चीन में कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के सदस्‍य को भी नहीं है किसी धर्म को मानने की आजादी

चीन में किसी को भी धर्म के नाम पर आजादी नहीं दी गई है। फिर वह चाहे इसाई हो या मुस्लिम हो या फिर कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के कार्यकर्ता।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 16 Sep 2018 04:11 PM (IST) Updated:Mon, 17 Sep 2018 10:59 AM (IST)
चीन में कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के सदस्‍य को भी नहीं है किसी धर्म को मानने की आजादी
चीन में कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के सदस्‍य को भी नहीं है किसी धर्म को मानने की आजादी

नई दिल्‍ली (जागरण स्‍पेशल)। पिछले कुछ समय से चीन धार्मिक प्रतिष्‍ठानों को निशाना बनाया जा रहा है। इसमें पहले उइगर मुस्लिमों की मस्जिदें शामिल थीं और अब ईसाईयों के चर्च भी इस मुहिम का हिस्‍सा बन गए हैं।लेकिन इन सभी के बीच यह भी सच है कि चीन में किसी को भी धर्म के नाम पर आजादी नहीं दी गई है। फिर वह चाहे इसाई हो या मुस्लिम हो या फिर कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के कार्यकर्ता। यह सुनकर भले ही कोई हैराना हो लेकिन यह सच है। दरअसल, चीन की कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता चाहे वह छोटे स्‍तर का हो या फिर बड़े स्‍तर पर किसी भी धर्म को नहीं चुन सकता है। इसका पालन न करने वालों के लिए वहां पर सजा तक का प्रावधान है। चीनी मीडिया के मुताबिक यह पार्टी के नियमों लिखित है। 

एक नजर इधर भी 
शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुस्लिमों के बाद अब हेनान में रहने वाले ईसाइयों से चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने आंखें तरेर ली हैं। उइगरों की मस्जिदों की तरह ही कैथोलिक ईसाइयों के चर्च यहां पर तोड़े जा रहे हैं। चीन में करीब एक करोड़ के आस-पास कैथोलिक ईसाइयों की आबादी है। हेनान प्रांत में इनकी काफी संख्‍या है। बीते कुछ समय से सबसे अधिक ईसाई आबादी वाले हेनान प्रांत में गिरजाघरों को अवैध बताकर तोड़ा जा रहा है। यहां पर कैथोलिक चर्च में बच्चों को सामूहिक प्रार्थना में भाग लेने से मना कर दिया गया है। पादरियों को चर्च के सदस्यों, अपने वित्तीय और विदेशी साझेदारों की जानकारी प्रशासन को सौंपने पर मजबूर किया जा रहा है।

चीन में कहां आते हैं ईसाई
आपको यहां पर बता दें कि चीन में संख्‍या के लिहाज से ईसाइ बौद्ध के बाद दूसरे नंबर पर आते हैं। इसके बाद मुस्लिम आते हैं। चीन में ईसाई धर्म 7वीं सदी में तांग राजवंश के दौरान आया था। 13वीं-19वीं सदी के बीच चीन में इसाई धर्म का काफी प्रचार-प्रसार हुआ और इसने यहां पर अपनी जड़ें मजबूत की। वहीं इस्‍लाम की बात करें तो चीन में इस धर्म का आगमन 651 ईस्वी में हुआ था। मुसलमान चीन में व्यापार करने के लिए आए थे और सोंग राजवंश के दौरान उनका आयात-निर्यात उद्योग पर प्रभुत्व था। जहां तक चीन में धार्मिक आजादी की बात है तो वहां पर पहले भी चर्च और मस्जिदों पर काफी कड़े नियम लागू थे, लेकिन इसी वर्ष नए धार्मिक अधिनियम के सामने आने के बाद तो यह और सख्‍त हो गए हैं। 

सरकार कर रही धार्मिक आजादी छीनने का काम 
चीन की वर्तमान सरकार जिस तरह से धार्मिक आजादी को छीनने का काम कर रही है वह इससे पहले यहां पर इतना व्‍यापक स्‍तर पर नहीं था। आपको यहां पर बता दें कि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी किसी भी धर्म को नहीं मानती है। यहां तक की चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के रिटायर सदस्यों को भी किसी भी धर्म का पालन करने पर पाबंदी लगा रखी है। कम्युनिस्ट पार्टी के प्रकाशित हुए नियमों के मुताबिक पार्टी के रिटायर कार्यकर्ता किसी धर्म का पालन नहीं कर सकते हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 10 करोड़ कार्यकर्ता हैं। इतना ही नहीं नियमों का उल्‍लंघन करने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं सजा देने का भी प्रावधान है।

