तिब्बत में भारत जैसी नहीं पोनी पो‌र्ट्स की व्यवस्था

संवाद सहयोगी पिथौरागढ़ कैलास मानसरोवर यात्रियों का सातवां दल कैलास की परिक्रमा पूरी कर गु

By JagranEdited By: Publish:Thu, 25 Jul 2019 11:12 PM (IST) Updated:Thu, 25 Jul 2019 11:12 PM (IST)
तिब्बत में भारत जैसी नहीं पोनी पो‌र्ट्स की व्यवस्था
तिब्बत में भारत जैसी नहीं पोनी पो‌र्ट्स की व्यवस्था

संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़: कैलास मानसरोवर यात्रियों का सातवां दल कैलास की परिक्रमा पूरी कर गुरुवार को पिथौरागढ़ पहुंचा। टनकपुर-तवाघाट हाईवे पर जौलजीवी के निकट लखनपुर के पास मलबा आने से दल तीन घंटे देरी से पहुंचा। यहां स्थानीय पर्यटक आवास गृह में यात्रियों का जोरदार स्वागत किया गया। इस दौरान यात्रियों ने यात्रा से जुड़े अपने संस्मरण सुनाए। अधिकांश यात्रियों ने कहा कि तिब्बत में पोनी पो‌र्ट्स की व्यवस्था भारत जैसी नहीं थी।

पर्यटक आवास गृह में निगम प्रबंधक दिनेश गुरुरानी के नेतृत्व में निगम कर्मचारियों ने यात्रियों का बुरांश का जूस पिलाकर स्वागत किया। यात्रियों ने यात्रा से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि यात्रा पड़ावों पर जो सुविधाएं उन्हें मिली, वह तिब्बत में देखने को नहीं मिली। तिब्बत में पोनी पो‌र्ट्स की व्यवस्था अच्छी नहीं थी। आइटीबीपी व केएमवीएन द्वारा यात्रा के दौरान बेहद अच्छे प्रबंध किए गए थे। दल की एलओ विंग कमांडर मधु सिंघल ने बताया कि दल में 50 सदस्य हैं। जिसमें 15 महिलाएं शामिल हैं। दोपहर का भोजन करने के बाद दल भगवान शिव के जयकारे लगाते हुए जागेश्वर धाम को रवाना हुआ।

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दिल्ली निवासी संजय महलावत की यह चौथी कैलास यात्रा थी। इससे पहले वह वर्ष 2004 व 2014 में नेपाल से यात्रा कर चुके हैं। लिपुलेख से उन्होंने 2010 में पहली बार यात्रा की। संजय का कहना है कि लिपुलेख से यात्रा करने पर कोई भी यात्री बीमार नहीं पड़ता है।

फोटो फाइल: 25 पीटीएच 18

परिचय: संजय महलावत।

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बरेली से आए विजय बाबू कन्नौजिया की यह पहली यात्रा थी। उन्होंने बताया कि भगवान भोले की कृपा से उनकी पंच कैलास यात्रा पूरी हो गई है। गुंजी, नाभिढांग क्षेत्र में संचार की सुविधा अच्छी नहीं हैं। यात्रियों के साथ ही सीमा पर तैनात जवानों को भी इससे परेशानी होती है।

फोटो फाइल: 25 पीटीएच 19

परिचय: विजय बाबू कन्नौजिया।

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गुजरात निवासी 69 वर्षीय शशिकांत झी भट्ट के लिए यह यात्रा चुनौतीपूर्ण रही। तिब्बत में कैलास की परिक्रमा को जाते समय उन्होंने डेरापुक में घोड़े का सहारा लिया, मगर घोड़े ने उन्हें नीचे गिरा दिया और 25-30 मीटर तक घिसटता चला गया। जिस कारण उनका कंधे में चोट लग गई। दार्चिन में उन्होंने उपचार कराया, लेकिन कंधे में ज्यादा दर्द होने के कारण वह यात्रा पूरी नहीं कर सके। इस दौरान उनके कजिन जनक त्रिवेदी भी उनके साथ रहे। वह भी यात्रा पूरी नहीं कर सके।

फोटो फाइल: 25 पीटीएच 20

परिचय: शशिकांत झी भट्ट, दल के सबसे बुजुर्ग यात्री।

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दल की सबसे युवा सदस्य पारुल ने कहा कि पहली बार कैलास मानसरोवर की यात्रा कर सुखद अनुभूति हो रही है। भारत में दिल्ली से लिपुलेख तक यात्रियों को आईटीबीपी व केएमवीएन द्वारा अच्छा सहयोग दिया गया। तिब्बत में पोनी पोटर्स की व्यवस्था अच्छी नहीं थी।

फोटो फाइल: 25 पीटीएच 21

परिचय: पारु ल, दल की सबसे युवा सदस्य।

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