अब भूरी नहीं सफेद होगी मंडुवे की रोटी, वैज्ञानिक ने तैयार की इसकी नई प्रजाति

विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा ने मंडुवा की (वीएल मंडुवा-382) नई प्रजाति तैयार की है। यह मंडुआ भूरे रंग के बजाय सफेद रंग का है। इस प्रजाति का बीज काश्तकारों को वर्ष 2021 से उपलब्ध होने की उम्मीद है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 10 Nov 2020 09:43 AM (IST) Updated:Tue, 10 Nov 2020 11:33 PM (IST)
अब भूरी नहीं सफेद होगी मंडुवे की रोटी, वैज्ञानिक ने तैयार की इसकी नई प्रजाति
विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक इस प्रजाति के उत्पादन और पौष्टिकता को लेकर काफी खुश हैं।

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा ने मंडुवा की (वीएल मंडुवा-382) नई प्रजाति तैयार की है। यह मंडुआ भूरे रंग के बजाय सफेद रंग का है। इस प्रजाति का बीज काश्तकारों को वर्ष 2021 से उपलब्ध होने की उम्मीद है। विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक इस प्रजाति के उत्पादन और पौष्टिकता को लेकर काफी खुश हैं।

मंडुवा का उत्तराखंड के पहाड़ की परंपरागत फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य करीब 135 हजार हेक्टेयर भूमि पर मंडुवा का उत्पादन होता है। पौष्टिक तत्वों से भरभूर होने के बाद भी मंडुवा का आटा 20 से 25 रुपये प्रति किलो की बिक रहा है। रंग के कारण बाजार में अभी मंडुवा की मांग कम है, लेकिन विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के निदेशक डॉ. लक्ष्मी कांत कहते हैं कि संस्थान के वैज्ञानिकों ने वीएल मंडुवा-382 नामक प्रजाति को तैयार कर दिया है। तीन वर्षों तक उत्तराखंड में संस्थान के अलग-अलग परीक्षण केंद्रों में सफेद मंडुवा का उत्पादन किया गया। मंडुवा की यह प्रजाति सफेद अजान की एक विशेष किस्म है। जिसे 13 अप्रैल, 2016 को कृषि निदेशालय, देहरादून में आयोजित राज्य प्रजाति परीक्षण बैठक के दौरान उत्तराखंड में रिलीज के लिए चिह्नित किया गया है।

भूरे रंग के वीएल मंडुवा-324 के प्रति 100 ग्राम में कैल्शियम 294 मिलीग्राम और प्रोटीन 6.6 फीसद है। जबकि सफेद मंडुवा की वीएल मंडुवा-382 के प्रति 100 ग्राम में कैल्शियम 340 ग्राम और प्रोटीन सामग्री 8.8 फीसद है। उन्होंने कहा कि एक सफेद अनाज जीनोटाइप होने के नाते, वीएल मंडुवा-382 किसानों को भूरे रंग के मंडुवे की किस्मों के लिए एक नया विकल्प प्रदान करेगा। अपने उच्च पौष्टिक मूल्य और सफेद रंग के दाने के चलते यह भूरे रंग के बीज वाली किस्मों की तुलना में बहुत अधिक पसंद की जाने वाली प्रजाति होगी।

संस्थान के डॉ. दिनेश जोशी ने बताया कि संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति को डब्ल्यूआर-2 एवं वीएल 201 किस्मों के क्रास करके विकसित किया है। मंडुवा में लगने वाली फिंगर ब्लास्ट नामक बीमारी के प्रति भी इसमें अन्य प्रजातियों की तुलना में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक देखी गयी है। कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ के प्रभारी अधिकारी डॉ पंकज नौटियाल ने कहा कि उम्मीद है कि यह बीज काश्तकारों को 2021 से कृषि विभाग व अन्य माध्यमों से मिलना शुरू हो जाएगा। इस बीज की मांग अभी से बढ़ने लगी है।

यह भी पढ़ें: जैविक और परंपरागत खेती को दे रहे हैं बढ़ावा, बैलों से ही कर रहे 30 बीघा खेत की जुताई

यह भी पढ़ें: PM मोदी के वोकल फॉर लोकल अभियान को आगे बढ़ा रहा ये परिवार, ऑनलाइन कारोबार से 20 गांवों में रोजगार

chat bot
आपका साथी