काफी पुराना है विवाद
उल्लेखनीय है कि बीजिंग और वेटिकन के बीच हो रही वार्ता के बीच ही चीन सरकार की कार्रवाई तीव्र हो गई है। बिशप की नियुक्ति को लेकर दोनों के बीच दशकों से विवाद चल रहा है। 1951 में भी इसी तरह का विवाद काफी तूल पकड़ गया था। दरअसल, चीन की सरकार बिशपों की नियुक्ति के वेटिकन के अधिकार को मान्यता नहीं देती है। यही विवाद की सबसे बड़ी वजह भी है। हालांकि यह भी सच है कि 2000-2006 तक के बीच में चीन ने जिस बिशप की नियुक्ति की उसको लेकर वेटिकन की तरफ से नाराजगी तक भी जाहिर नहीं की गई थी। वहीं चीन का चर्च दो धड़ों में बंटा हुआ है जिनमें से एक सरकार के नियंत्रण में काम करता है तो दूसरा वेटिकन के निर्देश पर चलता है। वेटिकन के निर्देश पर चलने वाले चर्च के साथ अक्‍सर तनाव व्‍याप्‍त रहता है। 

कार्रवाई के पीछे की वजह
यही वजह है कि चीन के हेनान और दूसरे प्रांतों में भी स्थित चर्चों पर पिछले दिनों हमले किए गए। हेनान में कई जगह चर्च टूटने से वहां के रोमन कैथोलिक ईसाई समुदाय के पास प्रार्थना करने का कोई स्थान नहीं बचा है। पुयांग शहर में भी एक चर्च को अवैध करार देकर उसे तोड़ दिया गया। अब वहां ईसा मसीह का फटा हुआ पोस्टर और कुछ मेज ही बची हैं। वहां रहने वाले एक किसान ने बताया कि गिरजाघरों का अस्तित्व खतरे में है। चर्च द्वारा चलाए जा रहे स्कूल बंद कर दिए गए हैं। गिरजाघर के ऊपर लगे क्रॉस के निशान को हटाकर धार्मिक वस्तुओं को जब्त कर लिया गया है। इस साल बनाए गए नए धार्मिक अधिनियम के तहत समुदाय पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जा रही हैं।

उइगर मुस्लिमों पर जुल्‍म 
सिर्फ ईसाइयों को लेकर ही नहीं बल्कि उइगर मुस्लिमो को लेकर भी चीन पिछले काफी समय से सुर्खियों में है। चीन हमेशा से ही इन्‍हें अपने लिए खतरा मानता आया है और हमेशा से ही ये लोग चीन की सरकार और सेना के निशाने पर रहते आए हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र की रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि चीन की तरफ से इन पर निगरानी रखने के नाम पर लाखों उइगर मुस्लिमों को शिविरों में कैद कर दिया गया है। यह रिपोर्ट बताती है कि चीन 20 लाख अन्य उइगर मुसलमानों को विचारधारा बदलने का पाठ भी पढ़ा रहा है। यूएन ने इस पर गहरी चिंता व्‍यक्‍त की है। चीन में इस साल अप्रैल में जारी श्वेत पत्र के अनुसार, उइगर और हुई समुदाय के साथ देश में करीब दो करोड़ मुस्लिम आबादी है। उइगरों की तुलना में हुई मुस्लिमों को शांतिपूर्ण माना जाता है। 

शिनजियांग प्रांत में बहुसंख्‍यक हैं उइगर मुस्लिम 
दरअसल, उइगर मुस्लिम चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में बहुसंख्यक हैं और चीन ने इस प्रांत को स्वायत्त घोषित कर रखा है। इस प्रांत की सीमा मंगोलिया और रूस सहित आठ देशों के साथ मिलती है। तुर्क मूल के उइगर मुसलमानों की इस क्षेत्र में आबादी एक करोड़ से ऊपर है। इस क्षेत्र में उनकी आबादी बहुसंख्यक है। यहां के इस बहुसंख्‍यक समुदाय को कम करने के लिन चीन की सरकार ने यहां पर हॉन समुदाय के लोगों को बसाना शुरू किया था। चीन की सरकार ने यहां के ऊंचे पदों पर भी हॉन समुदाय के लोगों को बिठा रखा है। चीन द्वारा हमेशा से ये कहा जाता रहा है कि इस प्रांत में रहने वाले उइगर मुस्लिम चीन से अलग होने की मांग के तहत 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' चला रहे हैं। अमेरिका ने 'ईस्ट तुर्किस्‍ताना इस्लामिक मूवमेंट' को उइगरों का एक अलगाववादी समूह कहा है। 

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