60 पेड़ों का जुर्म काट अफसरों को बचाने में जुटा विभाग

वन अमूल्य हैं लेकिन राज्य स्थापना के साथ ही लगातार वनों का दोहन हुआ है। यहां ज्वालावन क्षेत्र में चार सौ से भी अधिक पेड़ काट डाले गए मगर हैरानी की बात है कि वन विभाग द्वारा अभी तक सिर्फ 60 पेड़ों का जुर्माना कार्य गया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 18 Nov 2020 08:57 PM (IST) Updated:Wed, 18 Nov 2020 08:57 PM (IST)
60 पेड़ों का जुर्म काट अफसरों को बचाने में जुटा विभाग
60 पेड़ों का जुर्म काट अफसरों को बचाने में जुटा विभाग

जीवन सिंह सैनी, बाजपुर : वन अमूल्य हैं, लेकिन राज्य स्थापना के साथ ही लगातार वनों का दोहन हुआ है। जिसका प्रमाण है लगभग एक वर्ष की अवधि में ज्वालावन क्षेत्र में चार सौ से भी अधिक पेड़ काट डाले गए। हैरानी की बात है कि वन विभाग द्वारा अभी तक सिर्फ 60 पेड़ों का जुर्माना काटा गया और मात्र दो लोगों पर कार्रवाई की गई। ऐसे में कई सवाल उठने लाजमी हैं।

कोसी व दाबका नदियां यहां लकड़ी तस्करों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। बंजारी गेट व दाबका के बीच ज्वालावन क्षेत्र सदियों से इमारती लकड़ी वाले पेड़ों लहलहा रहा था लेकिन यहां सागौन के पेड़ कटते गए। विभाग वहां यूकेलिप्टिस लगाता चला गया, अब इसी क्षेत्र में बबूल, कंजू आदि प्रजातियों को लगाया जा रहा है, जबकि नदियों के बीच स्थित यह जंगल उपजाऊ है। तस्करों से विभाग इस जंगल को बचा नहीं पा रहा है। परिणाम स्वरूप वन क्षेत्र की लगभग 50 प्रतिशत भूमि पर अवैध कब्जे हो चुके हैं और आज भी लोग इसी उद्देश्य से जंगल काटने में लगे हैं कि लकड़ी तस्करी के साथ ही जमीन पर कब्जा मिलेगा और उसके बाद खनन से कमाई का भी मौका मिलेगा। यही कारण है कि विभाग के कई अधिकारी लकड़ी तस्करी की बयार में बहते चले गए और हमेशा छोटे कर्मचारी पर गाज गिराई जाती रही। माना जाता रहा है कि बिना अफसरों की सख्ती से तस्करी पर अंकुश संभव नहीं है।

उल्लेखनीय है ज्वालावन क्षेत्र में विभाग द्वारा 60 पेड़ों का जुर्म काटने की बात कही गई है, जबकि मौके पर काटे गए पेड़ों की संख्या कहीं अधिक है। सूत्रों के मुताबिक 18 फरवरी 2020 तक कटे पेड़ों की संख्या ही 172 से अधिक है।

--------

इंसैट::

18 वर्षो में नदी में समा गई दर्जनों हेक्टयर भूमि

बाजपुर : 1992 तक वन क्षेत्र कोसी कांटा जोगीपुरा तक स्थापित था, लेकिन अवैध खनन के साथ ही जंगलों में अवैध लकड़ी कटान इस कदर शुरू हुआ कि आजादी के समय लगे पेड़ तस्करों द्वारा दिन-प्रतिदिन वन कर्मियों की मिलीभगत से काट दिए गए। जिससे वन क्षेत्र घटता गया और वन भूमि पर अवैध कब्जे होते गए। आज कई लोग अवैध रूप से वन भूमि में खनन कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि मामले की जानकारी उच्चाधिकारियों को नहीं है, लेकिन अपने बचाव के लिए वह भी लोगों को कोर्ट का रास्ता बता देते हैं ताकि वह कह सकें कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है।

---------

घट रही पेड़ों की संख्या

बाजपुर : ज्वालावन क्षेत्र में 25 से 40 हेक्टेयर के 13 प्लाट हैं, जिसमें कभी सागौन के ही पेड़ ही दिखाई पड़ते थे, लेकिन लगातार अवैध कटान के चलते वन विभाग द्वारा यूकेलिप्टिस के पेड़ लगाए गए हैं। कहीं-कहीं पर सागौन के जो पेड़ रह गए हैं उन्हें तस्करों द्वारा काटा जा रहा है। निशान मिटाने के लिए अनेक जगह ठूंठ जलाए जाने के प्रमाण भी मिले हैं। बताया जाता है कि लकड़ी तस्कर रात के अंधेरे में पेट्रोल चलित मशीन से चंद मिनटों में पेड़ काट देते हैं और कुछ समय में ही 40 से 60 फीट लंबे पेड़ का सफाया कर दिया जाता है। तस्कर इतने शातिर हैं कि कटान के पेड़ को बाइकों से नजदीकी क्षेत्रों में खड़े वाहनों तक पहुंचाते हैं और वहां से प्रशासनिक मिलीभगत से लकड़ी उप्र के कुछ शहरों तक पहुंच जाती है।इस खेल में नीचे से लेकर ऊपर तक कई लोग शामिल हैं।

---------

कभी था घना जंगल

बाजपुर : ज्वालावन क्षेत्र कभी घना जंगल होता था और इसकी चौड़ाई लगभग 2 किलोमीटर के आसपास थी, लेकिन कोसी व दाबका नदियों में हो रहे अवैध खनन के चलते इन जंगलों के हजारों पेड़ कटान के चलते या तो नदियों में समा गए या तस्करों की भेंट चढ़ गए। ऐसे में वर्तमान समय में इसकी चौड़ाई लगभग एक किलोमीटर रह गई है। वहीं पेड़ों से खाली हुई वन भूमि पर एक के बाद एक ग्रामीण बसते चले जा रहे हैं, जोकि वन भूमि के साथ ही वन पर्यावरण व वन्य जीव-जंतुओं के लिए भी खतरा है।

--------------

::: वर्जन

मामले की जांच जारी है, प्रारंभिक जांच में जो लोग दोषी पाए गए थे उन पर कार्रवाई की गई है। अधिकारिक स्तर पर भी जो व्यक्ति दोषी पाया जाएगा उसकी जिम्मेदारी निर्धारित की जाएगी। वन सुरक्षा का दायित्व सभी को उनके कार्य के अनुसार दिया गया है और जिस किसी का जितना दोष होगा उतनी कार्रवाई प्रत्येक दशा में की जाएगी।

-हिमांशु बागरी, डीएफओ तराई पश्चिमी वन प्रभाग रामनगर

chat bot
आपका साथी