अमेरिकी विवि की नीति में जातीय आधार शामिल करने का विरोध

अमेरिका में दलितों के अधिकारों के लिए कार्य करने वाली संस्था इक्विटी लैब्स के अनुसार दलित लोग भारत की सामाजिक व्यवस्था में सबसे नीचे माने जाते हैं। हजारों सालों से वे भेदभाव और हिंसा के शिकार हो रहे हैं।

By Monika MinalEdited By: Publish:Tue, 25 Jan 2022 07:20 AM (IST) Updated:Tue, 25 Jan 2022 07:20 AM (IST)
अमेरिकी विवि की नीति में जातीय आधार शामिल करने का विरोध
भारतीय व दक्षिण एशियाई मूल के 80 शिक्षक विरोध में सामने आए

वाशिंगटन, प्रेट्र।  अमेरिका में कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी (सीएसयू) के 80 से ज्यादा शिक्षकों ने भेदभाव विरोधी नीति में जाति को शामिल किए जाने पर विरोध जताया है। नीति में यह बदलाव करने की हाल ही में घोषणा हुई है। इस बदलाव के विरोधियों ने इसे नीति में गलत विस्तार करार दिया है। कहा है कि नीति में इस बदलाव से भारतीय और अन्य दक्षिण एशियाई लोग असंवैधानिक रूप से भेदभाव के शिकार होंगे।

यूनिवर्सिटी की घोषित भेदभाव विरोधी नीति के अनुसार इससे जातीय कारणों से सताए गए छात्र खुद से संबंधित मामलों की शिकायत कर पाएंगे। बहुत सारे छात्रों का दावा है कि बीते समय में उनका जातीय आधार पर उत्पीड़न हुआ है। अमेरिका में दलितों के अधिकारों के लिए कार्य करने वाली संस्था इक्विटी लैब्स के अनुसार दलित लोग भारत की सामाजिक व्यवस्था में सबसे नीचे माने जाते हैं। हजारों सालों से वे भेदभाव और हिंसा के शिकार हो रहे हैं। भारत में जाति व्यवस्था को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है लेकिन सामाजिक चलन में यह बरकरार है। अमेरिका में रहने वाली दक्षिण एशियाई लोगों की आबादी में भी जातिवादी सोच बरकरार है।

सीएसयू की नीति में शामिल किए गए इस नए प्रविधान के विरोध में शिक्षकों ने विश्वविद्यालय के ट्रस्ट को पत्र लिखा है। उसमें कहा गया है कि नई नीति से गलत ढंग से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जाएगा। उसके साथ बेचैन करने वाला व्यवहार होगा। इसके दायरे में खासतौर से भारतीय और दक्षिण एशियाई मूल के शिक्षक आएंगे। उन्हें इंगित करते हुए झूठी शिकायतें की जाएंगी। सीएसयू में अकाउंटेंसी के प्रोफेसर प्रवीण सिन्हा के अनुसार विश्वविद्यालय की नीति में पहले से ही किसी भी तरह के भेदभाव से बचाव के लिए प्रविधान हैं। लेकिन जाति संबंधी प्रविधान लागू किए जाने से हजारों शिक्षकों और छात्रों के लिए आशंकाएं पैदा हो जाएंगी। यह जातिगत भेद विश्वविद्यालय परिसर में कहीं नहीं है लेकिन इसे नीति में विस्तार के जरिये पैदा करने की कोशिश की जा रही है। मीडिया के लिए जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि जल्द ही इस नए प्रविधान के विरोध सीएसयू के 600 से ज्यादा भारतीय मूल और दक्षिण एशियाई मूल के शिक्षकों को एकजुट किया जाएगा और ट्रस्ट के समक्ष अपनी बात रखी जाएगी।

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