गंभीर संकट में है अरबों लोगों का जीवन, भविष्य में पीने का पानी भी तेल की कीमतों से होगा ज्यादा महंगा

पृथ्वी का तीसरा ध्रुव कहे जाने वाले हिंदूकुश-हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों पर दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशिया के अरबों लोगों का जीवन निर्भर करता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sat, 11 Jan 2020 09:03 PM (IST) Updated:Sun, 12 Jan 2020 12:21 AM (IST)
गंभीर संकट में है अरबों लोगों का जीवन, भविष्य में पीने का पानी भी तेल की कीमतों से होगा ज्यादा महंगा
गंभीर संकट में है अरबों लोगों का जीवन, भविष्य में पीने का पानी भी तेल की कीमतों से होगा ज्यादा महंगा

हांगकांग, एएफपी। हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला के ग्लेशियर इस सदी के अंत तक पिघल कर एक तिहाई हो जाएंगे। इससे अफगानिस्तान से म्यांमार तक फैले 800 किलोमीटर लंबे हिंदूकुश-हिमालयी क्षेत्र (HKH) से जुड़े देश सर्वाधिक प्रभावित होंगे। ग्लोबल वॉर्मिग व जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को देखते हुए इसकी चेतावनी भी वैज्ञानिकों ने जारी कर दी है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड मांउनटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के महानिदेशक डेविड मोल्डेन ने कहा है कि अगर जलवायु परिवर्तन को रोके लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में मानवजाति पर संकट मंडराना तय है। इससे निपटने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में संभव है कि लोगों की पीने के पानी तक पहुंच तेल की कीमतों से भी अधिक हो जाए।

पृथ्वी का 'तीसरा ध्रुव' कहे जाने वाले हिंदूकुश-हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों पर दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशिया के अरबों लोगों का जीवन निर्भर करता है। ब्रह्मपुत्र, सिंधु, यांगत्जे और मेकोंग जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम इसी क्षेत्र से होता है। आने वाले समय में जब इन नदियों में पानी नहीं होगा तो भारत, चीन, पाकिस्तान समेत अन्य देश के लोगों का क्या हाल होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है।

तेल की कीमतों से ज्यादा महंगा होगा पीने का पानी

अत्यधिक गर्म हवाएं, अनियमित मानसून और प्रदूषण के कारण पानी के उद्गमों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है। यदि इससे निपटने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में संभव है कि लोगों की पीने के पानी तक पहुंच तेल की कीमतों से भी अधिक हो जाए। यह इतना मूल्यवान बन गया है कि लोग इसके लिए लड़ने के लिए भी तैयार रहते हैं।

आइसीआइएमओडी के महानिदेशक ने कहा, ' 2015 में हुआ पेरिस समझौता ग्लोबल वार्मिग के सबसे बुरे प्रभावों को रोकने के एक प्रभावी माध्यम हो सकता है। बशर्ते सभी देश मिलकर इस दिशा में काम करें।'

गहरा रहा है जल संकट

गरीबी और मानवाधिकार क्षेत्र में काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र (UN) के विशेष दूत फिलिप एल्सटन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण साल-दर-साल पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। भारत समेत पूरे एशिया में दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी रहती है, लेकिन पीने योग्य पानी की कमी भयंकर रूप लेती जा रही है। एल्सटन ने कहा कि इससे सबसे ज्यादा गरीब लोग प्रभावित होंगे।

बढ़ गई है प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति

आइसीआइएमओडी के फिलिप वेस्टर ने कहा, ग्लेशियरों के पिघलने से ही बाढ़, सूखा, भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां एशिया के कई देशों को बीते वर्षो में भयावह आपदाओं का सामना कर पड़ा है। वर्ष 2019 में दक्षिण भारत का चेन्नई शहर भयंकर सूखे की चपेट में था। स्थानीय लोगों को पीने के पानी के लिए भी सरकारी टैंकों पर निर्भर होना पड़ा था। कई जगह पानी न मिलने के कारण डिप्रेशन में आने से लड़ाई झगड़े पर भी उतारू हो गए थे। वहीं दूसरी ओर उत्तर भारत में कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ गए थे। जिसके कारण लोगों को भोजन के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। इससे निपटे के लिए सेना के जवानों को आगे आने पड़ा था। उन्होंने कहा यहां एक बात गौर करने वाली है कि प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति पिछले वर्षो में कई गुना बढ़ गई है।

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