Bengal Chunav: चुनावी सियासत में दशकों से उपेक्षित कोलकाता की विरासत, इस बार भी हाथ रिक्शा चालकों के लिए कुछ नहीं

Bengal Chunav ये हैं कोलकाता के हाथरिक्शा चालक। सिटी ऑफ ज्वॉय में कभी शान से दौड़ते थे हाथ रिक्शा आज सुध लेने वाला कोई नहीं सियासी दलों के लोक लुभावन वादों में इस बार भी हाथ रिक्शा चालकों के लिए कुछ नहीं

By Priti JhaEdited By: Publish:Wed, 24 Mar 2021 03:57 PM (IST) Updated:Wed, 24 Mar 2021 04:04 PM (IST)
Bengal Chunav: चुनावी सियासत में दशकों से उपेक्षित कोलकाता की विरासत, इस बार भी हाथ रिक्शा चालकों के लिए कुछ नहीं
फिल्म सिटी ऑफ ज्वॉय की शूटिंग के दौरान हाथरिक्शा खींचते दिवंगत अभिनेता ओम पुरी।

कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। चुनावी मौसम में जहां तमाम राजनीतिक दल लोकलुभावन वादे कर मतदाताओं के हरेक वर्ग को साधने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं हर बार की तरह इस बार भी वे उपेक्षित हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। ये हैं कोलकाता के हाथरिक्शा चालक। एक दौर था, जब कोलकाता की सड़कों पर शान से हाथरिक्शा दौड़ा करते थे। जमाना बदला, मोटर चालित वाहनों का चलन बढ़ा। पैडल वाले रिक्शा आ गए, फिर भी कोलकाता में हाथरिक्शा चलते रहे लेकिन गुजरते समय के साथ हाथरिक्शा चालकों की हालत बदतर होती चली गई। उनकी दुर्दशा बयां करने को कई यादगार फिल्में बनीं, जिन्हेंं ढेरों पुरस्कार भी मिले लेकिन जिनके लिए ये फिल्में बनाई गई थीं, उनका ही कुछ भला नहीं हो पाया।

हिंदी फिल्मों के दिग्गज अभिनेता बलराज साहनी 'दो बीघा जमीनÓ, बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना 'बाबू और कला फिल्मों के सशक्त अदाकार ओम पुरी 'सिटी ऑफ ज्वॉयÓ में हाथरिक्शा खींचते नजर आए लेकिन ये सारी कहानियां रूपहले परदे पर ही सिमट कर रह गईं। बंगाल में बदस्तूर चुनाव होते रहे और चुनावी सियासत में कोलकाता की इस समृद्ध विरासत की घोर उपेक्षा होती चली गई।

हमारी बदतर जिंदगी को बेहतर करने कोई आगे नहीं आता

कोलकाता की सड़कों पर पिछले 30 वर्षों से हाथरिक्शा चलाते आ रहे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले मनोज यादव ने कहा कि हमारे काम को कुछ लोग अमानवीय कहते हैं। बोलते हैं कि यह कैसा अन्याय है, आदमी आदमी को खींच रहा है लेकिन हमारी बदतर जिंदगी को बेहतर करने उनमें से कोई आगे नहीं आता। हमें पेट के लिए यह करना पड़ता है। पुलिस वाले हमें बहुत परेशान करते हैं। डंडे से मारते हैं। क्या यह अमानवीय नहीं है? इस बारे में कोई कुछ क्यों नहीं कहता? 

बिहार के बेगुसराय जिले के वाशिंदा महेश प्रसाद ने कहा कि हाथरिक्शा चलाकर रोजाना 500 रुपये तक की ही कमाई हो पाती है, उसका भी एक हिस्सा हाथरिक्शा के दैनिक किराए के तौर पर मालिक को देना पड़ता है। कोई और काम है भी नहीं इसलिए इसी से गुजारा कर रहे हैं।

हाथरिक्शा चालकों के लिए हो वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था : यूनियन

ऑल बंगाल रिक्शा यूनियन के महासचिव मुख्तार अली ने कहा कि बंगाल में अगली सरकार जिस पार्टी की भी बनें, हम चाहते हैं कि वह हाथरिक्शा चालकों की सुध ले और उनके लिए वैकल्पिक रोजगार का प्रबंध करे। हाथरिक्शा चालकों के लिए ई-रिक्शा की व्यवस्था की जा सकती है।

मुख्तार अली ने आगे कहा कि चूंकि ट्राम की तरह हाथरिक्शा भी कोलकाता की विरासत है इसलिए इसे पूरी तरह से बंद करना उचित नहीं होगा। हम चाहते हैं कि विक्टोरिया मेमोरियल के पास पर्यटकों के लिए कुछ हाथरिक्शा चलाए जाए।

कोलकाता में अभी चल रहे 3,000 हाथरिक्शा

कोलकाता में अभी 3,000 हाथरिक्शा चल रहे हैं। उन्हेंं चलाने वालों में ज्यादातर यूपी-बिहार और झारखंड के लोग हैं। उनमें से बहुतों अपने परिवार के साथ यहां आकर बस गए हैं। उनका यहां मतदाता परिचय पत्र भी है। हाथरिक्शा मालिकों में अधिकांश बांग्लाभाषी हैं। कोलकाता की गलियों में ही अब ज्यादातर हाथरिक्शा चलते हैं।

2006 में तत्कालीन बुद्धदेव सरकार हाथरिक्शा हटाने को लाई थी बिल

2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य कोलकाता की सड़कों से हाथरिक्शा हटाने के लिए बिल लेकर आई थी। उन्होंने हाथरिक्शा चालकों के पुनर्वास की भी बात कही थी। यह मामला अदालत तक गया था। तब से सरकार की तरफ से हाथरिक्शा चालकों को नए सिरे से लाइसेंस प्रदान नहीं किया गया है, हालांकि हाथरिक्शा अभी भी चल रहे हैं। 

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