जिउतिया पर्व की तैयारी में जुटी महिलाएं

-पुत्र के लिए की जाती है यह व्रत नाग वंश से जुड़ी है इसकी कथा जागरण संवाददाता सिलीगुड़

By JagranEdited By: Publish:Thu, 19 Sep 2019 08:11 PM (IST) Updated:Fri, 20 Sep 2019 06:50 AM (IST)
जिउतिया पर्व की तैयारी में जुटी महिलाएं
जिउतिया पर्व की तैयारी में जुटी महिलाएं

-पुत्र के लिए की जाती है यह व्रत ,नाग वंश से जुड़ी है इसकी कथा

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : जिउतिया पर्व 22 सितंबर को मनाया जाएगा। महिलाएं जिउतिया पर्व मनाने की तैयारी में व्यस्त दिख रही है। 21 सितंबर को नहाय-खाय का पालन किया जाएगा। इसके लिए जिस स्थान पर पूजा की जाएगी। उस स्थान की साफ-सफाई विशेष तौर पर की जा रही है। शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जा रहा है। मंदिरों इत्यादि में कथा वाचन की व्यवस्था की जा रही है। पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि इस व्रत को महिलाएं पुत्र की लंबी आयु की कामना के लिए करती है। इस दिन निर्जल उपवास रखेगी। 23 सितंबर का व्रत का पारण किया जाएगा।

भूख को बर्दाश्त करने से पूर्ण हुआ जिउतिया व्रत

प्राचीन समय में जंगल में एक चील और सियारिन रहा करती थी। दोनों में मित्रता थी। दोनों ने कुछ स्त्रियों को इस व्रत करते देखा। उसने प्रण किया कि वे भी इस व्रत को करेंगे। दोनों ने व्रत प्रारंभ किया। भूख के कारण सियारिन की हालत खराब हो गई। वह भूख बर्दाश्त नहीं कर पायी और चुपके से भोजन कर ली। नतीजा यह निकला कि सियारिन के जितने भी बच्चे हुए कुछ ही दिनों में मृत को प्राप्त हो गए जबकि चील के बच्चों को दीर्घ जीवन मिला।

नाग वंश के प्राण की राजकुमार ने की रक्षा

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। इस कथा में कहा गया है कि गंधर्वो के राजकुमार का नाम जीभूतवाहन था। एक दिन वह जंगल में भ्रमण कर रहा था। उसे एक विलाप करती वृद्धा दिखी। उसके रोने का कारण पूछने पर उसने कहा कि वह नागवंश की स्त्री है। गरुड़ को भोजन देने के लिए उसके पास अपने पुत्र के अलावा और कुछ नहीं है। राजकुमार ने वृद्धा को वचन दिया कि वह उसके पुत्र को बचाएगा। उसके बाद वह स्वयं लाल कपड़े में लिपटाकर गरुड़ के सामने लेट गया। गरुड़ आए और वह उसे उठाकर पहाड़ पर ले गए। चंगुल में फंसे व्यक्ति की कोई प्रतिक्त्रिया न देखकर गरुड़ ने उससे उसका परिचय पूछा। जीमूतवाहन ने गरुड़ को पूरी जानकारी दी। गरुड़ ने जीमूतवाहन की बहादुरी और परोपकार की भावना को देखकर जीवन दान दे दिया और नागो की बली न लेने का वरदान भी दिया। पुत्र को जीवन दान मिलने से इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के रुप में किया जाता है।

नदी पर होगी सेवा शिविर

स्थानीय महानंदा नदी के तट पर सेवा शिविर लगाया जाएगा। जहां पर महिलाएं सामूहिक रूप से व्रत की कथा को सुनेगी। इसी क्रम में वहां पर पेयजल, खोया-पाया की सूचना सहित अन्य कई सेवाएं दी जाएगी। व्रती महिलाओं का किसी प्रकार की परेशानी ना हो इसकी विशेष व्यवस्था की जाएगी।

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