West Bengal Assembly Election 2021: कांग्रेस के लिए उपजाऊ रही है मालदा की जमीन, अब भाजपा व तृणमूल की बढ़ी धमक

West Bengal Assembly Election 2021 मालदा को कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व रेलमंत्री अब्दुल गनी खान चौधरी के गढ़ के रूप में जाना जाता है। मालदा में रेल मंडल कार्यालय लाने का श्रेय उनको ही है इसी वजह से इलाके का थोड़ा-बहुत विकास हुआ।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Sat, 03 Apr 2021 07:29 PM (IST) Updated:Sat, 03 Apr 2021 07:29 PM (IST)
West Bengal Assembly Election 2021: कांग्रेस के लिए उपजाऊ रही है मालदा की जमीन, अब भाजपा व तृणमूल की बढ़ी धमक
कांग्रेस के लिए उपजाऊ रही है मालदा की जमीन, अब भाजपा व तृणमूल की बढ़ी धमक। फाइल फोटो

मालदा, डा. प्रणेश/रोहित। West Bengal Assembly Election 2021: बंगाल के पिछड़े जिलों में शुमार मालदा को कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व रेलमंत्री अब्दुल गनी खान चौधरी के गढ़ के रूप में जाना जाता है। मालदा में रेल मंडल कार्यालय लाने का श्रेय उनको ही है, इसी वजह से इलाके का थोड़ा-बहुत विकास हुआ। मालदा में रेल मंडल कार्यालय खुलने से पूर्व इस इलाके की ट्रेनों का परिचालन झारखंड के साहिबगंज से नियंत्रित होता था। इलाके के लोग भी श्रेय खान चौधरी को देते हैं। यही वजह है कि वह लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतते रहे। उनके बाद भी परिवार की यहां धाक रही है, मगर अब हालात बदल रहे हैं। उनका गढ़ दरकने लगा है। भाजपा की लहर यहां अपनी मजबूती का अहसास करा रही है।

अब्दुल गनी खान चौधरी के भाई एएच खान चौधरी वर्तमान में मालदा दक्षिण सीट से कांग्रेस सांसद हैं तो भतीजे ईशा खान चौधरी सूजापुर से कांग्रेस विधायक हैं। भांजी मौसम नूर तृणमूल कांग्रेस की मालदा जिला अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य हैं। पहले वह भी कांग्रेस में थीं। गनी खान के परिवार का ही वर्चस्व है कि यहां तृणमूल कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई। चूंकि, पिछले पांच सालों में तृणमूल ने यहां अपनी स्थिति सुधारी है। गनी खान के परिवार के सदस्य को सम्मान देकर उसने यहां मुस्लिम वोटों में गहरी सेंध लगाई है। 50 फीसद मुस्लिम वोटरों वाले इस जिले में अब आलम यह है कि मुस्लिमों का एक बड़ा धड़ा तृणमूल के साथ है। वजह, यहां के बहुसंख्य लोगों को लगता है कि प्रदेश में भाजपा को रोकने की कुव्वत ममता बनर्जी में ही है।

खैर, यह तो हुई मुस्लिम वोटरों के बूते जीत का मंसूबा पाले कांग्रेस गठबंधन और तृणमूल कांग्रेस की बात। इन दोनों की लड़ाई में वोट बंटने से भाजपा को फायदा होना तय है। मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण ¨हदू भी गोलबंद होकर 'जय श्रीराम' का नारा लगा रहे हैं। जाहिर है भगवा लहर को इससे बल मिल रहा। पिछले लोकसभा चुनाव में इसकी बानगी दिखी भी। शहर के इंग्लिश बाजार में किताब की दुकान संचालित करने वाले सुभमय मुखर्जी कहते हैं अब्दुल गनी खान चौधरी का यहां रसूख रहा है। उन्होंने इलाके के लिए काफी कुछ किया। कांग्रेसी उन्हीं की फसल काटते आए, लेकिन अब हालात जुदा हैं। तृणमूल और भाजपा दोनों यहां काफी मजबूत हुई हैं। वहीं खड़े अब्दुल रहमान ने कहा, हम तो उसी पार्टी को वोट देंगे जो भाजपा को हरा पाए। हालांकि, जहां गनी खान चौधरी के परिवार के लोग होंगे, वहां सोचेंगे। जैसे चावल के एक दाने से पता लग जाता है कि पूरी हांडी का हाल क्या है, इन दो लोगों की प्रतिक्रिया से भी मालदा का मिजाज पता लग रहा।

बढ़ा हुआ है भाजपा का मनोबल

पिछले विधानसभा चुनाव में पूरे राज्य में परचम लहराने वाली तृणमूल को मालदा से काफी निराशा हाथ लगी थी। वाममोर्चा व कांग्रेस गठबंधन ने जिले की 12 में से 11 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि एक सीट भाजपा के खाते में गई थी। लोकसभा चुनाव में सीपीएम के हबीबपुर के विधायक खगेन मुर्मू भाजपा में शामिल हो गए और उत्तर मालदा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। वह जीत भी गए। बाद में हबीबपुर में हुए उपचुनाव में भाजपा के जुएल मुर्मू चुनाव जीते। इस प्रकार वर्तमान में भाजपा के कोटे में यहां दो विधानसभा सीट हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को गाजल, मालदा, हबीबपुर, इंग्लिस बाजार, मानिकचक व वैष्णव नगर विधानसभा सीट से बढ़त मिली थी। मालदा दक्षिणी सीट पर कांग्रेस के एएच खान चौधरी से भाजपा की श्रीरूपा मित्रा चौधरी मात्र 8400 वोट से पीछे रह गई थीं। जाहिर है भाजपा बढ़े मनोबल से मालदा में लड़ाई लड़ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार भाजपा इस बार कम से कम आधा दर्जन सीटों पर सबसे वजनी नजर आ रही है। चूंकि, यहां सातवें-आठवें चरण में चुनाव है तो अभी समीकरण बनने और बिगड़ने का पर्याप्त समय है।

बेरोजगारी बड़ी समस्या

मालदा जिला कृषि बहुल क्षेत्र है। यहां के आम देशभर में जाते हैं। बिचौलिए औने-पौन भाव में इसकी खरीद-बिक्री में लगे रहते हैं। सरकार के स्तर से उसकी मार्केटिंग की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। रोजगार के लिए यहां के हजारों लोग अन्य प्रदेशों में जाते हैं। ऐसे में लोग हालात में बदलाव चाहते हैं।

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