा कर सकें। आगामी 25 जुलाई को पाकिस्तान में होने जा रहे चुनाव में भी कुछ ऐसे ही उम्मीदवार हैं, जिनके मकसद को लेकर देश-दुनिया में चर्चाएं हैं। इनमें नामी-गिरामी पर्यावरणविद्, पहला अल्पसंख्यक सिख समुदाय का उम्मीदवार, आतंक में पूरे परिवार को खोने वाला तो 41 बार हारने वाला भी शामिल है।

रादेश सिंह टोनी

पाकिस्तानी अल्पसंख्यक सिख समुदाय से पहले निर्दलीय उम्मीदवार हैं। खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से हैं। जीत के रास्ते में बहुत मुश्किलें हैं। चुनाव क्षेत्र में कुल 1.3 लाख मतदाता हैं जिनमें अधिकांश मुस्लिम हैं। केवल 160 सिख हैं। दो प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार कट्टरपंथी धार्मिक संगठनों से हैं जिनका ताल्लुक आतंकी संगठनों से भी है। पहले ही यहां सिख समुदाय के नेता चरणजीत सिंह की हत्या की जा चुकी है। एक हफ्ते पहले रैली में बम हमले में 20 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। भरोसा दिलाते हैं कि अगर चुने गए तो सभी समुदायों के लिए एक सा काम करेंगे।

अयाज मेमन मोतीवाला

पर्यावरणविद हैं। मेनहोल में खड़े होकर अपनी बात रख रहे हैं। कराची से निर्दलीय उम्मीदवार हैं। सीवेज के बीच खड़े होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ और पर्यावरण बचाने की बात करते हैं। कहते हैं कि अगर सरकार इन मेनहोल्स को बंद नहीं कर पा रही है तो इसमें बैठकर विरोध करना मेरा अधिकार है। नल की टोंटी इनका चुनाव चिह्न है। पेयजल की देश में बड़ी किल्लत है। 2025 तक प्रति व्यक्ति उपलब्धता 500 घनमी होने वाली है। मतदाताओं से कहते हैं कि मुझे वोट अगर नहीं भी देते हैं तो भी इतना ध्यान रखिए स्वच्छ जल आज की जरूरत है।

अली वजीर

आतंक के गढ़ दक्षिण वजीरिस्तान से हैं। इनके परिवार के 10 लोग आतंक की भेंट चढ़ चुके हैं। एक दशक पहले पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ सैन्य अभियान के समय आतंकियों ने इनके घर और पेट्रोल पंप को जला दिया जबकि बगीचे को तहस- नहस कर दिया। कहते हैं कि मैं अपने लोगों के अनुरोध पर चुनाव लड़ रहा हूं। मैं उनके अधिकारों के लिए हमेशा लड़ता रहूंगा।

नवाब अंबर शाहजादा

पाकिस्तान में इनकी एक पहचान यह भी है कि ये 41 बार चुनाव लड़ चुके हैं और हर बार हारे हैं। इनके रोबीले चेहरे पर काला चश्मा और गोल टोपी खूब फबती है। गले में लाल रुमाल इन्हें राजनीति का राजा बनाती है। 32 साल पहले पार्टी बनाई। अकेले उसके सदस्य हैं। 1990 में इनकी पार्टी का पंजीकरण इस वजह से नहीं किया गया क्योंकि ये पाकिस्तानियों को चांद पर आवासीय प्लॉट दिलाने का भरोसा जता रहे थे। 2013 के चुनाव में इनको सिर्फ सात वोट मिले। धुन के पक्के हैं।

लगातार मिलती पराजय के बावजूद हार नहीं मानी। कहते हैं, राजनेता हम सबको मूर्ख बना रहे हैं। वे जनता को बहका रहे हैं। मैं जनता को जागरूक करने के लिए ऐसी वेशभूषा धारण किये रखता हूं। उनका नारा है, जरूरत भर का भ्रष्टाचार। वादा करते हैं कि यदि चुने गए तो अर्ध भ्रष्ट रहेंगे। आज के राजनेता पूरी तरह से भ्रष्ट हैं।

मीर अब्दुल करीम नौशरवानी

मौकापरस्ती इनका आदर्श है। पाकिस्तान के सबसे गरीब और अस्थिर प्रांत दक्षिणी बलूचिस्तान से हैं। 1985 से सात राजनीतिक दल बदल चुके हैं। जिस ओर हवा का रुख होता है, उसी तरफ चल देते हैं। दो बार निर्दलीय चुने गए हैं। इस बार बलूचिस्तान अवामी पार्टी से लड़ रहे हैं। उनके बारे में लोगों की धारणा है कि जैसे ही उन्हें आभास होता है कि सत्ताधारी जहाज डूब रहा है तो तुरंत दूसरे जहाज की सवारी कर लेते हैं। पहले वाहन चालक थे, आज देश चलाने की बात करते हैं। 2002 और 2008 में चुनाव नहीं लड़ सके क्योंकि उनके पास स्नातक की डिग्री नहीं थी।

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