जौनपुर से बहती है लोक संस्कृति की गंगा

टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र की पहचान यहां के थौल और मेलों से है। मंगशीर माह में यहां दीपावली मनाई जाती है, जो पांच दिन तक चलती है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 04 Nov 2017 03:24 PM (IST) Updated:Sat, 04 Nov 2017 10:44 PM (IST)
जौनपुर से बहती है लोक संस्कृति की गंगा
जौनपुर से बहती है लोक संस्कृति की गंगा

नैनबाग, [मोहन थपलियाल]: जौनपुर की संस्कृति की अपनी विशिष्ट पहचान है। यहां की संस्कृति की न केवल टिहरी जनपद, बल्कि देश में भी प्रसिद्ध है। एक ओर जहां लोग अपनी संस्कृति से विमुख होकर पलायन कर रहे हैं, वहीं जौनपुर के ग्रामीण आज भी अपनी पौराणिक संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं। साल भर में यहां एक दर्जन से अधिक मेलों (थौल) का आयोजन होता है, जिसमें ग्रामीणों की सहभागिता होती है।

विकास के इस दौर में जहां लोग तेजी से बाहरी संस्कृति की चपेट में आ रहे है, वहीं यहां के लोगों ने अपनी संस्कृति को धरोहर के रूप में संरक्षित रखा है। यदि यह कहा जाए कि यहां की संस्कृति ने ही यहां के पलायन को काफी हद तक रोक रखा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

जौनपुर क्षेत्र की पहचान यहां के थौल और मेलों से है। मंगशीर माह में यहां दीपावली मनाई जाती है, जो पांच दिन तक चलती है। माघ मरोज त्योहार पूरे एक माह तक चलता है। इस पर्व पर यहां बड़ी संख्या में बकरे मारे जाते हैं। मेहमानों को भी बकरों की दावत दी जाती है। इस त्योहार में मेहमानों को अनिवार्य रूप से बुलाया जाता है, जिनका आदर-सत्कार पारंपरिक ढंग से किया जाता है।

इस त्यौहार में रात्रि को यहां की पारंपरिक वेशभूषा में लोकनृत्यों का आयोजन किया जाता है। जून माह में होने वाले मौण मेले का अलग ही अंदाज है। इस मेले में ग्रामीण मौण लेकर अगलाड़ नदी में पहुंचते हैं, जहां मछली पकड़ने की प्रतियोगिता होती है। शाम को फिर मछली का सेवन किया जाता है और रात्रि को पारंपरिक लोकनृत्य आयोजित होता है। इस मेले को देखने के लिए दूर-दराज क्षेत्र से लोग यहां आते हैं। अतिथि सत्कार के लिए भी जौनपुर प्रसिद्ध है।

यह राज्य का पहला ऐसा गांव होगा, जहां इतने ज्यादा थौल-मेलों का आयोजन होता है। वास्तव में जौनपुर ने आज भी पहाड़ की संस्कृति को जदा रखा है। ग्राम कांडा के विरेंद्र सिंह रावत और राम लाल नौटियाल का कहना है कि जौनपुर क्षेत्र के लोग आज भी संयुक्त परिवार में रहते हैं और अपनी लोक संस्कृति को कायम रखे हुए हैं।

जौनपर में आयोजित मेले

माघ मरोज, मौण, दुबड़ी, महासू देवता जागड़ा, मंगशीर की बग्वाल, पापड़ी त्यौहार, नाग देवता का जागड़ा, पूज, अठाईं, नवाईं। 

संयुक्त परिवार की परंपरा है कायम 

राज्य में एकल परिवारों की तेजी से बढ़ते प्रचलन के बीच जौनपुर में आज भी संयुक्त परिवार की परंपरा कायम है। यहां चाहे नौकरी करने वाले हों या खेती करने वाले, सभी संयुक्त परिवार में रहते हैं औ खेती व अन्य कार्यों में हाथ बंटाते हैं। 

लोक गायक मोहनलाल निराला का कहना है कि जौनपुर की संस्कृति अपने आप में मिसाल है। यहां के लोगों का भी यही प्रयास रहता है कि अपनी पौराणिक लोक संस्कृति को कायम रखा जाए। यही कारण है कि यहां हर समय थौल-मेलों का आयोजन होता रहता है। 

यह भी पढ़ें: स्वार्गारोहणी के लिए जहां-जहां से पांडव गुजरे, वहां होते पांडव नृत्‍य 

यह भी पढ़ें: बदरीनाथ में श्रद्धा का केंद्र बना पंचमुखी देवदार

chat bot
आपका साथी