सौहार्द की मिसालः हुसैन की जमीं पर राम की लीला

समाज में धर्म-संप्रदाय के नाम पर बांटने का काम करने वालों के लिए सितारगंज की जमीं सौहार्द का संदेश दे रही है। कस्बे के महमूद हुसैन ने इंसानी धर्म की मिसाल पेश करते हुए रामलीला के लिए चार एकड़ जमीन दान की थी।

By BhanuEdited By: Publish:Tue, 13 Oct 2015 05:01 PM (IST) Updated:Tue, 13 Oct 2015 08:47 PM (IST)
सौहार्द की मिसालः हुसैन की जमीं पर राम की लीला

सितारगंज। समाज में धर्म-संप्रदाय के नाम पर बांटने का काम करने वालों के लिए सितारगंज की जमीं सौहार्द का संदेश दे रही है। कस्बे के महमूद हुसैन ने इंसानी धर्म की मिसाल पेश करते हुए रामलीला के लिए चार एकड़ जमीन दान की थी। यही नहीं जीवित रहने तक रामलीला में बढ़-चढ़कर सहयोग करते रहे।
नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन हाजी अनवार अहमद बताते हैं कि करीब साठ साल पहले रम्पुरा व सितारगंज ग्राम सभाएं होती थी। यहां ईद हो या दीपावली सभी त्योहार दोनों धर्मो के लोग मिलजुल कर मनाते थे।
उन्होंने बताया कि उन दिनों धार्मिक बंदिशें नहीं थी और न मत व मन भिन्नता दिखती थी। तब क्षेत्र में रामलीला नहीं होती थी। करीब 1956 में दोनों समुदाय के लोगों ने बैठकर रामलीला का आयोजन कराने का फैसला लिया।
सौहार्द के इस रिश्ते को और मजबूती दी दादा महमूद हुसैन ठेकेदार ने। उन्होंने बैठक में रामलीला के लिए करीब चार एकड़ जमीन दान देने की घोषणा की और वादा किया कि इस तरह के आयोजनों का क्रम कभी टूटने नहीं दिया जाएगा।
महमूद हुसैन ने जगन्नाथ जायसवाल, हरबो लाल भट्टाचार्य (बंगाली बाबू), मुरारी लाल मित्तल, मुंशी राधा कृष्ण के साथ मिलकर रामलीला की शुरुआत की। मथुरा से मंडली बुलाई और राम की लीला कराई।
पहली बार 1956 में ही जब रामलीला कराई गई तो यहां का उत्साह देखते बन रहा था। इतना जबरदस्त क्रेज कि दूरदराज गांव के लोग दोपहर में ही आकर पट्टी बिछाकर स्थान घेर लेते थे। अनवार बताते हैं कि रात एक बजे तक रामलीला चलती थी।
रात में चोरी-चकारी होने के डर की वजह से रामलीला खत्म होने के तुरंत बाद सुल्ताना डाकू, लैला-मजनू, श्रवण कुमार का मंचन कराया जाता था, जो सुबह तक चलता था। दादा महमूद के रूप में सौहार्द का यह दीपक एक अगस्त 1983 में बुझ गया, लेकिन उसकी रोशनी आज भी जगमगा रही है।
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