अहिसा और सत्याग्रह पर टिका है गांधीवाद

संवाद सूत्र, देवप्रयाग : राजकीय महाविद्यालय देवप्रयाग सभागार में आयोजित व्याख्यानमाला में प्राचार्य

By JagranEdited By: Publish:Mon, 30 Sep 2019 06:31 PM (IST) Updated:Tue, 01 Oct 2019 06:31 AM (IST)
अहिसा और सत्याग्रह  पर टिका है गांधीवाद
अहिसा और सत्याग्रह पर टिका है गांधीवाद

संवाद सूत्र, देवप्रयाग : राजकीय महाविद्यालय देवप्रयाग सभागार में आयोजित व्याख्यानमाला में प्राचार्य प्रो. सुधा भारद्वाज ने कहा कि गांधीजी का जन्म भारत में, उच्च शिक्षा इंग्लैंड में और राजनैतिक संघर्ष की दीक्षा दक्षिण अफ्रीका में हुई। उन्होंने अपने समस्त अनुभवों का इस्तेमाल भारत को स्वतंत्र कराने में किया।

सोमवार को महाविद्यालय सभागार में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित व्याख्यानमाला की शुरुआत प्राचार्य प्रो. सुधा भारद्वाज ने की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण की उपज होने के कारण गांधी जी स्वयं इसके नफे-नुकसान से भली भांति परिचित थे। वैश्वीकरण को प्राचीन घटना मानते हुए वे आश्वस्त थे कि विभिन्न संस्कृतियों के संश्लेषण से भारतीय संस्कृति को कोई खतरा नहीं है। साम्यवादी रूस के पतन के साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पूंजीवादी विचारधारा का प्रभुत्व हो गया। ऐसे में समाज को अपनी अधिकतम आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर एवं न्यूनतम के लिए परस्पर निर्भर होना होगा। डॉ. बीडी पांडे ने कहा कि गांधीवादी तकनीक सत्याग्रह एवं अहिसा का सफल प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला ने रंगभेद की समाप्ति के लिए और संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किग जूनियर ने अश्वेतों के अधिकार के लिए किया। अर्चना धपवाल ने कहा कि गांधीवाद अहिसा और सत्याग्रह पर टिका है, जो चार उपसिद्धांतों सत्य, प्रेम, अनुशासन एवं न्याय पर आधारित है। जिनकी उपादेयता एवं प्रासंगिकता, वैश्वीकरण के वर्तमान हिसक दौर में और बढ़ जाती है। इसी कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने गांधी जी की जन्म तिथि दो अक्तूबर को 'विश्व अहिसा दिवस' के रूप में स्वीकार कर मान्यता प्रदान की है।

बतौर मुख्य वक्ता नगर पालिका अध्यक्ष कृष्णकांत कोटियाल ने कहा कि जैसे-जैसे दुनिया बदल रही है, महात्मा गांधी उतने ही अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं। इस मौके पर राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी व व्याख्यानमाला संयोजक डॉ. अशोक कुमार मेंदोला, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. महेशानंद नौडियाल, डॉ. ज्योति गैरोला, डॉ. गुरुप्रसाद थपलियाल, डॉ. रंजू उनियाल आदि मौजूद थे।

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