गुलाब के प्रेम में इंजीनियर बन गया बागबान, घर की छत को बना डाला बगिया और लगा दिए 250 प्रजाति के गुलाब

जुनून-एयर इंडिया की नौकरी छो़ड़ सुबह से शाम तक गुलाबों के बाग में रहते हैं व्यस्त। कोरोना के इस काल में तो वह और अधिक सक्रिय हैं। ऑल इंडिया रोज फेडरेशन की ओर से गोल्ड मेडल से शेखर दत्त हो चुके हैं पुरस्कृत।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Tue, 20 Oct 2020 06:24 PM (IST) Updated:Tue, 20 Oct 2020 06:24 PM (IST)
गुलाब के प्रेम में इंजीनियर बन गया बागबान, घर की छत को बना डाला बगिया और लगा दिए 250 प्रजाति के गुलाब
बाग में मौजूद रंग बिरंगे गुलाब के फूल।

जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता : प्रेम, दोस्ती और भावना के इजहार का एक सशक्त माध्यम गुलाब के फूलों को माना जाता है। गुलाब को फूलों का राजा भी कहा जाता है। गुलाब की खुशबू मात्र से तन-मन दोनों महक उठते हैं। यही वजह है कि गुलाब के प्रेम में शेखर दत्त नामक एक मैकेनिकल इंजीनियर ऐसे डूबे कि उन्होंने एयर इंडिया की अच्छी खासी नौकरी छोड़ बागबान बन गए और अपने घर की करीब 2500 वर्ग फुट क्षेत्रफल वाली छत पर 250 प्रजाति के गुलाब के पौधे लगाकर एक विशाल बाग बना डाला। कोरोना के इस काल में तो वह और अधिक सक्रिय हैं। क्योंकि, इस दौरान वह कहीं नहीं निकलते और न ही कोई उनसे मिलने के लिए आता है। इसीलिए वह पूरी तरह से खुद को बाग में व्यस्त रखा है।

71 वर्ष की उम्र में भी सुबह से शाम तक रहते हैं बाग में सक्रिय

कोलकाता के पाश इलाकों में से एक देशप्रियो पार्क के लेक टेरेस क्षेत्र में स्थित अपने आवास की छत को गुलाब का बाग बाने वाले शेखर को वैसे तो पेड़-पौधों के प्रति प्रेम विरासत में मिला है। क्योंकि, उनके पिता सुबोध चंद्र दत्त को भी पौधों से काफी प्यार था। परंतु, गुलाब के पेड़ों और उसकी प्रजाति को लेकर दत्त का जुनून का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपनी उम्र के 71 वें बसंत में आज भी किसी नौजवान की तरह लोहे वाली छोटी संकरी सीढ़ियां चढ़कर सुबह सात बजे छत पर बाग में पहुंच जाते हैं। दोपहर एक से डेढ़ बजे तक बाग में रहते हैं। इसके बाद नहाने व खाने के लिए नीचे उतरते हैं। फिर अपराह्न 3.30-4 बजे से लेकर शाम 7-7.30 बजे तक गुलाब के पौधों की देखरेख में जुटे रहते हैं।

घर की छत पर वाटर रीसाइक्लिंग की हुई है मैनुअल व्यवस्था 

गुलाबों के पौधों के गमलों लिए लोहे का स्टैंड बना रखा है। पानी बर्बाद न हो इसके लिए वह वाटर रीसाइक्लिंग की मैनुअल व्यवस्था भी कर रखी है। गमले के नीचे प्लास्टिक का चैनल बना रखा है और हर चैनल के अंत में एक बाल्टी रखे हुए हैं जिसमें पौधे में पानी डालते समय अतिरक्त जल फिर से चैनल के माध्यम से बाल्टी में जमा हो जाता है। उसका अगले दिन फिर पौधों की सिंचाई में उपयोग करते हैं। सालाना सवा लाख रुपये वह गुलाब के पौधों के पीछे खर्च करते हैं। यहां तक कि गुलाब के पौधे लंबे समय तक स्वस्थ्य रहे इसके लिए वह अन्य राज्यों से मिट्टी मंगा रखे हैं। शेखर दत्त का कहना है कि गुलाब के लिए जैविक तत्वों से भरपूर और अच्छे जल निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी अनुकूल होती है। यह जल जमाव को सहनयोग्य नहीं है, इसलिए जल निकास का उचित प्रबंध कर रखा हूं। 

2000 में छोड़ दी नौकरी, 250 प्रजाति के गुलाब बाग में लगाए 

शेखर ने कहा, मुझे गुलाब से ऐसा लगाव है कि जब नौकरी करते हुए मुझे लगा कि मैं बाग को समय नहीं दे पा रहा हूं तो सन् 2000 में मैंने एच्छिक अवकाश ले लिया। उन्होंने कहा कि मैं बाग में होता हूं तो मुझे और कुछ याद नहीं रहता। कभी-कभी तो मेरी पत्नी इसे लेकर खफा हो जाती है। मैंने अपने बाग में विभिन्न देशों से गुलाब लाए हैं और खुद भी कई प्रजाति के गुलाब तैयार किए हैं। देश ही नहीं विदेशों से भी लोग मुझसे गुलाब और तकनीकी के बारे में जानकारी लेने के लिए आते हैं। मुझे इंडियन रोज फेेडरेशन की ओर से वर्ष 2016 में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया था। शेखर दत्त ने कहा कि मैंने देश ही नहीं विदेशों से भी 250 प्रजाति के गुलाब अपने बाग में लगाए हैं। कोलकाता की मिट्टी गुलाब के लिए उपयुक्त नहीं है। इसीलिए अन्य राज्यों से मिट्टी मंगा कर गमले में रखे हैं। सुबह से शाम मेरा इन गुलाबों की बीच गुजरता है।

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