ऑक्सीजन वाले ग्रहों की पहचान करेगा नासा का टेलीस्कोप, वायुमंडल में जीवन का पता लगाएगी

शोधकर्ताओं ने हाल में पता लगाया है कि कैसे नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (दूरबीन) की मदद से तेजी से आसपास के ग्रहों की पहचान की जा सकती है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Sat, 11 Jan 2020 07:55 PM (IST) Updated:Sat, 11 Jan 2020 08:29 PM (IST)
ऑक्सीजन वाले ग्रहों की पहचान करेगा नासा का टेलीस्कोप, वायुमंडल में जीवन का पता लगाएगी
ऑक्सीजन वाले ग्रहों की पहचान करेगा नासा का टेलीस्कोप, वायुमंडल में जीवन का पता लगाएगी

 वाशिंगटन, एएनआइ। शोधकर्ताओं ने हाल में पता लगाया है कि कैसे नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (दूरबीन) की मदद से तेजी से आसपास के ग्रहों की पहचान की जा सकती है। इससे शोधकर्ताओं को इन ग्रहों पर जीवन की खोज करने में भी मदद मिल सकती है। साथ ही, यह पता लगाया जा सकता है कि कैसे ये ग्रह महासागरों के वाष्पीकृत होने की वजह से रहने योग्य नहीं रह पाए।

 वायुमंडल के अंदरूनी हिस्से को देखने के लिए होगा टेलीस्कोप का प्रयोग

वैज्ञानिक को अभी तक सौरमंडल से बाहर के तारों की परिक्रमा करने वाले ग्रहों पर जीवन के संकेत खोजने में सफलता हाथ नहीं लगी है। इसलिए उन्होंने वेब की तरह एक खास तरह के टेलीस्कोप का प्रयोग एक्सोप्लेनेट के वायुमंडल के अंदरूनी हिस्से को देखने के लिए किया। सौरमंडल से बाहर तारे की कक्षा की परिक्रमा करने वाला ग्रह एक्सोप्लेनेट कहलाता है। एक्सोप्लेनेट के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मौजूदगी जीवन के होने का संकेत है।

वैज्ञानिकों को शोध से मिली जानकारी

हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि ऑक्सीजन के अणुओं की टक्कर से जीवन का एक मजबूत संकेत मिलता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, वेब टेलीस्कोप उस संकेत का एक्सोप्लेनेट के वायुमंडल में पता लग सकता है। वरिष्ठ शोधकर्ता थॉमस फॉचेज ने बताया, 'हमारे अध्ययन से पहले यह माना जाता था कि वेब टेलीस्कोप की मदद से पृथ्वी पर उसी स्तर पर ऑक्सीजन का पता नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन, हमने आसपास के ग्रहों की प्रणाली में उसका पता लगाने का ठोस तरीका निकाल लिया है।' उन्होंने कहा, 'पृथ्वी के वायुमंडल के अध्ययन के बाद 1980 के दशक के शुरुआत से ही इस ऑक्सीजन के होने के संकेत हैं। लेकिन, एक्सोप्लेनट के लिए इसका अध्ययन कभी नहीं किया गया।'

इस तरह किया गया अध्ययन

यह अध्ययन नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों ने इस ऑक्सीजन की नकल बनाने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल का प्रयोग किया। इसके लिए उन्होंने एम-ड्वार्फ (ब्रह्मांड में सबसे अधिक इसी तरह के तारे मौजूद हैं) के पास मौजूद एक्सोप्लेनेट के वायुमंडल में मॉडलिंग की। शोधकर्ताओं की टीम ने वायुमंडलीय रसायन विज्ञान पर एम-ड्वार्फ तारों से उत्पन्न होने वाले विकिरण के प्रभाव वाला नमूना बनाया और आगे यह प्रयोग किया कि जब ग्रह उसके सामने से गुजरता है, तो किस तरह तारे के प्रकाश से उसके घटक का रंग बदल जाता है।

जब तारों का प्रकाश एक्सोप्लेनेट के वायुमंडल से गुजरता है, तो ऑक्सीजन आमतौर पर प्रकाश के कुछ निश्चित तरंगदै‌र्ध्य को अवशोषित कर लेता है। इस मामले में ऑक्सीजन ने 6.4 माइक्रोमीटर के तरंगदै‌र्ध्य वाले प्रकाश को अवशोषित कर लिया। जब ऑक्सीजन के अणु एक-दूसरे से या एक्सोप्लेनेट के वायुमंडल में टकराते हैं, तो इस टक्कर की वजह से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा ऑक्सीजन के अणु को एक विशेष अवस्था में पहुंचा देती है। यह अवस्था अस्थायी तौर पर उसे इंफ्रारेड प्रकाश को अवशोषित करने में सक्षम बनाती है। इंफ्रारेड प्रकाश को मानवीय आंखों से नहीं देखा जा सकता है, लेकिन टेलीस्कोप से जुड़े उपकरण की मदद से इसे देखा जा सकता है। इस अध्ययन के सह-शोधकर्ता जेरोनिमो विलानुएवा ने बताया, 'इसी तरह के ऑक्सीजन के सिग्नल 1.06 और 1.27 माइक्रोमीटर पर मौजूद हैं। इनके बारे में पूर्व के अध्ययनों में जिक्र किया जा चुका है, लेकिन ये 6.4 माइक्रोमीटर सिग्नल की तुलना में बादलों की उपस्थिति के कारण कम मजबूत हैं।'

मजबूत होता है ऑक्सीजन का सिग्नल

यह दिलचस्प है कि एक्सोप्लेनेट पर अभी जीवन नहीं है, लेकिन ऑक्सीजन की मौजूदगी से ऐसा लग सकता है कि उस पर जीवन हो सकता है। ऐसा इसलिए कि यह किसी भी जीवन संबंधी गतिविधि के बिना किसी ग्रह के वायुमंडल में जमा हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, अगर एक्सोप्लेनेट चक्कर लगाने वाले तारे के बेहद करीब है या उसे सीधे रोशनी मिलती है, तो उसका वायुमंडल बहुत गर्म हो सकता है और महासागर वाष्पीकृत हो सकते हैं। इस पानी को मजबूत अल्ट्रावायलेट विकिरण से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणु में बदला जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन ग्रहों पर ऑक्सीजन का सिग्नल इतना मजबूत है कि वेब टेलीस्कोप की मदद से पता लगाया जा सकता है कि एम-ड्वार्फ वाले ग्रहों पर वायुमंडल है या नहीं।

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