COVID-19: सब है जीन का गेम! जानें बड़ों की तुलना में बच्चों पर क्यों कम है प्रकोप

जिस जीन के जरिए वायरस मानव शरीर में प्रवेश करता है वह जीन बच्चों में काफी कम होता है इसलिए वे इस वायरस से बड़ों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं।

By Monika MinalEdited By: Publish:Fri, 22 May 2020 02:45 PM (IST) Updated:Fri, 22 May 2020 02:45 PM (IST)
COVID-19: सब है जीन का गेम!  जानें बड़ों की तुलना में बच्चों पर क्यों कम है प्रकोप
COVID-19: सब है जीन का गेम! जानें बड़ों की तुलना में बच्चों पर क्यों कम है प्रकोप

न्यूयार्क, प्रेट्र। अब तक बुजुर्गों और बच्चों पर नॉवेल कोरोना वायरस का अधिक खतरा बताया जा रहा था और  इनकी तुलना में व्यस्कों को अधिक सुरक्षित माना जा रहा था। डॉक्टरों व अन्य रिसर्च में भी इम्युनिटी की भूमिका अहम बताई गई है। लेकिन एक नए रिसर्च से यह स्पष्ट हुआ है कि हमारे नाक में एक विशेष जीन होती है जो इस घातक वायरस को अपनी ओर आकर्षित करने में मुख्य भूमिका अदा करती है। हालांकि यह जीन मानव शरीर में उम्र के साथ बढ़ती है इसलिए बच्चों पर कोविड-19 का संकट कम है।  

यह जीन है जिम्मेवार 

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि नाक में मौजूद ACE2 जीन पहला संवेदनशील स्थान है जहां वायरस सबसे पहले हमला करता है और मानव शरीर के संपर्क में आता है।  SARS-CoV-2 वायरस ACE2 के जरिए मानव शरीर में प्रवेश करता है। अमेरिका में माउंट सिनाई के आइकाह्न  स्कूल ऑफ मेडिसीन के शोधकर्ताओं के अनुसार,  नाक में मौजूद  ACE2 जीन  को बायोमार्कर के तौर पर इस्तेमाल कर कोविड-19 से जुड़े अध्ययन किए जा सकते हैं। 

महिलाओं की तुलना में पुरुषों में होता है अधिक 

वहीं महिलाओं की तुलना में यह जीन ACE-2 (एंजियोटिन्सिन कन्वर्टिंग एंजाइम-2) प्रोटीन पुरुषों में अधिक पाया जाता है। यह प्रोटीन किडनी, फेफड़े, हृदय आदि अंगों को बनाने वाले उत्तकों के ग्लाइकोप्रोटीन से जुड़े होते हैं। ACE-2 रिसेप्टर्स एक तरह का एंजाइम है, जो मानव शरीर के हृदय, फेफड़े, धमनियों, गुर्दे और आंत में कोशिका की सतह से जुड़ा होता है। यह रिसेप्टर गंभीर सांस संबंधी सिंड्रोम का कारण बनने वाले कोरोना वायरस के लिए कार्यात्मक और प्रभावी होता है। यही कोरोना वायरस की घुसपैठ का सबसे बड़ा कारण बनता है। 

जर्नल JAMA में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, न्यूयार्क में माउंट सिनाई हेल्थ सिस्टम (Mount Sinai Health System) में  4 से 60 साल के 305 मरीजों पर यह रिसर्च किया गया।  जिसमें पता चला कि नाक के एपीथिलियम में मौजूद ACE2 जीन बच्चों में कम होते हैं और उम्र  के साथ बढ़ते हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया कि बच्चों को इस बीमारी का खतरा कम है।  

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