‘माइंड डाइट’ से बुजुर्गों में अल्जाइमर और पार्किंसन का खतरा कम

मस्तिष्क की सेहत के लिहाज से तैयार किए गए खास आहार ‘माइंड डाइट’ से बुजुर्गों में अल्जाइमर और पार्किंसन के खतरे को भी कम किया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 09 Mar 2019 01:35 PM (IST) Updated:Sat, 09 Mar 2019 01:47 PM (IST)
‘माइंड डाइट’ से बुजुर्गों में अल्जाइमर और पार्किंसन का खतरा कम
‘माइंड डाइट’ से बुजुर्गों में अल्जाइमर और पार्किंसन का खतरा कम

कैनबरा मस्तिष्क की सेहत के लिहाज से तैयार किए गए खास आहार ‘माइंड डाइट’ से बुजुर्गों में अल्जाइमर और पार्किंसन के खतरे को भी कम किया जा सकता है। ‘माइंड डाइट’ में हरी पत्तेदार सब्जियों, साबुत अनाज, जैतून का तेल और मीट समेत 15 प्रकार के खाद्य पदार्थों को शामिल किया गया है। अल्जाइमर में याददाश्त कमजोर हो जाती है, जबकि पार्किंसन तंत्रिका तंत्र संबंधी वह स्थिति है, जिसमें मरीज के अंगों में कंपन होने लगता है और उसे संतुलन बनाने में मुश्किल होती है।

ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, यह माना जाता है कि मेडिटेरेनियन डाइट हृदय रोग से बचाव में भी कारगर होती है। इसी के आधार पर मस्तिष्क के लिए माइंड डाइट तैयार की गई है। इस आहार को लेकर औसतन 60 साल की उम्र वाले करीब 1,220 लोगों पर 12 साल तक अध्ययन किया गया। इस पैटर्न को अपनाने वालों में डिमेंशिया के खतरे में 19 फीसद कमी मिली।

क्या है अल्जाइमर
अल्जाइमर भूलने की बीमारी है। इसके लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना आदि शामिल हैं। रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सिर में चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है। 60 वर्ष की उम्र के आसपास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थाई इलाज नहीं है।

कारणों को जानें
उम्र बढ़ने के साथ तमाम लोगों में मस्तिष्क की कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) सिकुड़ने लगती हैं। नतीजतन न्यूरॉन्स के अंदर कुछ केमिकल्स कम हो जाते हैं और कुछ केमिकल्स ज्यादा हो जाते हैं। इस स्थिति को मेडिकल भाषा में अल्जाइमर्स डिजीज कहते हैं। अन्य कारणों में 30 से 40 फीसदी मामले आनुवांशिक होते हैं। इसके अलावा हेड इंजरी, वायरल इंफेक्शन और स्ट्रोक में भी अल्जाइमर सरीखे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं, लेकिन ऐसे लक्षणों को अल्जाइमर्स डिजीज नहीं कहा जा सकता।

ब्रेन केमिकल्स में कमी
ब्रेन सेल्स जिस केमिकल का निर्माण करती हैं, उसे एसीटिलकोलीन कहते हैं। जैसे-जैसे ब्रेन सेल्स सिकुड़ती जाती है, वैसे-वैसे एसीटिलकोलीन के निर्माण की प्रक्रिया कम होती जाती है। दवाओं के जरिये एसीटिलकोलीन और अन्य केमिकल्स के कम होने की प्रक्रिया को बढ़ाया जाता है। बढ़ती उम्र के साथ ब्रेन केमिकल्स का कम होते जाना एक स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया है लेकिन अल्जाइमर्स डिजीज में यह न्यूरो केमिकल कहीं ज्यादा तेजी से कम होता है। इस रोग को हम क्योर (यहां आशय रोग को दूर करने से है) नहीं कर सकते, लेकिन दवा देने से रोगी को राहत जरूर मिलती है। जांच: पॉजीट्रॉन इमीशन टोमोग्राफी (पी. ई.टी.) जांच से इस रोग का पता चलता है। एमआरआई जांच भी की जाती है।

बात इलाज की
मस्तिष्क कोशिकाओं में केमिकल्स की मात्रा को संतुलित करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है। दवाओं के सेवन से रोगियों की याददाश्त और उनकी सूझबूझ में सुधार होता है। दवाएं जितनी जल्दी शुरू की जाएं उतना ही फायदेमंद होता है। दवाओं के साथ-साथ रोगियों और उनके परिजनों को काउंसलिंग की भी आवश्यकता होती है। काउंसलिंग के तहत रोगी के लक्षणों की सही पहचान कर उसके परिजनों को उनसे निपटने की सटीक व्यावहारिक विधियां बतायी जाती हैं।

पार्किंसन के लिए आयुर्वेदिक उपचार
पार्किसन वह स्थिति है, जिसमें मरीज के अंगों में कंपन होने लगता है और उसे संतुलन बनाने में मुश्किल होती है। आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसन के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्‍वस्‍थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्‍य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्‍याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्‍पन्‍न होती है।

सबसे अच्‍छा हर्ब हल्दी
हल्‍दी एक ऐसा हर्ब है, जिसमें मौजूद स्‍वास्‍थ्‍य गुणों के कारण हम इसे कभी अनदेखा नहीं कर पाते। मिशिगन स्‍टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बसीर अहमद भी इसके बहुत बड़े प्रशंसक है। उन्‍होंने एक ऐसी शोधकर्ताओं की टीम का नेत्तृव भी किया, जिन्‍होंने पाया कि हल्‍दी में मौजूद करक्यूमिन नामक तत्‍व पार्किंसंस रोग को दूर करने में मदद करता है। ऐसा वह इस रोग के लिए जिम्‍मेदार प्रोटीन को तोड़कर और इस प्रोटीन को एकत्र होने से रोकने के द्वारा करता है।

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