इस मंदिर में मौजूद है दो सौ साल पहले दर्शनों को आए यात्रियों का लेखा-जोखा

त्रियुगीनारायण मंदिर में दो सौ साल पहले दर्शनों को आए यात्रियों का रिकॉर्ड मौजूद है।टिहरी नरेश ने यहां के लोगों को यात्रियों के नाम-पते बहियों में दर्ज करने का अधिकार दिया था।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Thu, 21 Sep 2017 06:21 PM (IST) Updated:Thu, 21 Sep 2017 08:59 PM (IST)
इस मंदिर में मौजूद है दो सौ साल पहले दर्शनों को आए यात्रियों का लेखा-जोखा
इस मंदिर में मौजूद है दो सौ साल पहले दर्शनों को आए यात्रियों का लेखा-जोखा

रुद्रप्रयाग, [बृजेश भट्ट]: केदारनाथ धाम के प्रमुख पड़ाव त्रियुगीनारायण मंदिर में आज भी दो सौ साल पहले दर्शनों को आए यात्रियों का पूरा लेखा-जोखा मौजूद है। त्रियुगीनारायण आने वाले यात्री आज भी अपना नाम-पता यहां पंडों (पुरोहितों) के पास दर्ज कराते हैं। साथ ही उनके पूर्वज कब दर्शनों को यहां आए थे, उसकी भी उत्सुकता से जानकारी लेते हैं।

समुद्रतल से 9000 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारघाटी के सीमांत गांव त्रियुगीनारायण की नैसर्गिक छटा देखते ही बनती है। धार्मिक दृष्टि से इस गांव का विशिष्ट महत्व है। 19वीं सदी में टिहरी नरेश प्रताप शाह ने इस गांव के लोगों को देशभर से दर्शनों को आने वाले यात्रियों के नाम-पते बहियों में दर्ज करने का अधिकार दिया था। तब से गांव के लगभग 200 परिवार इस कार्य में जुटे हैं। इन सभी परिवारों में देश के विभिन्न प्रदेश, जिले व गांव बंटे हुए हैं। जो पौराणिक नियमों का पालन करते हुए भगवान नारायण के दर्शन करने वालों के नाम-पते अपनी बहियों में दर्ज करते हैं।

यहां आने वाले यात्री मंदिर में पूजा- अर्चना करने के साथ पूर्व में अपने गांव-परिवार से दर्शनों को आने वालों की जानकारी भी पंडों से लेते हैं। इसके अलावा वे श्रद्धापूर्वक पंडों को दान भी देते हैं। यह दान ही इनका रोजगार है। स्थानीय पंडा समाज के ब्राह्मण नागेंद्र प्रसाद गैरोला बताते हैं कि उनका परिवार 19वीं शताब्दी से इस कार्य में जुटा है। 

त्रियुगीनारायण के दर्शनों को आने वाले सभी यात्रियों के नाम-पते उनकी बहियों में दर्ज हैं। पूरे गांव में देश के सभी प्रदेश, जिले व पट्टियां बंटी हुई हैं। इसी आधार पर वह यात्रियों के नाम-पते दर्ज करते हैं। गैरोला बताते हैं कि भक्तों में अपने पूर्वजों को लेकर काफी उत्साह रहता है।

 पंडा समाज के गिरिजाशंकर कहते हैं कि त्रियुगीनारायण का मंदिर भी केदारनाथ मंदिर की तरह पांडवकालीन है। पुराने समय में ऋषिकेश से पैदल ही यात्री यहां दर्शनों को आते थे। जिनका नाम-पता उनकी बहियों में दर्ज है। पिछले दिनों गुजरात से दर्शनों को आए महेश पटेल बताते हैं कि उनके परदादा सुदर्शन पटेल वर्ष 1908 में त्रियुगीनारायण आए थे। उनका पूरा विवरण यहां बही में दर्ज है।

शिव-पार्वती विवाह का साक्षी है मंदिर

त्रियुगीनारायण मंदिर को पांडवकालीन माना गया है। मान्यता है कि शिव-पार्वती ने इसी मंदिर में अग्निकुंड के सात फेरे लिए थे। वह कुंड आज भी मंदिर में विद्यमान है। कहते हैं कि इस कुंड में अग्नि तीन युगों से अविरल प्रज्ज्वलित हो रही है। जिसके दर्शनों को हर साल हजारों यात्री त्रियुगीनारायण पहुंचते हैं।

 टिहरी नरेश ने भी किए थे दर्शन

टिहरी नरेश प्रताप शाह वर्ष 1822 में त्रियुगीनारायण दर्शनों को आए थे। इसके बाद वर्ष 1829-30 में महाराजा कीर्ति शाह के भी यहां आने के प्रमाण मिलते हैं।

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