कोरोना से लड़ने में मददगार है प्रतिरक्षा तंत्र की धीमी गति, तेज सक्र‍ियता से बढ़ता है जोखिम

वैज्ञानिकों ने एक अध्‍ययन में पाया है कि प्रतिरक्षा तंत्र की धीमी गति कोरोना से लड़ने में मददगार होती है। प्रतिरक्षा तंत्र की तेज सक्रीयता जोखिम को बढ़ा देती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Mon, 04 May 2020 08:12 PM (IST) Updated:Mon, 04 May 2020 08:37 PM (IST)
कोरोना से लड़ने में मददगार है प्रतिरक्षा तंत्र की धीमी गति, तेज सक्र‍ियता से बढ़ता है जोखिम
कोरोना से लड़ने में मददगार है प्रतिरक्षा तंत्र की धीमी गति, तेज सक्र‍ियता से बढ़ता है जोखिम

लॉस एंजिलिस, पीटीआइ। शरीर पर किसी भी बाहरी वायरस या बैक्टीरिया का हमला होते ही हमारा प्रतिरक्षा तंत्र उसके खिलाफ काम शुरू कर देता है। हमारा प्रतिरक्षा तंत्र दो चरणों में काम करता है। पहले चरण को प्राकृतिक प्रतिक्रिया (इननेट इम्यून रेस्पांस) कहा जाता है। इसमें शरीर में कोई बाहरी वायरस आते ही प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है और उस वायरस और उसके कारण क्षतिग्रस्त हुई कोशिकाओं को खत्म कर देता है। वहीं दूसरे चरण को अडेप्टिव इम्यून रेस्पांस कहा जाता है। पहले चरण के बाद की परिस्थितियों के अनुकूल यह चरण काम करता है। पहले चरण में बच गए वायरस दूसरे चरण में मर जाते हैं।

विज्ञान पत्रिका मेडिकल वायरोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, सामान्य फ्लू दो से तीन दिन में ही आसपास की ज्यादातर कोशिकाओं को निशाना बना चुका होता है। ऐसे में वायरस के पास लक्ष्य बनाने के लिए कोशिकाएं कम पड़ जाती हैं और प्रतिरक्षा तंत्र का पहला चरण ही ज्यादातर वायरस को खत्म कर देता है। अमेरिका की यूनिवíसटी ऑफ सदर्न कैलिफोíनया के वैज्ञानिकों ने बताया कि कोविड-19 का वायरस बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है। ऐसे में पहले चरण का काम पूरा होने से पहले ही अडेप्टिव इम्यून रेस्पांस काम करने लगता है, जिससे पहले चरण के काम में बाधा पहुंचती है।

ऐसा होने से वायरस धीरे-धीरे तेजी से बढ़ने लगता है और प्रतिरक्षा तंत्र अतिसक्रिय हो जाता है, जिसे साइटोकिन स्टॉर्म कहा जाता है। ऐसी स्थिति में प्रतिरक्षा तंत्र शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को भी मारने लगता है। यही कारण है कि कोविड-19 के कई मरीजों की हालत ठीक होते-होते फिर गंभीर हो जाती है। अगर किसी दवा के जरिये अडेप्टिव रेस्पांस को धीमा किया जा सके, तो शरीर को साइटोकिन स्टॉर्म से बचाना और वायरस को पूरी तरह खत्म करना संभव हो सकता है। इससे बीमारी के लक्षण भी ज्यादा गंभीर नहीं होने पाएंगे। 

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