जानिए, पाकिस्‍तान में इमरान की हुकूमत से आखिर क्‍यों बेचैन हुआ अमेरिका

यदि पाकिस्‍तान में इमरान की सरकार बनती है तो ऐसे में अमेरिका और पाकिस्‍तान के रिश्‍तों में क्‍या समीकरण बनेंगे, पढ़े ये रिपोर्ट ।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Sat, 28 Jul 2018 11:22 AM (IST) Updated:Sat, 28 Jul 2018 01:18 PM (IST)
जानिए, पाकिस्‍तान में इमरान की हुकूमत से आखिर क्‍यों बेचैन हुआ अमेरिका
जानिए, पाकिस्‍तान में इमरान की हुकूमत से आखिर क्‍यों बेचैन हुआ अमेरिका

नई दिल्‍ली [ एजेंसी ]। पाकिस्‍तान के नेशनल असेंबली चुनाव में इमरान अहमद खान नियाजी की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सबसे बड़े दल के रूप में जीत कर आई है। इमरान की पार्टी 270 में से 116 सीटें हासिल की है। लेकिन चुनावी नतीजों में वह सरकार बनाने के जरूरी बहुमत पाने में विफल रही। सरकार बनाने के लिए उसे छोटी पार्टियों या निर्दलीयों का समर्थन लेना पड़ेगा। हालांकि, यह माना जा रहा है कि पाकिस्‍तानी सेना की मदद से इमरान सरकार बनाने में कामयाब होंगे। यदि पाकिस्‍तान में इमरान की सरकार बनती है तो ऐसे में अमेरिका और पाकिस्‍तान के रिश्‍तों में क्‍या समीकरण बनेंगे, पढ़े ये रिपोर्ट ।

तो क्‍या बेहतर होंगे पाक-अमेरिका रिश्‍ते !

इमरान खान ऐसे शख्स हैं जो पाकिस्तान की समस्याओं के लिए अमेरिका को जिम्‍मेदार ठहराते रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिका सदैव पाकिस्तान को एक पायदान के तौर पर इस्तेमाल करता रहा है। उनके इस दृष्टिकोण से अमेरिकी सरकार को चिंतित होना लाजमी है। इस चुनाव में उनके भाषणों में भी उनके अमेरिका विरोधी रुख को देखा और सुना गया। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि पाकिस्‍तान में यदि उनकी पार्टी की सरकार बनती है, तो क्‍या दोनों देशों के संबंधों में पहले जैसे प्रगाढ़ता रहेगी। यह अमेरिका के लिए भी यक्ष सवाल है।

कई अमेरिकी राजनीतिक विशेषज्ञ भी इमरान को दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा अमेरिका विरोधी नेता मानते हैं। इसलिए यह कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेरिका-पाकिस्‍तान के रिश्‍ते दरक सकते हैं। उधर, अमेरिकी हुकूमत पाकिस्‍तान के सियासी समीकरण पर पैनी नजर बनाए हुए है। ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि वह पाकिस्तान की नई सरकार के साथ काम करने की राह देख रहा है।

यूरोपीयन यूनियन ने पाक चुनाव पर उठाए सवाल

पाकिस्‍तानी में मौजूद यूरोपीयन यूनियन के पर्यवेक्षक भी इस चुनाव से काफी निराश है। उनका कहना था कि चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान मीडिया पर ग़ैर-ज़रूरी पाबंदियां लगाई गई। मीडियाकर्मियों के पास चुनाव आयोग की तरफ़ से जारी कार्ड के बावजूद मतदान केंद्रों के अंदर होने वाली कार्रवाई दिखाने की अनुमति नहीं दी गई। पर्यवेक्षकों का कहना है कि ग़ैर-लोकतांत्रिक ताक़तों ने टीवी चैनल पर फ़ोन करके पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के स्वागत के लिए आने वाले लोगों की कवरेज न करने के बारे में भी कहा गया।

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के मुखिया इमरान ख़ान चुनावी मुहिम के दौरान दिए गए भाषण को सात घंटे लाइव दिखाया गया, जबकि पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ के अध्यक्ष शहबाज़ शरीफ़ को चार घंटे और बिलावल भुट्टो ज़रदारी को तीन घंटे लाइव कवरेज दी गई।

सेना कर रही इमरान खान का समर्थन!

अमेरिका के समाचार पत्रों में इसके संकेत मिल रहे हैं क‍ि सेना इमरान खान का समर्थन कर रही है। पाकिस्‍तानी सेना इसके लिए मार्ग प्रशस्‍त कर रही है। यहां तक दावा किया जा रहा है कि इमरान की सत्ता के लिए सेना उनके प्रतिद्वंद्वियों को डरा-धमका रही है, प्रेस को कुचल रही है। यह भी दावा किया जा रहा है कि इमरान सेना के सबसे बड़े समर्थक हैं और आइएसआइ के संरक्षण में इस्लामी मूवमेंट के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

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