चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है

संवाद सहयोगी उत्तरकाशी समुद्रतल से करीब नौ हजार फीट की ऊंचाई पर धनारी पट्टी के बालि

By JagranEdited By: Publish:Tue, 02 Apr 2019 06:06 PM (IST) Updated:Tue, 02 Apr 2019 06:06 PM (IST)
चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है
चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है

संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : समुद्रतल से करीब नौ हजार फीट की ऊंचाई पर धनारी पट्टी के बालखिल्य पर्वत पर स्थित पौराणिक सिद्धपीठ मां नागणी देवी यात्रा में सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। श्रद्धालुओं ने नागणी मंदिर में पहुंचकर माता के दर्शन कर उनसे अपने परिवार की खुशहाली की प्रार्थना की। इस दौरान श्रद्धालुओं ने मंदिर परिसर में माता के जयकारे और भजन-कीर्तन किया। ग्रामीण श्रद्धालुओं ने मंदिर परिसर में जमकर रासौ, तांदी नृत्य किया। ग्राम चिलमुंड, ढुंगाल गांव और बगसारी गांव के युवकों ने श्रद्धालुओं को फलाहार, चाय, हलवा आदि वितरित किया। यात्रा में बाड़ागड्डी पट्टी, धनारी पट्टी और उत्तरकाशी के सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। यात्रा उत्तरकाशी के संकुरणाधार से करीब 18 किमी वाहन से पहुंचने के बाद करीब पांच किमी की पैदल चढ़ाई की। यात्रा के दौरान श्रद्धालु बांज, बुरांश के घने जंगलों से होकर मां नागणी देवी मंदिर पहुंचे। मंदिर के शिखर पर पहुंचने के बाद श्रद्धालुओं ने आसपास बर्फ से ढ़की हिमालय की चोटियों के दर्शन किए।

उत्तरकाशी के होटल एसोसिएशन अध्यक्ष शैलेंद्र मटूड़ा ने बताया कि बाल खिल्य पर्वत का उल्लेख केदारखंड के स्कंध पुराण में किया गया है। कहा बाल खिल्य नामक ऋषि ने इस स्थान पर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि आज के बाद यह पर्वत आपके नाम से ही जाना जाएगा। कहा जो मनुष्य श्रद्धा के साथ बाल खिल्य पर्वत पर चढ़ेगा, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसी मनोकामना के साथ ग्रामीण इस यात्रा का शुभारंभ करते हैं। उन्होंने बताया कि उत्तरकाशी-लंबगांव मोटर मार्ग पर संकूर्णाधार तक वाहन के माध्यम से यहां पहुंचा जाता है। संकूर्णाधार से वन विभाग की एक किमी सड़क पर निजी वाहन या पैदल दूरी तय कर एक खाले के समीप पहुंचते हैं, फिर श्रद्धालु इसी खाले से करीब पांच किमी की पैदल चढ़ाई चढ़कर मंदिर में पहुंचते हैं। यात्रा के दौरान श्रद्धालु घने बांज, बुरांश, चीड़ के जंगल से होकर मंदिर तक पहुंचते है। मंदिर में पहुंचने के बाद श्रद्धालुओं को हिमाच्छादित हिमालय पर्वत के दर्शन होते हैं। इस यात्रा में जगमोहन मटूड़ा, रमेश राणा, गजेंद्र मटूड़ा, मुकेश, पृथ्वीपाल, महेंद्र राणा, चतर सिंह, शंभू राणा, श्रवण राणा, सुंदर सिंह आदि शामिल थे।

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