Climate Change: हाथ में चांद, पांव तले जलवायु परिवर्तन; भीषण त्रासदी के संकेत

जलवायु परिवर्तन जैसी कई समस्याओं के सिर उठाने के कारण आज धरती का अस्तित्व ही खतरे में है। लेकिन न तो हम इसे असल समस्या मान रहे हैं न ही इसे निपटाने की कोशिश कर रहे हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Wed, 24 Jul 2019 11:01 PM (IST) Updated:Wed, 24 Jul 2019 11:02 PM (IST)
Climate Change: हाथ में चांद, पांव तले जलवायु परिवर्तन; भीषण त्रासदी  के संकेत
Climate Change: हाथ में चांद, पांव तले जलवायु परिवर्तन; भीषण त्रासदी के संकेत

वाशिंगटन,न्यूयॉर्क टाइम्स।  50 साल पहले यानी 16 जुलाई 1969 को किसी धरती वासी ने पहली बार चांद पर कदम रखा था। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की इस सफलता के बाद कई देश चांद पर पहुंचने की होड़ में लग गए। कई के प्रयास असफल हुए लेकिन रूस और चीन भी चांद पर अपना यान उतारने में सफल हुआ। अब भारत भी चंद्रयान-2 के जरिये चांद की जमीन पर उतरने की दिशा में आगे बढ़ गया है। 

इन सब से साबित होता है कि इंसान यदि ठान ले और अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल करे तो वह कोई भी मुश्किल लक्ष्य हासिल कर सकता है। लेकिन अंतरिक्ष में जाने, दूसरे ग्रहों पर जीवन ढूंढने और नई तकनीक विकसित करने की होड़ में हम शायद अपनी धरती को ही भूल गए हैं। हमने चांद को तो अपनी मुट्ठी में कर लिया है लेकिन पृथ्वी की समस्याएं कहीं दब गई हैं। जलवायु परिवर्तन जैसी कई समस्याओं के सिर उठाने के कारण आज धरती का अस्तित्व ही खतरे में है। लेकिन न तो हम इसे असल समस्या मान रहे हैं न ही इसे निपटाने की कोशिश कर रहे हैं।

1961 में नासा ने चंद्रमा पर मानव भेजे जाने के मिशन की तैयारी शुरू कर दी थी। इस मिशन को लेकर तात्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा था, 'हमने चांद को चुना है और इसलिए चुना है क्योंकि वहां पहुंचना मुश्किल है। इस लक्ष्य को पाकर हम अपनी क्षमता और ऊर्जा का पता लगा सकेंगे।' केनेडी ने जब चंद्रमा पर पहुंचने के मिशन को अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण बताया तो उन्हें यह साबित करने की जरूरत नहीं थी कि 'चंद्रमा का अस्तित्व है या नहीं'। हालांकि जलवायु परिवर्तन के मामले में इसका उल्टा है।

जलवायु परिवर्तन को लेकर नहीं है गंभीरता
वर्तमान समय में दिन प्रतिदिन पृथ्वी का तापमान और ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है। इन सबके विपरीत प्रभाव भी हमारी आंखों के सामने हैं। बाढ़, सूखा, तूफान, आगजनी सुनामी जैसी आपदा विकराल रूप ले रही है। इसके बावजूद कई बार जलवायु परिवर्तन की समस्या को फर्जी बता दिया जाता है।

कई देश इसके निपटारे के लिए गंभीर कदम उठाने को तैयार ही नहीं हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भी यही मत है इसलिए उन्होंने अमेरिका को 2015 के पेरिस समझौते से अलग कर दिया है। इस समझौते के तहत 195 देशों ने पृथ्वी के तापमान में हो रही बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का संकल्प लिया था।

क्या किसी भीषण त्रासदी का है इंतजार?
जलवायु परिवर्तन को गंभीर समस्या मानने के लिए क्या हम किसी भीषण त्रासदी का इंतजार कर रहे हैं? हिमनदों के पिघलने से समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी होने और उससे कई द्वीप देशों के जलमग्न हो जाने की आशंका पहले ही जताई जा चुकी है। लेकिन हम शायद तब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे जब तक कि कोई देश या शहर सच में पानी में डूब नहीं जाता है।

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